Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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सुशिक्षित व्यक्ति स्खलना होने पर भी किसी पर दोषारोपण नहीं करता है और न कभी मित्रों पर क्रोध ही करता है । और तो क्या, मित्र से मतभेद होने पर भी परोक्ष में उसकी भलाई की बात करता है । 331. बहुश्रुत, सिंहवत् सीहे मियाण पवरे, एवं भवइ बहुस्सुए।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1308]
- उत्तराध्ययन 11/20 जैसे सिंह मृगों में श्रेष्ठ होता है, वैसे ही बहुश्रुत व्यक्ति जनता में श्रेष्ठ होता है। 332. बहुश्रुत, अजेय
जहाऽऽ इण्ण समारूढे, सूरे दढपरक्कमे । उभओ नंदिघोसेणं, एवं भवइ बहुस्सुए ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1308]
- उत्तराध्ययन 1147 . जिसप्रकार उत्तम जाति के अश्व पर चढ़ा हुआ महान् पराक्रमी शूरवीर योद्धा दोनों ओर बजनेवाले विजयवाद्यों के आघोष से सुशोभित होता है, उसीप्रकार बहुश्रुत विद्वान् भी परवादियों से शास्त्रार्थ में पराजित नहीं होता हुआ सुशोभित होता है अर्थात् वह स्वाध्याय के मांगलिक स्वरों से अलंकृत होता है। 333. बहुश्रुत, तपोज्ज्व ल
जहा से तिमिर विद्धं से, उत्तिद्वं ते दिवाकरे । जलंते इव तेएणं एवं भवइ बहुस्सुए ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1309]
- उत्तराध्ययन 11/24 जैसे तिमिरनाशक उदीयमान सूर्य अपने तेज से जाज्वल्यमान प्रतीत होता है, वैसे ही बहुश्रुत ज्ञानी तप की प्रभा से उज्ज्वल प्रतीत होता
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 . 145