Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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पुरुष चार तरह के होते हैं -
कुछ व्यक्ति अपना दोष देखते हैं, दूसरों का नहीं । कुछ दूसरों का दोष देखते हैं, अपना नहीं । कुछ अपना दोष भी देखते हैं, दूसरों का भी । कुछ न अपना दोष देखते हैं, न दूसरों का ।
204. पुत्र- प्रकार
चत्तारि सुता - पन्नत्ता । तं जहाअतिजाते, अणुजाते, अवजाते, कुलिंगाले ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 1018 ] स्थानांग 4/41/240
पुत्र चार तरह के होते हैं - अतिजात, अनुजात, अवजात और
कुलांगार ।
205. पुरुष - प्रकृति
चत्तारि फला- पणत्ता । तं जहा
आमे णामं एगे आम महुरे, आमे णामेगे पक्क महुरे, पक्के णामेगे आम महुरे, पक्के णामेगे पक्क महुरे
एवामेव चत्तारि पुरिसजाता पन्नत्ता ।
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1018 ]
स्थानांग 41
फल चार प्रकार के होते हैं-कुछ फल कच्चे होकर भी थोड़े मधुर होते हैं। कुछ फल कच्चे होने पर भी पके की तरह अतिमधुर होते हैं। कुछ फल पके होकर भी थोड़े मधुर होते हैं और कुछ फल पके होने पर अति मधुर होते हैं। फल की तरह मनुष्य के भी चार प्रकार होते हैं - लघुवय में साधारण समझदार । लघुवय में बड़ी उम्रवालों की तरह समझदार । बड़ी उम्र में भी कम समझदार । बड़ी उम्र में पूर्ण समझदार ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 110
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