Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
View full book text
________________
ज्ञानसार 17/4
मुनि एक ब्रह्म-ज्ञानरूपी अस्त्र लेकर मोह सैन्य का संहार करता है और संग्राम-मैदान में ऐरावत हाथी की भाँति वह भयभीत नहीं होता है । 373. उस मुनि को भय कहाँ ?
न गोप्यं क्वापि ना रोप्यं, हेयं देयं च न क्वचित् । क्व भयेन मुनेः स्थेयं, ज्ञेयं ज्ञानेन पश्यतः ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1381]
•
-
ज्ञानसार 17/3
जहाँ न कुछ गोप्य है, न आरोप्य है और न ही हेय या देय है। मात्र ज्ञान से ज्ञेय हैं, उस मुनि को भय कहाँ ?
-
374. भयमुक्त ज्ञानसुख
भवसौख्येन किं भूरिभयज्वलनभस्मना । सदा भयोज्झितज्ञान- सुखमेव विशिष्यते ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1381] ज्ञानसार 172
जो असंख्य भय रूपी अग्नि- ज्वालाओं से जलकर राख हो गया है. ऐसे सांसारिक सुख से भला क्या लाभ? प्राय: भयमुक्त ज्ञानसुख ही श्रेष्ठ है। 375. सशक्त और अशक्त
-
B
तुलवल्लाघवमूढा भमन्त्य भयाऽनिलैः । नैकं रोमापि तैर्ज्ञानगरिष्ठानां तु कम्पते ॥
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1381 ] ज्ञानसार 17/7
आक की रुई की तरह हलके और मूढ लोग भयरूपी वायु के प्रचण्ड झोंके के साथ आकाश में उड़ते हैं, जबकि ज्ञान की शक्ति से परिपुष्ट सशक्त महापुरुषों का एकाध रोंगटा भी नहीं फड़कता ।
376. ज्ञानदृष्टि
HO
E
मयूरी ज्ञानदृष्टिश्चेत्, प्रसर्पति मनोवने । वेष्टनं भयसर्पाणां, न तदानन्दचन्दने ॥
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 156