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मुनितोपणी टीका, प्रतिक्रमणाध्ययनम्-४
१५९ तथादर्शनात् , मुधातुश्च गमनार्थकस्तेन प्रति-मोक्षाभिमुख क्रम्यते-गम्यतेऽनेनेति, अथरा प्रतिशब्दस्य भृशार्थकत्वाच्छुभयोगेपु चार वार क्रमण प्रतिक्रमणम् । तत्र (पतिक्रमणे) व्यानविपयीकृतम्-'आगमे तिविहे' इति पट्टिकाया आरभ्य 'इच्छामि ठामि' इति पर्यन्त सर्व प्रस्फुटं वक्तव्य, तदनु ‘तिक्खुत्तो' इत्यस्य पाठेन सविधि वन्दना विधाय श्रमणभूत्रस्याज्ञा ग्रहीतव्या, ततो नमस्कारमन्त्रोच्चारणपूर्वक करेमि भते' इत्युचार्य माङ्गलिकमुचारणीयमिति । सम्पति माङ्गलिकपत्रमाह-चत्तारि' इत्यादि ।
॥ मूलम् ॥ चत्तारि मंगल-अरिहता मगल, सिद्धा मगल, साहू मगल, केवलिपन्नत्तो धम्मो मगल । चत्तारि लोगुत्तमा-अरिहता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहु लोगुत्तमा, केवलिपन्नत्तो धम्मो लोगुनमो । चत्तारिसरण पवजामि,-अरिहते सरण पवजामि, सिद्ध सरण पवजामि, साह सरण पवजामि, केवलिपणत्त धम्म सरण पवजामि ॥ सू० १॥ योगो में चार बार जो सक्रमण (जाना) उसको अतिक्रमण कहते हैं। इसमें 'आगमे तिविहे' से लेकर 'इच्छामि ठामि' तक व्यानमें चिन्तित सब पाटियों (पाठों) को प्रगट रूपसे घोले, बादमें 'तिक्खुत्तों के पाठसे विधिपूर्वक चन्दना करके श्रमणसूत्र की आज्ञा लेवे तर नमस्कार मन्त्र के उच्चारणपूर्वक 'करेमि भते' की पाटी गोल कर मागलिक बोले, ऐसा नियम है, हम कारण यहा मागलिक कहते हैं-'चत्तारि' इत्यादि। स भए (४) तेने प्रतिभा ४९ छ, मेमा "आगमे तिविहे" थी धन 'इन्छामि ठामि' सुधी भ्यानमा वितित थी पारिमा (8)२ २ ३३ माले पछी 'तिकखुत्तो ना ४ विधि-पूर्व पना शत श्रम सूचना भासा नभ-२ भत्रना क्या२१ ५ (करेमि मते) नी पारी मान માગલિક બલવું એ નિયમ છે એટલા માટે અહિંયા માંગલિક કહે છે 'चनारि स्यादि