Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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ओघनियुक्ति 758
केवल बाहर में दृश्यमान् पापरूप हिंसा से ही कोई हिंसक नहीं हो जाता। यदि साधक अन्दर में राग-द्वेष से रहित शुद्ध है, तो जिनेश्वर देवों ने उसकी बाह्य हिंसा को कर्म-बन्ध का हेतु न होने से निष्फल बताया है। 137. सहिष्णु
देहे दुक्खं महाफलं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 643] दशवैकालिक 8/27
शारीरिक कष्टों को समतापूर्वक सहने से महाफल की प्राप्ति होती
है ।
138. विशिष्टात्मा सक्षम
अग्गं वणिएहिं आहियं, धारेंति राईणिया इहं । एवं परमामहव्वया, अक्खाया उ सराइभोयणा ॥ श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 645] सूत्रकृतांग 123/3 जिसप्रकार दूर-देशान्तर से व्यापारी द्वारा लाए हुए बहुमूल्य रत्नों को राजा लोग ही धारण कर सकते हैं इसीप्रकार तीर्थंकर द्वारा कथित रात्रिभोजन त्याग के साथ पंच महाव्रतों को कोई विशिष्ट आत्मा ही धारण कर सकती है।
139. भोग, रोग
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अद्दक्खू कामाई रोगवं ।
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140. संतीर्ण
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 645] सूत्रकृतांग 1/23/2
सच्चे साधक की दृष्टि में कामभोग रोग के समान है ।
जे विण्ण वाहिऽज्झो सिया संतिण्णेहिं समं वियाहिया । श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 645]
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 92