Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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468. प्रशान्त मुनि पडिसेहितो परिणमेज्जा ।
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आचारांग 1/2/4/86
गृहस्वामी निषेध करे तो शांतभाव से वहाँ से वापस लौट जाए ।
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469. अल्पभोजी निरोगी
यो हि मितं भुङ्क्ते स बहुं भुङ्क्ते ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1608]
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1611] नीतिवाक्यामृत 25/38 एवं धर्मसंग्रह अधि. 1
जो परिमित खाता है, वह बहुत खाता है अर्थात् स्वास्थ्य की दृष्टि से कम खाना ज्यादा हितकारी है ।
470. स्वचिकित्सक
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हियाहारा मियाहारा, अप्पाहारा य जे नरा ।
न ते विज्जा तिगिच्छंति, अप्पाणं ते तिगिच्छगा । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1619] एवं [भाग 2 पृ. 549] ओघनियुक्ति 578
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जो मनुष्य हिताहारी, मिताहारी और अल्पाहारी हैं, उन्हें किसी वैद्य से चिकित्सा करवाने की आवश्यकता नहीं, वे स्वयं ही अपने वैद्य हैं, चिकित्सक हैं।
471. परिणाम - बंध
अणुमित्तोऽविन कस्सइ, बंधो परवत्थु पच्चओ भणिओ । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1621] ओघनियुक्ति 57
बाह्य वस्तु के आधार पर किसी को अणुमात्र भी कर्मबंध नहीं होता । कर्मबंध अपनी भावना के आधार पर ही होता है ।
अभिधान राजेन्द्र कोण में, सूक्ति-सुधारस खण्ड-5 178