Book Title: Aagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 258
________________ आगम (४०) “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्तिः ) भाग-२ अध्ययनं , नियुक्ति: [४५९-४६०, वि०भा०गाथा H, भाष्यं [१११], मूलं - /गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत उपोद्घात-1 ते बाला चरंता अडविं पविट्ठा, सो गोवो गामातो निग्गतो बइले म पेच्छा, तसो सामिपुछा-कहिं वइलाकमोरे कानियुक्ती |सामी तुहिको अच्छद, सो चिंतइ-एस न याणइ, ताहे मग्गि पयत्ती, सवरसिपि से बहला सुधिरं भमित्ता गामसमी- योत्सर्गः श्रीवीर- बमागया माणुसं इष्टण रोमर्थतः अच्छति, ताहे सो आगतो, ते पहले तत्थेव निविटे पेच्छइ, ताहे आसुरुचो, एएणगोपोपद्रव लिदामएण आहणामि, एएण मम बल्ला हरिया, पभाए घेत्तण वच्चीहामित्ति, साहे सक्को देवराया चिंतिइ-किं बज सामी ४ा पारणं च पढमदिवसे करेइ , जाव पेच्छइ तं गोवं धावतं, ताहे सो तेण थंभिओ, पग्छा आगतो तंतजेइ- दुराम याणसि ॥२६७॥ सिद्धस्थरायपुत्तो एस पवइतो, एयंमि अंतरे सिद्धत्थो सामिस्स माउस्सियापुस्तो चालतबोकम्मेण वाणमंतरो जातो, साहे सको भणइ-भयवं तुज्झ स्वसग्गबहुलं, अहं वारस परिसरणि तुझ वेषाव करेमि, ताहे सामिणा भणियं-चो खलु देविंदा! एवं भूयं वा भवइ वा भविस्सइ वा गं अरहंता देविदाण वा असुरिंदाण वाणीसाए केवलनाणमुपा-1 है| इस सप्पायति सप्पाइस्संति वा, तवं या करिसुवा करेंति वा करिस्संति था, अरईता सएण उड्डाणबलवीरियपुरिस कारपरकमेणं केवलनाणमुप्पाईसु उपायंति उप्पाइस्संति था, ताहे सक्केण सिद्धत्यो भण्णइ-एस तव नियल्लतो, पुणोऽवि मम धयणं, सामिस्स जो मारणांतियउपसगं करेइ तं वारेहि, तेण पडिस्सुयं-एवं होउ, सको पडिगतो, सिद्धस्थो ठितो, तद्दिवसं सामिस्स छट्ठभत्ते पारणगं, ततो भयवं कोल्लागे संनिवेसे भिक्खापविष्टो पयमहुसंजुत्तेणं परमण्णेण बहु-IN॥२६॥ लेण माहणेण पडिलाभितो, तत्थ पंच दिखाई पाउम्भूयाई । एतदेवाह गोवनिमित्तं सकस्स आगमो वागरेइ देविंदो। कुल्लाग पहुल छहस्स पारणे पयस वसुहारा ॥५६१ ॥ दीप अनुक्रम an ForFive Persanamory viewsanelibrary.com ~258~

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