Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. 490]
उत्तराध्ययन 32/48
घ्राणेन्द्रिय का विषय गंध है। जो गंध राग का हेतु होता है, उसे मनोज्ञ कहा जाता है और जो द्वेष का हेतु होता है, उसे अमनोज्ञ कहा जाता है। जो मनोज्ञ-अमनोज्ञ गंध, दोनों में समदृष्टि रखता है, वही वीतराग होता है ।
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76. समाया मृषा - वृद्धि तण्हाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुखं वड्ढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥
उत्तराध्ययन 32/43
तृष्णा से अभिभूत-चौर्य-कर्म में प्रवृत्त, शब्दादि विषयों तथा परिग्रह में अतृप्त व्यक्ति लोभ-दोष से माया सहित मृषा (कपट प्रधान झूठ) की वृद्धि करता है, तथापि वह दु:ख से मुक्त नहीं होता !
77. गंधासक्ति
सकता है ?
78.
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गन्धाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज्ज कयाइ किंचि ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 490]
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उत्तराध्ययन 32/58
सुगन्ध में अनुरक्त मनुष्य को जरा भी सुख कैसे और कब हो
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श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [ भाग 5 पृ. +91]
रसासक्त-अकाल मृत्यु
रसेसु जो गेहिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं ।
श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 491 ]
उत्तराध्ययन 32/63
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अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस खण्ड-5 76