Book Title: Abhidhan Rajendra Koshme Sukti Sudharas Part 05
Author(s): Priyadarshanashreeji, Sudarshanashreeji
Publisher: Khubchandbhai Tribhovandas Vora
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114. निरपेक्ष मुनि खग्गि विसाणव्वं एगजाते ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 562)
- प्रश्नव्याकरण 2/10/29 निर्ग्रन्थ मुनि गेंडे के सींग के समान अकेला होता है अर्थात् वह अन्य की अपेक्षा रखनेवाला नहीं होता है। 115. जीवन-मरण से निरपेक्ष निरवकंखे जीवियमरणासविप्पमुक्के ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 562]
- प्रश्नव्याकरण 2/10/29 मुनि जीवन और मृत्यु की आशा-आकांक्षा से सर्वथा मुक्त होते
116. शरदसलिलसम मुनिहृदय सारयसलिलं सुद्ध हियये ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 562]
- प्रश्नव्याकरण 210/29 मुनि शरत्कालीन जल के समान स्वच्छ हृदयवाला होता है। 117. श्रुति-दमन
ण सक्का ण सोउं सद्दा, सोत्त विसयमागया । रागदोसा उ जे तत्थ, ते भिक्खू परिवज्जए ।
- श्री अभिधान राजेन्द्र कोष [भाग 5 पृ. 563)
- आचारांग 2345/130 यह शक्य नहीं है कि कानों में पड़नेवाले अच्छे या बुरे शब्द सुने न जाए, अत: शब्दों का नहीं, शब्दों के प्रति जगनेवाले राग-द्वेष का त्याग करना चाहिए। 118.. संवृतेन्द्रिय
पणिहि इंदिए चरेज्ज धम्मं ।
अभिधान राजेन्द्र कोष में, सूक्ति-सुधारस • खण्ड-5 • 86