Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- भगवतीसूत्र 250 __ साधक कछुए की भाँति समस्त इन्द्रियों एवं अंगोपांग को समेट करके रहे। 25. ज्ञानी नाणी न विणा णाणं ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 361]
- निशीथभाष्य 75 ज्ञान के बिना कोई ज्ञानी नहीं हो सकता। 26. इन्द्रिय-निग्रह
सद्देसु य रूवेसु य, गंधेसु, रसेसु तह फासेसु । न वि रज्जइ न वि दुस्सइ, एसा खलु इंदिअप्पणिही ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 381]
- दशवैकालिक नियुक्ति 295 - शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श में जिसका चित्त न तो अनुरक्त होता है और न द्वेष करता है, उसीका इन्द्रियनिग्रह प्रशस्त होता है। 27. कुमार्गगामी इन्द्रियाँ
जस्स खलु दुप्पणिहिया-णिदियाइं तवं चरंतस्स । सो हीरइ असहीणेहिं सारही वा तुरंगेहिं ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 382]
- दशवकालिकनियुक्ति 298 जिस साधक की इन्द्रियाँ कुमार्गगामिनी हो गई हैं; वह दुष्ट घोड़ों के वश में पड़े सारथि की तरह उत्पथ में भटक जाता है। 28. गजस्नान
जस्स वि य दुप्पणिहिआ, होंति कसाया तवं चरंतस्स । सो बाल तवस्सी वि व, गयण्हाण परिस्समं कुणइ ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 382]
- दशवैकालिक नियुक्ति 300 अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 63