Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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93. त्रिविध-परिग्रह
तिविहे परिग्गहे पन्नते । तं जहा-कम्म परिग्गहे, सरीर परिग्गहे, बाहिरगभंडमत्तोवगरण परिग्गहे ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 553]
- भगवतीसूत्र 1800 परिग्रह तीन प्रकार का है - कर्म परिग्रह, शरीर परिग्रह और बाह्य भण्ड-मात्र-उपकरण परिग्रह। 94. परिग्रहः अर्गला मोक्ख वरमोत्तिमग्गस्स फलिह भूयो ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 553-555]
- प्रश्नव्याकरण 1/507 उत्तम मोक्ष-मार्ग रूप मुक्ति के लिए यह परिग्रह अर्गला रूप है । 95. देव भी अतृप्त
देवा वि सइंदगा न तत्तिं न तुढि उवलभंति । . - श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 555]
- प्रश्नव्याकरण 1/509 देवता और इन्द्र भी भोगों से न कभी तृप्त होते हैं और न संतुष्ट । 96. परिग्रह: जाल
नत्थि एरिसो पासो पडिबंधो अत्थि सव्वजीवाणं सव्वलोए । __- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 555]
- प्रश्नव्याकरण 1509 - समूचे संसार में परिग्रह के समान प्राणियों के लिए दूसरा कोई जाल एवं बंधन नहीं है। 97. परिग्रह के विविध रूप
अणंत असरणं दुरतं अधुवमणिच्चं असासयं पावकम्मणेम्मं । अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 81