Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan
Author(s): Narendrasinh Rajput
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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ix पं. आचार्य गोपीलाल "अमर", डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य आदि के नाम सविशेष उल्लेखनीय हैं । इस अध्याय में कतिपय ऐसी विदुषी महिलाओं का वर्णन भी उपलब्ध है जिन्होंने जैनकाव्यालोक को सुसमृद्ध किया है । विदुषी महिलाओं में कु. माधुरी शास्त्री एवं श्रीमती मिथिलेश जैन के नाम महत्त्वपूर्ण हैं । जैनेतर रचनाकारों में सर्वश्री डॉ. दामोदर शास्त्री, डॉ. रमानाथ पाठक "प्रणयी" पं. सिद्धेश्वर वाजपेयी, श्री ब्रजभूषण मिश्र और पं. बिहारी लाल शर्मा प्रभृति जैनेतर रचनाकारों द्वारा प्रणीत संस्कृत काव्यों का विधिपूर्वक विश्लेषण किया गया है ।
विवेचित रचनाकारों में अनेक रचनाकार महाकवित्व की गरिमा से अभिमंडित हैं । संस्कृत भाषा पर उनका असाधारण अधिकार है । उनकी रचनाओं में मौलिक भावाभिव्यंजना
और प्रस्तुति की अभिरामता पदे-पदे निदर्शित है । इन्हीं तथ्यों को उजागर करना इस शोध प्रबन्ध के तृतीय तथा चतुर्थ अध्याय की इष्टापूर्ति है । पंचम अध्याय
में बीसवीं शताब्दी के जैन काव्यों का साहित्यिक एवं शैलीगत अध्ययन किया गया
इस अध्याय में साहित्य शास्त्र में निदर्शित काव्य के विविध अंगों रस, छन्द, अलङ्कार, रीति, गुण वाग्वैदग्ध्य एवं भाषा पर यथेष्ट शोध-परक सोदाहरण समीक्षा की है । ऐसा करते समय शोध कर्ता को कुछ ऐसे तथ्य भी हस्तगत हुए हैं, जो बीसवीं शताब्दी के सामान्य रचनाकारों में असंभव नहीं, तो कठिनतर अवश्य हैं । जैसे-चित्रालङ्कार के अन्तर्गत विविध प्रकार के बंधों की संयोजना,काव्यशास्त्र में प्रयुक्त वैदर्भी आदि रीतियों के अतिरिक्त व्याख्यात्मक, विवेचनात्मक, उपदेशात्मक एवं संवादात्मक शैलियों का आविर्भाव । इन रचनाकारों ने कतिपय लाक्षणिक प्रयोग भी किये हैं । षष्ठ अध्याय
में बीसवीं शताब्दी के जैन काव्यों का वैशिष्ट्य, प्रदेय तथा तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अनुशीलन किया गया है ।
इस अध्याय में निदर्शित कि - जैन रचनाकार इतर रचनाकारों से किन अर्थों में कब और कहाँ-कहाँ वैशिष्ट्य रखते हैं, उनका भारतीय साहित्य, संस्कृति और काव्य शास्त्र को समृद्ध बनाने तथा चरितार्थ करने में किस-किस प्रकार का योगदान है तथा इस शताब्दी की प्रमुख जैन रचनाओं का तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अनुशीलन भी किया गया है ।
___ इस अध्याय के अंत में शोधकर्ता के महत्त्वपूर्ण सुझाव भी अंकित हैं । जो विवेच्य शताब्दी के जैन काव्यों के बहु-आयामी स्वरूप का बृहत् स्तर पर प्रचार-प्रसार तथा उनकी सार्वभौम सत्ता प्रतिष्ठापित करने के लिए आवश्यक हैं ।
विवेच्य शोध विषय के समग्रतया अनुशीलन पर शोधकर्ता को जैन काव्य की निम्नलिखित विशेषताएँ और भी प्राप्त हुई हैं -
(1) संस्कृत जैन काव्यों की आधार शिला द्वादशांग वाणी है । इस वाणी में आत्म विकास द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है । रत्नत्रय-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र की साधना द्वारा मानव मात्र चरम सुख को प्राप्त कर सकता है । संस्कृत भाषा में रचित प्रत्येक जैन काव्य उक्त संदेश को ही पुष्पों की सुगन्ध की भांति (विकीर्ण करता है।