Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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[ प्रश्नव्याकरण सूक्तानि 29 (133) ]
सभी व्रतों में ब्रह्मचर्य को ही सबसे महान् व्रत कहा गया है और उनसे उत्पन्न पुण्य-संभार के संयोग से वह बड़ा कहा जाता है । 252. ब्रह्मचर्य प्रधान
इत्तो य बंभचे...... यमनियमगुणप्पहाण जुत्तं । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1259] प्रश्नव्याकरण 2/4
यह ब्रह्मचर्य अहिंसा आदि यमों और गुणों में प्रधान नियमों से युक्त है।
253. ब्रह्मचर्य बिन सब व्यर्थ
जइ ठाणी, जइ मोणी, जइ मुंडी वक्कली तवस्सीवा । पत्थंतो अ अबंभं, बंभावि न रोयए मज्झं ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1259] उपदेशमाला 63
ध्यान
यदि कोई कायोत्सर्ग में स्थित रहे, भले ही कोई मौन रखे, में मग्न रहे, भले ही छाल के वस्त्र पहन ले या तपस्वी हो, किन्तु यदि वह अब्रह्मचर्य की कामना करता हो तो मुझे वह नहीं सुहाता । फिर भले ही वह साक्षात् ब्रह्मा ही क्यों न हो ?
254. श्रेष्ठदान
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दाणाणं चेव अभय दाणं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1260]
प्रश्नव्याकरण 2/9/27
सब दोनों में 'अभयदान' श्रेष्ठ है ।
255. रागी - निरागी चिन्तन
क्व यामः क्व नु तिष्ठामः, किं कुर्मः किं न कुर्महे ? रागिणश्चिन्तयन्त्येवं, नीरागाः सुखमासते ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1260]
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 126