Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1026]
- स्थानांग 443/319 चार तरह के फल होते हैं-आँवले के मीठे फल, द्राक्ष के मीठे फल, खीर के मीठे फल और इक्षु खंड के मीठे फल । इसीतरह चार प्रकार के आचार्य कहे गए हैं । यथा-१. आँवले के मीठे फल समान २. द्राक्षा के मीठे फल समान ३. खीर के मीठे फल समान ४. और इक्षु खंड के मीठे फल समान । ये आचार्य उपशमादि गुणों में क्रमश: एक-एक से उत्कृष्ट होते
212. निरभिमान सेवा अट्ठकरे णाममेगे णो माण करे।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1026
____1034]
- स्थानांग 4/4/3/319 कुछ लोग सेवा के कार्य करते हैं, फिरभी उनका अभिमान नहीं करते। 213. ज्योति तमे नाममेगे जोती, जोती णाममेगे तमे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1028]
- स्थानांग 4/A/3/327 कभी-कभी अंधकार (अज्ञानी मानव) में से भी ज्योति (सदाचार का प्रकाश) जल उठती है, इसीप्रकार ज्ञानीपुरुष से भी किसीसमय अज्ञान का आर्विभाव हो जाता है। 214. चार प्रकार के श्रमण
चत्तारि पुरिस जाता-पन्नत्तासीहत्ताते णाममेगे निक्खंते सीहत्ताते विहरइ, सीहत्ताते नाममेगे निक्खंते सियालताए विहरइ, सियालत्ताए नाममेगे निक्खंते सीहत्ताए विहरइ, सियालत्ताए नाममेगे निक्खंते सियालत्ताए विहरइ ॥ अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 114