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मुनितोपणी टीका योल्यो होऊ, काल थकी पहर रात्रि गयो पीछे गाढे गाढे शब्द बोल्यो होऊ, भाव धकी रागद्वेष से बोल्यो होऊ, गुण यकी सवर गुण, दूसरी भापासमिति के विषय जो कोई पाप दोप लाग्यो होय तो देवसिय सवधी तेस्स मिच्छामि दुधड ।
तीसरी एपणासमिति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊ, द्रव्य धकी सोले उदगमणका दोप, सोले उत्पातका दोप, दश एपणाका दोप इन बयालीश दोप सहित आहार पाणि लायो होऊ, क्षेत्र धकी दो कोश उपरात लेजाईने भोगव्यो होय काल यकी पहेला पहर को छेला पहर में भोगव्यो होऊ, भाव थकी पाच माडलाका दोप न टाल्या होय गुण यकी सवरगुण, तीसरी एपणा समिति के विषय जो कोई पाप दोप लाग्यो होऊ तो देवसिय सन्धी तस्स मिच्छामि दुक्कड ।।
चोथी आयाणभंडमत्तनिक्खेवणासमिति के विषय जो कोई अतिचार लाग्यो होय तो आलोऊ, द्रव्य यकी भाण्डोपकरण अजयणा से लीधा होय अजयणा से रख्या होय, क्षेत्र यकी गृहस्थके घर आगणे रख्या होय, काल यकी कालोकाल पडिलेणा न की होय, भाव यकी ममता मृी सरित भोगव्या होय, गुण यकी सवर गुण, चोथी समिति के विपय लो कोई पाप दोप लाग्यो होय तो देवसिय सम्बन्धी तस्स मिच्छामि दुक्कड ॥ ४ ॥
पाचवी उच्चार-पासवण-खेल-जल्ल- सिंघाण-परिहावाणिया समिति के विपय जो कोई अतिचार लाग्यो होय ते आलोऊ, द्रव्य थकी ऊची नीची जगह परठव्यो होय, क्षेत्र यकी गृहस्थ के घर आंगणे परठव्यो होय, काल थकी दिनको विना देखे रातको विना पूजे परठव्यो होय, भावयकी जाता आवसही आवसही, न करी होय, परिठवते पहले शक्रेन्द्र महाराज की आज्ञा नहीं ली होय, थोडो पृजी ने घणो परिठव्यो होय, परठने के बाद तीनवार वोसिरे वोसिरे न किन्हो होय, आवता नि.सही निश्सही न करी होय, ठिकाणे आईने काउसग्ग न कर्यों होय, गुणथकी सवरगुण,