Book Title: Adhyatma Chandra Bhajanmala
Author(s): Chandrakanta Deriya
Publisher: Sonabai Jain Ganjbasauda

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन - १९ तर्ज - चांद सी मेहबूबा... आतम है मेरी अति सुन्दर, इसको मैंने अपनाया। इसको पाकर के हमने, मुक्ति मारग है अपनाया ॥ आतम चैतन्य की ज्योति है, निर्मल गुणों की खानी है। यह शुद्ध बुद्ध अविनाशी है, ममल शुचिता की धारी है । इसका रूप है जग से न्यारा, इसको हमने पाया है...इसको पाकर.... धुव है ये अचल अनुपम है, अमिट पूर्णानन्द बिहारी है। अनन्त गुणों की मूर्ति है, ये सब कर्मों से न्यारी है ॥ ध्रुवता निज की लख के हमने,सुखद क्षणों को पाया है...इसको पाकर.... कैसे आतम गुणगान करें, अनगिनत गुणों की पूंजी है। निज पूर्ण गुणों को प्राप्त करें, यह बात हमें अब सूझी है। चलते भी दिखे, फिरते भी दिखे, सपने में ऐसा आया है...इसको पाकर.... अध्यात्म चन्द्र भजनमाला भजन -२१ निज आत्म रमण अब होय, जगत ये सारो छूट गयो। १. द्रव्य गुण पर्यायें सत् हैं, ऐसा मैंने जाना । मेरा आतम परम शांत है, इसे अभी पहिचाना ॥ परमात्म प्रकाशी होय, जगत ये सारो छूट गयो... २. आतम तो मेरी शुद्धातम, पूर्णानन्द बिहारी । तीन लोक तिहुँकाल मांही, इस जग से है वह न्यारी ।। नन्द आनन्द में मगन होय, जगत ये सारो छूट गयो... ३. दर्शन ज्ञान गुणों का धारी, है आतम अविकारी । सुख सत्ता चैतन्य बोध से, अमिट गुणों का धारी ।। रत्नत्रय से अलंकृत होय, जगत ये सारो छूट गयो... ४. अरस अरूपी निज आतम की, महिमा को मैं गाऊँ। ममल स्वभावी आतम की, शक्ति को अब प्रगटाऊँ ॥ ज्ञान कुंड में गोते लगाऊँ, जगत ये सारो छूट गयो... |१. भजन - २० चेतन ले ले तू जग से विदाई, तेरा भव चक्कर नश जाई॥ अज्ञान का परदा पड़ा था, नरकों में तू औंधा पड़ा था। भूख प्यास से बैचेन था तू, सर्दी गर्मी में हैवान था तू ॥ वैतरणी के दु:ख सहे न जाई...तेरा भव चक्कर नश जाई.... फिर निकल पशुगति में आया, छेदन भेदन का अति दुःख पाया। ताड़न मारण से भारी बोझा ढोया, बलवानों से पीड़ित हो रोया ॥ संक्लेषित हो मर जाई ...तेरा भव चक्कर नश जाई.... मुश्किल से नरतन पाया, विषय भोगों में तू भरमाया। कषायों में तू झुलसाया, फिर अर्द्धमृतक सम काया । निज रूप ही तेरा सहाई...तेरा भव चक्कर नश जाई.... सुर पदवी की सुन ले कहानी, मास छै पहले माला मुरझानी। यह देख रूदन अति कीना, फिर दुर्गति में जन्म लीना ॥ दृष्टि फेर ले चेतन राई...तेरा भव चक्कर नश जाई.... भजन-२२ हे आतम ! मुक्ति परम पद पाओ। १. कोई नहीं है कछु भी नहीं है, परम शांति अपनाओ। ममलह ममल स्वभाव है तेरा, ध्रुवता चित में लाओ ।। हे आतम.... २. सम्यक्दर्शन प्राप्त किया अब, ज्ञान का दीप जलाओ। चिदानंद चैतन्य प्रभु तुम, अविनाशी कहलाओ ॥ हे आतम.... ३. हो निशंक अक्षय सुखधारी, अजर अमर हो जाओ। अतीन्द्रिय पद का हूँ मैं धारी, सहजानन्द सुभावो । हे आतम.... ४. अनन्त गुणों का नाथ स्वयं मैं, मोह को दूर भगाओ। शुद्धातम में रमण करो नित, कृत्य कृत्य हो जाओ ।। हे आतम....

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73