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आवश्यकमूत्रस्य
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परिपाकाय शिष्याय मृत्रार्थपदावत्व, (३) मनाध्ययनार्थमुत्साहदातृत्व (४) पूर्वापरार्थसागत्यनिपुणत्व चेति । मतिसम्पञ्चतुर्दा यथा-(१) अवग्रहः (सामान्येन पदार्थनिर्णयः), (२) ईहा (विशेपरिमर्शः), (३) अवायः (निश्चयः) (४) धारणा (कालान्तरायाविस्मरण) चेति । प्रयोगसम्पचतुर्दा यथा-(१) वादविपयकस्वसामर्थ्यज्ञान, (२) परिपत्परिज्ञान, (३) क्षेत्रपरिज्ञान, (४) वस्तुपरिज्ञान' चेति । सग्रहसम्पञ्चतुर्दा यथा-(१) गणस्थवालवृद्धादिमुनिनि कुपात्र का विचार करना, (२) पूर्व पढाए हुए सूत्रार्थ का परिपाक होने पर आगे पढाना, (३) सूत्र पढनेके लिए उत्साह देना, (४) सूत्रार्थ की पूर्वापर सगति करने में निपुण होना।
[६] मतिसम्पदा के चार भेद- (१) अवग्रह (सामान्य रूपसे पदार्थों का निर्णय करना), (२) ईहा (विशेष रूप से जानना), (३) अवाय (पदार्थ का ठीक निश्चय करना), (४) धारणा (कालान्तर में नहीं भूलना)।
[७] प्रयोगसम्पदा के चार भेद-(१) वादमें अपने सामथ्र्यका ज्ञान रखना, (२) परिषद् का ज्ञान रखना, (३) क्षेत्र का ज्ञान रखना, (४) राजा मन्त्री आदि का ज्ञान रखना।
[८] सग्रहसम्पदा के चार भेद- (१) गणमें रहे हुए बाल વિચાર કર, (૨) પ્રથમ ભણવેલા સૂત્રના અર્થને પરિપાક થયા પછી આગળ અભ્યાસ કરાવે, (૩) સૂત્રને અભ્યાસ કરવામાં ઉત્સાહ આવે, (૪) સૂરાર્થની પૂર્વાપર સગતિ કરવામાં નિપુણ થવું
(6) मतिसम्पहाना यार लेह- (१) अव-सामान्य ३५थी पहायला નિર્ણય કરે (૨) ઈહા વિશેષરૂપથી જાણવુ, (૩) અવાય-પદાર્થને બરાબર નિશ્ચય કરે (૪) ધારણુ-કાલાન્તરમા પણ ભૂલવું નહિ
(૭) પ્રયોગ સર્પદાના ચાર ભેદ (૧) વાદ કરવા વખતે પિતાના સામર્થ્યનું ज्ञान राम, (२) परिष ज्ञान समयु (3) क्षेत्रनु ज्ञान राम (४) रात, भत्री વગેરેનું જ્ઞાન રાખવું
૮) સંગ્રહ સંપદાના ચાર ભેદ– (૧) ગણુમાં રહેલા બાલ-વૃદ્ધ આદિ १-प्रयोगसम्पत्-बादमेधा। २- वस्तुपरिज्ञानराजामात्यादिपरिज्ञानम् ।