Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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13. प्रत्याख्यान पच्चक्खाणेणं इच्छा निरोहं जणयइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 103]
- उत्तराध्ययन 29/13 प्रत्याख्यान (प्रतिज्ञा) से इच्छा-निरोध होता है। 14. प्रत्याख्यान-लाभ पच्चक्खाणेणं आसव दाराइं निरंभइ ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 103]
- उत्तराध्ययन 29/13 प्रत्याख्यान (प्रतिज्ञा) से जीव आश्रव द्वार का निरोध करता है। 15. तपश्चरण-प्रयोजन
राग-द्वेषौ यदि स्यातां, तपसा किं प्रयोजनम् ? तावेव यदि न स्यातां, तपसा किं प्रयोजनम् ? ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 104]
- पंचाशक सटीक 5 विव. तप करने पर भी यदि राग-द्वेष बने रहें, राग-द्वेष की मात्रा में न्यूनता न हो, तो उस तपश्चरण से भी क्या लाभ ? और यदि राग-द्वेष सर्वथा निर्मूल हो चुके हैं तो फिर ऐसी स्थिति में भी तप करने का क्या
औचित्य ? वस्तुत: तपश्चरण के पीछे राग-द्वेष न्यून हो, यही उद्देश्य रहा हुआ है। 16. प्रतिक्रमण
स्वस्थानाद् यत् परं स्थानं, प्रमादस्य वशाद् गतः । तत्रैव क्रमणं भूयः, प्रतिक्रमणमुच्यते ॥ क्षायोपशमिकाद् भावा-दौदयिकस्य वशंगतः । तत्रापि च स एवार्थः प्रतिकूलगमात् स्मृतः ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 261) - आवश्यक - 4
. अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 60