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भजन-४५
तर्ज- घूंघट की आड़ से .....
कर्मों की मार से आतम में शुभ ध्यान तो पूरा रहता है। जब तक न लगे, आतम से लगन, भेदज्ञान अधूरा रहता है । जब तक न दिखे, शुद्धात्म झलक, धर्म ध्यान अधूरा रहता है । १. यदि पाना है, अपने सहजानंद को, छोड़ो मान मिथ्या, निदान शल्य को । जब तक न हटे, विषयों से लगन, भेदज्ञान अधूरा रहता है... कर्मों की मार... यदि पाना है अपने चिदानंद को, छोड़ो मोह ममता, अरू अज्ञान को । जब तक न मिले, गुरूवर की शरण, भेदज्ञान अधूरा रहता है... कर्मों की मार... यदि मिल जाये अपनी, आतम की शरण, स्व पर ज्ञायक बनूं छोड़ मिथ्या भ्रमण | जब आतम निजातम हो जायेगा, परमातम पद प्राप्त हो जायेगा... कर्मों की मार...
२.
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
३.
★ मुक्तक ★
त्रिलोकीनाथ आतम देव ही हैं मनहारी । ज्ञान दर्शन चरण की छाई है ये हरियाली ॥ मुक्ति का मार्ग सहज साधना से मिलता है । स्वानुभूति में रमण से ये कमल खिलता है ।
है आत्मा अजर अमर और अविनाशी । है शुद्ध गुणों की खानि है शिवपुर वासी ॥ ज्ञायक ही सद् ज्ञान में रहने वाला । शाश्वत है सदा ध्रुवधाम में बहने वाला ||
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
भजन - ४६ तर्ज- चांदी की दीवार...
मोह की दीवार न तोड़ी, मिथ्यामत स्वीकार किया ।
इक मिथ्यात की बेटी ने, परभाव से नाता जोड़ लिया ॥
१.
नर्क में जिसने भावना भायी, शुद्धातम को पाने की। भेदज्ञान तत्व निर्णय करके, इस जग से तर जाने की ॥ शुद्ध स्वरूप का स्वाद न चखके, विषयों को स्वीकार किया || मोह की दीवार...
२. अपने शुद्ध स्वरूप को देखो, चिदानन्द रस पान करो। ज्ञान ध्यान तप में रत होकर, आनन्द रस का पान करो ॥ समयसार का स्वाद ही चख के, आनन्दामृत पान किया । मोह की दीवार....
३.
वस्तु स्वरूप का निर्णय करके, बनो स्व-पर श्रद्धानी हो । आत्म तत्व की करो साधना, बनो तुम भेदज्ञानी हो ॥ चन्द्र सार तो इतना ही है, और कथन विस्तार किया || मोह की दीवार....
★ मुक्तक ★
ज्ञान औषधि का निज में विकास होगा
ध्रुव ही ध्रुव का निज में ही वास होगा ॥
ध्रुव की तरंगें उठती रहेंगी ध्रुव में ।
ध्रुव ही निज सत्ता है, ध्रुव में ही प्रकाश होगा |
ज्ञान की पुंज अमर आत्मा को लखना है। ध्रुव शक्ति धारी निज आत्मरस को चखना है । शून्य बिन्दु सत्ता शुद्धात्म की कहानी है । जो इसमें रमण करे मिले मुक्ति रानी है ।
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