Book Title: Aagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 259
________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+वृत्ति:) भाग-२ अध्ययनं H, नियुक्ति: [४६१], विभा गाथा , भाष्यं [१११...], मूलं - /गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र-[४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्ति: प्रत सत्राक | ताडनायोचतगोपनिमित्तं प्रयुक्तावधेः शनस्य-देवराजस्य आगमनभागमोऽभवत्, विनिवार्य व मोपं देवेन्द्रो | भगवन्तमभिवन्ध व्याकरोति-अभिधते-भगवन् ! तवाहं द्वादश वर्षाणि वैयावृत्त्वं करोमीत्यादि, पाठान्तरं 'वागरिंसु देविंदो' व्याकृतवानित्यर्थः, सिद्धार्थ वा तत्कालप्राप्त व्याकृतवान् देवेन्द्रः-भगवान् त्वया न मोक्तव्य इति । गते देवराजे | भगवतोऽपि कोलाके सन्निवेशे बहुलो नाम ब्राह्मणः षष्ठस्य-तपोविशेषस्य पारणके पायसमुपनीतवान् 'वसुहारेति तद्गृहे वसुधारा पतिता, एष गाथाक्षरार्थः । कथानकम्-ततो सामी विहरमाणो गतो मोरागसंनिवेस, तत्थ मोराए दुइजंता नाम पासंडत्था, तेर्सि तस्थ आवासो, तेसिं च कुलवती भयवतो पिउमित्तो, ताहे सौ सामिस्स सागरण ! साउवहितो, सामिणा प्रवपयोगेण पाहा पसारिया, सो भणह-अस्थि कुमारवर | एत्थ घरा, अच्छाहि तत्थ, सामी दएमराई च वसित्ता पच्छा गतो विहरइ, गच्छत्तस्स य तेण भणिय-विवित्ता वसहीती जइ वासारत्तो कीरइ तो आग-1 कारख, अणुग्गहीया होजामो, ताहे सामी अट्ठ उउबद्धिए मासे विहरित्ता वासावासे संपत्ते तं देवं दूइज्जंतगगाम: पह, तत्थगंमि उडए वासावासं ठितो, पढमपाउसै य गोरूवाणि चारिं अलभंताणि जुन्नाणि तणाणि खायंति, ताणि य पराणि उबेलेंति, पच्छा ते तावसा वारेति, सामी न निवारेह, परछा दूरसगा तस्स कुलषइस साहिति-जहा एस एयाणि न पारेइ, ताहे सो कुलवई अणुसासइ, जहा-कुमारवर सधणीवि ताव नेहूं रक्खइ, तुमपि वारिज्जासिति सप्पि-। वासं भणइ, ताहे सामी अघियत्तोग्गहोति कार्ड निरगतो, इमेण तेण पंच अभिम्गहा गहिया, संजहा-अचियत्तोगहे | बसिय १ निचं बोसट्टे काए २ मोणं च पाणीसु भोत्तवं ४, गिहत्थी न दियघो-न अन्भुद्धेययो ५, एए पंच दीप अनुक्रम te Farvey ~259~

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