Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala
Author(s): Chandrakanta Deriya
Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda

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Page 31
________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन-६९ तर्ज - पतित पावन तरण तारण.... ममल आतम सुनो अब तो, तुम्हें परमात्म बनना है। ये माया मोह तज करके, तुम्हें समता से रहना है | १. फंसी थी इन्द्रिय विषयों में, जान कर इनको अब छोड़ो। करो अब दर्श आतम का, ज्ञान से प्रीति अब जोड़ो ॥ ममल आतम... २. समय बरबाद कर अपना, कौड़ी-कौडी माया जोडी। ये संग में साथ न जाये, तिजोड़ी भर के रख छोड़ी॥ ममल आतम... ३. मूल्य जीवन का न आंका, पड़ी इस जग के फन्दे में। ये धन वैभव को लुटा के तुम, चारों दे दो दान चन्दे में । ममल आतम... ४. त्रिरत्नत्रय मयी आतम, सम्यकदर्शन डोर है इसकी। शील संयम की चुनरिया से, काट दो बेड़ी इस जग की। ममल आतम... ५. चन्द्र अब चेत जा जल्दी, तत्व निर्णय की लगा हल्दी। ये मिथ्या राग तज करके, करो चेतन में बसेरा है ॥ ममल आतम... भजन -७० आज हमारे द्वारे, आए गुरू तारण है। धन्य है भाग्य हमारे, पाए गुरू दर्शन हैं ॥ १. ज्ञान के पर्व में, आत्म ज्योति जगे। विषयों को छोडकर के,ज्ञान ज्योति बढे॥ निगोद से निकले हम आये चारों गतियों में। नर जन्म पाया हमने, फंसे न इन गतियों में ॥ आज हमारे द्वारे... २. नरकों के दुःख को चेतन ने कैसे सहे। माया मिथ्या को छोड़कर, भेद ज्ञान की ज्योति बढे॥ शील संयम की चुनरिया ओढ़ हम आये हैं। औषधि, ज्ञान, आहार, देने हम आये हैं। आज हमारे द्वारे... ३. परिग्रह के जाल से, मुँह अपना मोड़ ले। सद्गुरू की बात को, चन्द्र अब तू मान ले ॥ अनंत सुख के धनी, आतम को पाने आये हैं। त्रिरत्नमयी शिवपुर को, लेने हम आए हैं। आज हमारे द्वारे... * मुक्तक* OOOOOOOOD भजन -७१ तर्ज- दिल के अरमां.... शील संयम मार्ग पर ही चल दिये। धर्म ध्यानीही इस जग से तर गये। १. चेलना सती का ही तुम अब नाम लो। पति को धर्म पै, चलाया जान लो ॥ धर्म से अंजन, निरंजन हो गये...धर्म ध्यानी ही..... २. अंजना सती को, निकाला घर से जब । गर्भ में हनुमान, पड़ी जंगल में तब ॥ भाग्य से मामा के घर को चल दिये...धर्म ध्यानी ही..... ३. अंजन जैसे पापी का, अब हाल सुन। कर्म की बेड़ी कटी, इक क्षण में सुन ॥ धर्म से अंजन, निरंजन हो गये...धर्म ध्यानी ही..... इन्द्रिय विषय कषाय आदि का शमन हमें अब करना है। काम क्रोध मद लोभादि का दमन हमें अब करना है। माया मिथ्या निदान ये शल्यें दूर हमें अब करना है। स्वानुभूति में रमण करें हम मुक्ति श्री को वरना है। 0000000000

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