Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala
Author(s): Chandrakanta Deriya
Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda

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Page 28
________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला १. भजन -५८ तर्ज- सौ साल पहले हमें... ज्ञाता दृष्टा निज, आत्मा थी, निज आत्मा थी। अनादि से है और हमेशा रहेगी ॥ अनादि काल से भव बन्धन में थी । आज नहीं कल भी न रहेगी ॥ चारों गतियों में घूमी, वहाँ निज आतम न जाना। भव चक्कर से छूढूँ, मैंने निज आतम पहिचाना॥ विभावों से बचने को, जिया बेकरार था। आज भी है और हमेशा रहेगा... ज्ञाता दृष्टा... २. राग-द्वेष को छोडूं, हृदय में समता आती है। विषयों से मुँह मोडूं,शान्ति उर में छा जाती है। आत्म दर्शन करने का, अरमान था। आज भी है और हमेशा रहेगा... ज्ञाता दृष्टा... ३. दर्शन ज्ञान को पाया, कि अब चारित्र भी पालूँगी। रत्नत्रय को पाकर, अष्ट कर्मों को मरोदूंगी॥ अक्षय सुख पाने का ही, यही तो खजाना है यही तो खजाना है। आज भी है और हमेशा रहेगा... ज्ञाता दृष्टा... भजन -६० तर्ज - हे वीर तुम्हारे द्वारे... आतम के अनन्त गुणों की महिमा, ज्ञानी ने हृदय उतारी है। विरले इसको धारण करते, जिनवर ने वयन उचारी है || १. सात तत्वों की श्रद्धा करले, नव पदार्थों का सुमरण करले । पंचास्तिकाय की मस्ती में, द्रव्यों की छटा निराली है...आतम... २. ये राग द्वेष कुछ मेरे नहीं, ये विषय कषाय भी मेरे नहीं। भेदज्ञान तत्व निर्णय करके, आत्म श्रद्धा उर में धारी है...आतम... ३. ज्ञाता दृष्टा निज आतम है, चैतन्य दृष्टा परमातम है । रत्नत्रय से भूषित होकर, शिवमार्ग की कर तैयारी है...आतम... ४. दश धर्मों को धारण करती, सोलह कारण पालन करती । सम्यक्दर्शन भव नाशक है, कर इसकी अब तैयारी है...आतम... ५. मैं स्वानुभूति में आ जाऊँ, समता रस स्वाद को चख जाऊँ। इस समयसार मय जीवन की,युग युगों तक बलिहारी है...आतम... भजन - ५९ शुद्धात्मा हूँ शुद्धात्मा हूँ, एक अनोखी मैं शुद्धात्मा हूँ। परमात्मा हूँ परमात्मा हूँ, शिवपुर का वासी मैं परमात्मा हूँ। १. आतम मेरी सिद्ध स्वरूपी, कर्म मलों से रहित है अरूपी । आतम से आतम मैं सहजात्मा हूँ, एक अनोखी मैं शुद्धात्मा हूँ... २. उत्पाद व्यय ध्रौव्य से मैं सहित हूँ, माया मोह मिथ्या से रहित हूँ। द्रव्य गुण पर्याय से युक्तात्मा हूँ, एक अनोखी मैं शुद्धात्मा हूँ... ३. विषय कषायों से मैं रहित हूँ, अनाकुल सुख शान्ति से सहित हूँ। त्रैकालिक चैतन्यात्मा हूँ, एक अनोखी मैं शुद्धात्मा हूँ... भजन - ६१ तर्ज - धन्य न कार्तिक अमावस प्रभात है.... धन्य-धन्य अगहन, सप्तमी प्रभात है | आनंद की बात है,यह आनंद की बात है। पुष्पावती नगरी में, तारण ने जन्म लियो । आनन्द महोत्सव, नगरी में छा गयो | शहनाई गूंज उठी, कोई अद्भुत बात है...आनन्द की बात है.... २. वीर श्री माता की कुक्षि धन्य हुई । शुभ संस्कार युक्त बालक की प्राप्ति हुई ॥ खुशियों से झूम उठे पिता गढ़ाशाह है...आनन्द की बात है.... ३. छोटी सी उमरिया में, मिथ्या का विलय किया। स्वात्म रमण करके, सम्यक् दर्शन प्राप्त किया । ज्ञान वैराग्य साधना की ये बात है...आनन्द की बात है....

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