Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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206. स्वभाव-वैचित्र्य
चत्तारि पुरिस जाता-पन्नता । तं जहाअप्पणो णाममेगे पत्तितं, करेति णो परस्स, परस्स णाममेगे पत्तियं करेति णो अप्पणो । एगे अप्पणो वि पत्तितं करेति परस्स वि, एगेणो अप्पणो पत्तितं करेइ नो परस्स ॥
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1024]
- स्थानांग 443312 [4] कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो सिर्फ अपना ही भला चाहते हैं, दूसरों का नहीं ।
कुछ उदार व्यक्ति अपना भला चाहे बिना भी दूसरों का भला करते
कुछ अपना भला भी करते हैं और दूसरों का भी ।
और कुछ न अपना भला करते हैं और न दूसरों का । 207. सुमन-सौरभवत्
चत्तारि पुफ्फा-पन्नत्ता । तं जहारूव संपन्ने णाम मेगे णो गंधसंपन्ने, गंध संपन्ने णाममेगे नो रूवसंपन्ने, एगे रूव सम्पन्ने वि गंधसम्पन्ने वि, एगे णो रूव सम्पन्ने णो गंधसम्पन्ने, एवामेव चत्तारि पुरिस जाता पन्नता ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 1026]
-- स्थानांग 4/4/3/319 [4] फूल चार प्रकार के होते हैं - सुन्दर, किन्तु गंधहीन । गन्धयुक्त, किन्तु सौन्दर्यहीन । सुन्दर भी, सुगन्धित भी।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 111