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अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
अध्यात्म चन्द्र भजनमाला
भजन -४७ रोम-रोम में हर्षित होता, आत्म हमारा हाँ आत्म हमारा। ऐसी भक्ति करूँ आत्म की, बहे समकित की धारा ॥ १. ज्ञाता दृष्टा है तू ही, चेतन दृष्टा होय । अनंत चतुष्टय रूप तू, केवल ज्ञान को पाय ॥ आत्म जपे परमात्म नाम को हो जाये भव पारा...रोम... २. भेदज्ञान कर जान लो, तुम आतम भगवान। विषयों से मुँह मोड़ कर, पाऊँ सम्यक् ज्ञान ।।
आत्म जपे परमात्म नाम को, बहे चारित्र की धारा...रोम... ३. चार गति चौरासी में, भटकत बारम्बार । आतम तेरी शरण से, हो जाऊँ भव पार ॥ अब मैं पाऊँ भेदज्ञान की, बहे स्व-पर की धारा...रोम... ४. वीतरागता है भली, जामन मरण मिटाय । माया मोह को छोड़ के, आत्म मगन हो जाय ॥ वस्तु स्वरूप का निर्णय करले, बहे आत्म रसधारा...रोम...
भजन-४९
तर्ज - धर्म बिन बाबरे... आत्म अनुभूति से, तूने नरभव सफल बनाया । किया है तूने आत्म निरीक्षण, मोह ममता को भगाया । १. देख ले अपने निज वैभव को, दर्शन ज्ञान अनंता । चेतन में ही रमते-जमते, वीतराग भगवंता ॥
आत्म अनुभूति... । २. शुद्ध दृष्टि में रत हो ज्ञानी, निज अनुभूति सुमरता । अतुल आत्म वैभव को पाकर, निशंक निर्भय रहता ।।
आत्म अनुभूति... ३. मम स्वभाव से सभी भिन्न है, क्रोध मान अरू माया । निज में ही निज को लखकर के, निज का गीत ही गाया ।
आत्म अनुभूति... ४. चिदानंद रस लीन आत्मा, अजर अमर हो जाये । कर्म बंध टूटेंगे इसके, शिवपुर मिलन कराये ।।
___ आत्म अनुभूति...
भजन-४८
तर्ज - दिल के अरमा आँसूओं... आत्मा हूँ आत्मा हूँ आत्मा, ज्ञानानंदी वीतरागी आत्मा ॥ १. कर्म के चक्कर में अब पड़ता नहीं। मोह मिथ्या ध्यान में धरता नहीं ॥ विषय त्यागी मैं बनी शुद्धात्मा...आत्मा हूँ, आत्मा.... २. अतीन्द्रिय आनन्द रस में मस्त हो। स्वानुभूति की दशा में गुप्त हो ॥ शान्त अनुपम हो, निराली आत्मा...आत्मा हूँ, आत्मा.... ३. अरस अरूपी मैं सदा अविनाशी हूँ। शील संयममय सदा दृगवासी हूँ ॥ द्रव्य नो कर्मों से न्यारी आत्मा...आत्मा हूँ, आत्मा....
भजन -५० गुरू तारण को अध्यात्म सब मिल बांटोरे।
निज आतम को परसाद सब मिल बांटो रे॥ १. देखो नन्द आनंदह नन्द जिनु । भवियन चेयानन्द सुभाव, सब मिल बांटो रे, गुरू.... २. देखो गुरू गुरूओ जिन नन्द जिन।
अप्पा अप्पै में लीन, सब मिल बांटो रे, गुरू... ३. खिपनिक रूवे-रूव भवियन ।
गुरू गुरूओ जिन आनन्द, सब मिल बांटो रे, गुरू... ४. मै मूर्ति न्यान विन्यान मौ। तेरा ज्ञान है ममल स्वभाव, सब मिल बांटो रे गुरू...