Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- प्रश्नव्याकरण सूत्र सटीक । संवर द्वार कहाँ जाऊँ ? कहाँ बैलूं ? क्या करूँ ? और क्या नहीं करूँ ? इस तरह रागी सोचता रहता है, और नीरागी इन संकल्प-विकल्पों से मुक्त होता
है।
256. ब्रह्मचर्य-फल अणेगा गुणा अहीणा भवंति एकम्मि बंभचेरे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1260]
- प्रश्नव्याकरण 29/27 एक ब्रह्मचर्य की साधना करने से अनेक गुण स्वयं अधीन हो जाते
257. एक साधे सब सधै
एक्कम्मि बंभचेरे जम्मि य आराहियम्मि,
आराहियं वयमिणं सव्वं सीलं तवो य विणओ य संजमो य खंती गुत्ती मुत्ती ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1260-1261]
- प्रश्नव्याकरण 2427 एक ब्रह्मचर्य की आराधना कर लेने पर शील, तप, विनय, संयम, क्षमा, निर्लोभता आदि सभी उत्तमोत्तम व्रतों एवं गुणों की सम्यक् आराधना हो जाती है। - 258. ब्रह्मचर्य, व्रतसम्राट् !
तं बंभं भगवंतं.......वेरुलिओ चेव जहा मणीणं, जहा महुडो चेव भूसणाणं, वत्स्थाणं चेव खोमजुयलं, अरविंदंचेवपुफ्फजे,गोसीसंचेवचंदणाणं,हिमवंचेव ओसहीणं, सीतोदा चेव तिन्नगाणं, उदहीसु जहा संयभूरमणो...एरावण एव कुंजराणां, कप्पाणां चेव बंभलीए... दाणाणं चेव अभयदाणं....तित्थयरेचेव जहा मुणीणं.... वणेसु जहा नंदणवणं पवरं । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 127