Book Title: Aagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 182
________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [-] उपोद्घातनिर्युक्तिः ॥२२९॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + वृत्तिः) भाग-२ अध्ययनं [-] निर्युक्तिः [३४१-३४३], वि० भा० गाथा [-] भाष्यं [४...] मूलं [- / गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र -[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः गमनिका - ताते - त्रैलोक्यगुरौ पूजिते सति चक्रं पूजितमेव, तत्पूजानिबन्धनत्वाच्चक्रस्य, तथा पूजामईतीति पूजाईतातो वर्त्तते, देवेन्द्रादिनुतत्वात्, तथा इहलौकिकं चक्रं, तुरेवकारार्थः, स चावधारणे, किमवधारयति १ - ऐहिकमेव | चक्रं, सांसारिकसुखहेतुत्वात्, परलोकसुखावहस्तातः, शिवसुखहेतुत्वादिति गाथार्थः ॥ तस्मात्तिष्ठतु तावच्चक्रं, तातस्य पूजां कर्त्तुं युज्यत इति सम्प्रधार्य तत्पूजाकरणसन्देश व्यापृतो बभूव । इदानीं कथानकम्-भरहो सविट्टीए भगवंतं बंदि पयट्टो, मरुदेवी सामिणी य भगवंते पवइए भरहरज सिरिं पासिऊण भणियाइया - मम पुत्तस्स एरिसी रज्जसिरी आसि, संपर्क सो खुहापिवासापरिगओ नग्गओ हिंडइति उबेयं करियाइया, भरहस्स तित्थगरविभूई वन्ने॑तस्सवि न पत्तिचि | याइया, पुत्तसोगेण य से किल झामलं चक्खुं जायं रुयंतीए, तो भरहेण गच्छंतेण विन्नत्ता-अम्मो ! एहि जेण भगवओ विभूतिं दंसेमि, ताहे भरहो (तं) हरिथखंधे पुरओ काऊण निग्गओ, समोसरणदेसे य गयणतलं सुरसमूहेण विमाणारूटेणोवरंतेण वीरायंतघयवर्ड पहयदेवदुंदुहिनिनायापूरियदिसामंडलं पासिऊण भरहो भणियाइओ – पिच्छ जइ एरिसी रिद्धी मम कोडिसयसहस्सभागेणवि, ततो तीए भगवओ छत्ताइच्छन्तं पासंतीए चेव केवलमुप्पण्णं, अन्ने भांति-भगवओ धम्मकहासदं सुर्णेतीए, तकालं च तीए खुट्टमाउयं ततो सिद्धा, इह भरहोसप्पिणीए पढमसिद्धोत्तिकाऊण देवेहिं पूजा कया, सरीरं च खीरोए छूटं, भगवं च समोसरणमज्झत्थो सदेवमणुयासुराए धम्मं कहेइ, तस्थ उसभसेणो नाम भरहपुत्तो पुवभवबद्धगणहरनामगुत्तो जायसंवेगो पवइओ, बंभी य पवइया, भरहो सावगो जाओ, | सुंदरी पवयंती भरहेण इत्थीरयणं भविस्सइति निरुद्धा साविया जाया, एस चढविहो समणसंघो, ते य तापसा भग For Peace & Personal Use Only 182~ केवलं भर तपूजा म रुदेवीकेवलमोक्षी ॥२२९॥

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