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हिन्दी - परिशिष्ट
॥ वारह व्रतों के अतिचार सहित पाठ ॥
पहिला अणुव्रत- बुलाओ पाणाड़वायाओ वेरमण, प्रसजीव - बेडदिय तेsदिय चउरिदिय पचिदिय जानके पहिचानके सङ्कल्प करके उसमे स्वसम्न्धी - शरीर के भीतर में पीडाकारी सापराधी को छोड निर पराधी को आकुट्टी की बुद्धि (हनने की बुद्धि) से हनने का पच्चक्खाण जावज्जीवाए दुविह तिविहेण न करेमि, न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा, ऐसे पहिले स्थूल प्राणातिपात विरमण - व्रत के पच अडयारा पेयाला जाणिव्या, न समायरियन्वा, तजहा ते आलोड बधे वहे उविच्छेए अडभारे भत्तपाणविच्छेए, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कड |
दूजा अणुव्रत - वूलाओ मुसावायाओ वेरमण, कन्नालिए, गोवालिए, भोमा लिए, णासावहारी (धापणमोसो) कूडसक्खिवज्जे ( कूडी साख ) इत्यादिक मोटा झूठ बोलने का पचक्खाण जावजीचाए दुविह तिविहेण न करेमि न कारवेमि मणसा वयसा, कायसा, एव दूजा स्थूल मृपावाद विरमणव्रत के पच अइयारा जाणिवा न समायरियव्वा, तजहा ते आलोउ सहसभक्खाणे, रहस्सन्भक्खाणे, सदारमंतभेए, मोसोवएसे, कुडलेहकरणे, जो मे देवसिओ अइयारो कओ तस्स मिच्छामि दुक्कड |
तीजा अणुव्रत - वूलाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं, खात खनकर, गाठ ग्वोलकर, ताले पर कुजी लगाकर, मार्ग मे चलते को लुट कर, पडी हुई घणियाती मोटी वस्तु जानकर लेना इत्यादि मोटा अटतादान का पचवाण, सगे-सम्बन्धी, व्यापार - सवधी तथा पडी निर्भमी वस्तु के उपरान्त अदत्तादान का पचखाण जावज्जीवाण दुविह तिविहेण न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा, एव तीजा स्थूल अदत्तादान विरमणव्रत के पंच अडयारा जाणिवा न समायरिया, तजहा ते आलोउ तेनारडे तकरप्पओगे, विम्वरज्जाइक्कमे, कूड़्तुले, कृडमाणे, तप्पडिख्वगववहारे, जो में देवसिओ अयारों कओ तस्स मिच्छामि दुक्कड |
१ 'स्वदारसन्तोष' ऐसा पुरुष को बोलना चाहिये, और स्त्री को स्वपतिसन्तोष ऐसा बोलना चाहिये ।