Book Title: Aagam 40 Aavashyak Malaygiri Vrutti Mool Sootra 1 Part 02
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४०)
प्रत
सूत्रांक
[H]
दीप
अनुक्रम
[-]
“आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + वृत्ति भाग-२
अध्ययनं [-], निर्युक्तिः [ ४५८ ], वि० भा० गाथा [-] भाष्यं [ ४६-४७], मूलं [- / गाथा-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र-[१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं मलयगिरिसूरि-रचिता वृत्तिः
॥२५३॥
उपोद्घात| अधुनाऽपहार द्वारमभिधीयते- तेणं कालेणं तेणं समएणं सके नामं देविंदे देवराया बज्जपाणी सोहम्मे कप्पे सोहम्मवहिंसए निर्युको विमाणे सभाए सुहम्माए सर्कस सीहासणंसि मुहनिसने दिवाई मोगाई भुंजमाणे इमं जंबुद्दीवं दीत्रं कहंचि आभोएर, श्रीवीर है तत्थ समर्ण भयवं महावीरं देवाणंदाए कुच्छिसि गन्भत्ताए वर्कतं पासिता हट्टतुट्ठे हरिसवसविसप्पमाणहियए सीहासचरिते णाओ अच्भुट्टे, अन्भुट्टेत्ता पायपीढातो पचोरुहइ, पश्चोरुहित्ता नाणामणिरयण मंडियातो पाउयातो ओमुयइ, ओमुइता एगसाडियं उत्तरासंगं करेइ, करिता तित्थयराभिमुहे सत्तटु पयाई अणुगच्छा, अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, उत्पाटय| तीत्यर्थः, दाहिणं जाणुं धरणितलं सि निहट्ट तिक्खुतो मुद्धाणं धरणितलंस निवाडे, निवाडित्ता पज्जुनमद, ततो करयलपरि*ग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं व्यासी-नमोत्यु णं अरहंताणं भगवंताणं आइगराणं जाव सिद्धिंग इनामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमोत्थु णं समणस्स भगवतो महावीरस्स (आइगरस्स ) तित्थगरस्स जाव सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविजकामस्स, वंदामि णं भगवंतं तत्थ गयं इहगतेत्तिक बंदर नमसइ, वंदित्ता नर्मसित्ता सीहासणवरंसि पुरस्थाभिमु संनिसण्णे । तए णं सकस्स देविंदस्स देवरनो अयमेयारूवे संकप्पे समुप्पण्णे-उप्पण्णे खलु समणे भयवं मद्दात्रीरे देवाणंदाए माहणीए कुच्छिसि तन एयं भूयं वा भवइ वा भविस्सइ वा जण्णं अरहंता वा चकवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसु वा दरिद्दकुलेसु वा भिक्खागकुलेसु वा आयाइंसु वा आयायंति वा आया| इस्संति वा, एवं खलु अरहंता वा जाव वासुदेवा उग्गकुलेसु वा भोगकुलेसु वा रायनकुलेसु वा इक्खागुकुलेसु वा अन्न||यरेसु वा तहप्पगारेषु विसुद्धजाइएस कुठेसु महंतं रज्जसिरिं कारेमाणेसु गन्भं वक्कमिंसु वा वक्रर्मति वा वक्कमिस्संति वा,
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~ 230~
देवानन्दा
स्वप्ताः श
ऋस्तुतिः गर्भसंक्रम
विचारः
॥ २५३ ॥
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