Book Title: Aagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 276
________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्ति:) भाग-२ अध्ययनं H, नियुक्ति: [४७२-४७३], वि०भा०गाथा H], भाष्यं [११४...], मूलं [-/गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] “आवश्यक नियुक्ति: एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: उपोद्धात- नियुको श्रीवीरचरिते प्रत सत्राक गोशालायां प्रसूता, दारकस्य गुणनिष्पनं नाम गोशाल इति, भगवतः प्रथमं पारणकं विजयस्व गृहे विपुलमो-गोशालकजनविधिना, द्वितीयमानन्दस्य गृहे खाद्यविधिना, तृतीयं सुनन्दस्य गृहे सर्वकामगुणं, भावार्थः शेषः प्रागेवोक्तः॥ मीलनं गोसालोवि कत्तियपुन्निमाए दिवसतो पुच्छइ-किमहं अज भत्तं लभेजा, सिद्धत्थेण भणियं-कोहवकूर अंविलेण कूडगरूवं च दक्खिणं, सो नवरिं सबायरेण हिंडितो, एवं तेण भंडीसुणएणेव न किंचि संभाइयं, ताहे भवरण्हे एकण 8 कम्मकारएणं अंबिलेण कूरो दिन्नो, ताहे जिमितो, रूवगो य से दक्षिणं दिनो, तेण परिक्खावितो जाव कूडगो, ताहे भणइ-जेण जहा भवियब न तं भवइ अन्नहा, लजितो आगतो, ततो भयवं चत्वमासक्खमणपारणगे नालंदातो निग्ग-12 तूण कोल्लागसन्निवेसं गतो, तत्थ बहुलो माहणो माहणे भोयावेइ घयमहुसंजुत्वेणं परमन्नेण, ताहे तेण सामी पडिलाभितो, |पंच दिवाई पाउम्भूयाई, गोसालोऽवि तंतुवायसालाए सामि अपेच्छमाणो रायगिहे सम्भितरवाहिरे गवेसेइ, जाहेन पेच्छइ ताहे नियगोवकरणं धीयाराण दाउं सउत्तरोठं मुंडणं काउं गतो कोल्लागं, तत्थ भयवतो मिलितो, ततो भयवं गोसालेण सम सुवण्णखलयं वच्चइ, तत्वंतरा गोवालगा वइयाहिंतो खीरं गहाय महल्लीए थालीए नवएहिं तंदुलेहि। पायसं उवक्खडंति, ततो गोसालो भणइ-पह भयवं! पत्थ भुंजाम, सिद्धत्यो भणइ-एस निम्माणं व न वचइ, एस. |॥२७६॥ भजिहिइ उल्लुहिजंती, ताहे सो असद्दहंतो ते गोवए भणइ-तीताणागयजाणतो भगइ-एसा थाली भजिहिइ, तो पयचेण सारक्खह, ताहे पयत्वं करेंति, वसविदलेहि सा बद्धा थाली, तेहिं अतिवहुया तंदुला छूढा, सा फुटा, पच्छा। दीप अनुक्रम *4X andre ~276~

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