Book Title: Aagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 263
________________ आगम (४०) मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: 0 4- प्रत +% सत्राक Xxxhot 8 4+ स्थिप्रामसंज्ञामित्वं प्राप्तः, तत्र हि वेगवती नाम नदी, ता धनदेवाभिधः सार्थवाहः प्रधानमवामेकाकटसहितः समुपत्तीर्णः, तस्य च गोरनेकशकटसमुत्तारणतो हृदयच्छेदो बभूव, सार्थवाहस्तं तत्रैव परित्यज्य गतः, स बर्द्धमाननिवासिलो कापतिजागरितो मृत्वा तत्रैव शूलपाणिनामा यक्षो बभूव, दृष्टमयलोककारितायतने स प्रतिष्ठिता, इन्द्रशर्मनामा प्रतिजागरको निरूपित इत्यक्षरार्थः । कथानकशेषम् जाहे सो अट्टहासाइणा भयवंत खोभेउ पयत्तो ताहे सबो लोओ सई सोऊण भौती, अज सो देवजओ मारिबइ। तत्थ उप्पलो नाम पुराणो पासावचिजो परिषायशो गईगमहानिमित्तजाणगो जणपासाजो सोऊण मा तित्थगरो होजा, अद्धिई करेइ, बीमेड य रतिं गंतुं, ताहे सो वाणमंतरो जाहे सद्देण न बीहेइ ताहे हस्थिरूवेणुवसग्नं करेइ, पिसायरूवेण नागरुषेण य, एएहिवि जाहे न तरह खोभे ताहे सत्सविहं वेयणं उदीरेइ, तंजहा-सीसवेयणं नासवेवणं दसवेयणं कण्णवेयणं अपिछवेयण नहवेयणं पिट्टिवेयणं, एकेका वेयणा पागयजणस्स जीवियं संकामिकं समस्था, किं पुण सप्तवि समेथातो, तातो भयवं धजलातो अहियासेइ, ताहे सो देवो जाहे न सरइ चालेड ताहे परिस्सेतो पायवाटतो| सामेइ-लमह महारगा इति, ताहे सिद्धत्थो कुतोवि आगतो उद्धाइतो भणति- भो सूलपाणी अपस्थियषत्वचा न चाणसि सिद्धत्थरायपुत्तं भय सिस्थयर, जा एवं सको माणइ सो तुम मिधिसवं करेइ, ताहे सो भीतो दुगुणं सामेह, सिद्धत्थो से धम्मं कहेइ, तत्थ उवसंतो महिमं करेइ सामिस्स, तस्य लोगों चिंतेइ सो तं देवजयं मारिता झ्याणि कीलइ, तत्य सामी देसूणे चत्वारि जामे अतीव परितावितो पभायका मुहुचमेत निदापमा गतो, सत्यिमे ५+ दीप अनुक्रम +1 7 - wwwviewsanelibrary.com ~263

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