Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala
Author(s): Chandrakanta Deriya
Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda

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Page 29
________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन -६४ तर्ज - भैया मेरे राखी के बन्धन... आतम मेरी राग द्वेषादि में न जाना। आतम मेरी निज स्वभाव में आना॥ आठों कर्म बुलाते हमको, गति चारों में फंसाते हमको। इनसे नेहा छुड़ाना,छुड़ाना, आतम मेरी.... सारे कर्मों की होगी विदाई, आतम का श्रद्धान करो भाई। ज्ञान में गोते लगाना, लगाना, आतम मेरी.... अलख निरंजन आतम होगा, भव दुःख भंजन आतम होगा। अब द्रव्य दृष्टि बनाना, बनाना, आतम मेरी.... जब तक तन में सांस है तेरे, आतम के गुण गा सांझ सबेरे। जीवन का नहीं ठिकाना,ठिकाना, आतम मेरी.... निज का निज से जोड़े नाता, दर्शन ज्ञान चरण है पाता। रत्नत्रय निधि को पाना, हो पाना, आतम मेरी.... भजन - ६२ तर्ज - मेरी आत्मा प्यारी भटक.... गुरू तारण तुम्हारी, शरण में हम आय। ग्रंथ चौदह समझ, आतम रस में समाय॥ १. बहिरात्मा है आत्मा, अन्तर में आना चाहिये । अब इसे संसार के, दु:ख से छुड़ाना चाहिये ॥ तत्व निर्णय स्व पर भेदज्ञान हो जाय । ग्रंथ चौदह समझ, आतम रस में समाय...गुरू.... २. भय दु:खों से भयभीत हो, संसार सागर से तरूं। अतीन्द्रिय आनन्द रस का, स्वात्म चिन्तन मैं करूं। स्वानुभूति में अब तो, मगन हो जाय । ग्रंथ चौदह समझ, आतम रस में समाय...गुरू.... ३. आत्मा शुद्धात्मा है, परमातम होना चाहिए। धर्म तप संयम सभी, जीवन में आना चाहिए । नंद आनंद चेयानंद, परमानंद हो जाय । ग्रंथ चौदह समझ, आतम रस में समाय...गुरू.... भजन -६३ तर्ज- मेरी आतम प्यारी भटक न जाय.... जिनवर की भक्ति में,मगन हो जाय। संसार के सागर से, अब पार हो जाय॥ राग-द्वेष की दीवार को, तोडूं मैं समता से अभी। विषयों का लंगर तोड़ के, विभावों में न जाऊँ कभी ।। माया मिथ्या निदान में, अब भटक न जाय । संसार के सागर से, अब पार हो जाय....जिनवर... २. कषायों को छोड़के, जग जाल में आना नहीं। तत्व निर्णय समझ के, अब आत्म की शरणा गही । पंच इन्द्रिय के विषयों में, पड़ा नहीं जाय । ससार क सागर से, अब पार हो जाय....जिनवर... ३. ध्यान धर के आत्मा के, दर्श करना चाहिए। आत्म वैभव को समझ, मुक्ति को वरना चाहिए । अनुपम आतम निराली, मगन हो जाय । संसार के सागर से, अब पार हो जाय....जिनवर... भजन-६५ आए हैं आए हैं, सेमरखेड़ी के दर्शन को आये हैं। पाए हैं पाए हैं, निज आतम के दर्शन पाये हैं। आये हैं आये हैं, गुरूवर की शरणा आये हैं। गाये हैं गाये हैं, अनन्त चतुष्टय की महिमा गाये हैं। चाहे हैं चाहे हैं, शिवपुर की नगरिया चाहे हैं। लाये हैं लाये हैं, रत्नत्रय की निधि लाये हैं । छाये हैं छाये हैं, समता के बादल छाये हैं। पाये हैं पाये हैं, निज ज्ञान का वैभव पाए हैं। आये हैं आये हैं, शुद्धातम की नगरी में आए हैं। गाये हैं गाये हैं, तारण गुरू के गीत हम गाए हैं। आए है आए हैं, सेमरखेड़ी के दर्शन को आये हैं...

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