Book Title: 20 Vi Shatabdi Ke Jain Manishiyo Ka Yogdan Author(s): Narendrasinh Rajput Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra ByavarPage 13
________________ viii खण्ड (अ) - में संस्कृत साहित्य के आविर्भाव और विकास का संक्षिप्त इतिवृत्त समाविष्ट है । इस अध्याय के - खण्ड (ब) - में बीसवीं शताब्दी की साहित्यिक पृष्ठभूमि का विवेचन किया है। द्वितीय अध्याय - में बीसवीं शताब्दी में रचित जैन काव्य साहित्य का अन्त विभाजन किया है । इस अध्याय को तीन खण्डों में विभक्त किया है - खण्ड (अ)- में (मौलिक रचनाएँ) इसमें महाकाव्य, खण्डकाव्य, दूतकाव्य, स्तोत्रकाव्य, शतककाव्य, चम्पू काव्य, श्रावकाचार और नीति विषयक काव्यों और दार्शनिक रचनाओं की सूची समाविष्ट है। खण्ड (ब) - में (टीका ग्रन्थ) और खण्ड (स) - में गद्य कृतियों की जानकारी दी गई है । तृतीय अध्याय में बीसवीं शताब्दी के साधु-साध्वियों द्वारा प्रणीत प्रमुख जैन संस्कृत काव्यों का अनुशीलन किया गया है । इस अध्याय में जैन संस्कृत काव्य और काव्य रचना के मुख्य आधार पर प्रकाश डालने के उपरांत जैन संस्कृत काव्यों की विशेषताएँ स्पष्ट की है। इस शताब्दी के जैन मनीषियों और उनकी काव्य कृतियों का अनुशीलन करते हुए सर्व श्री आचार्य ज्ञानसागर मुनि, आचार्य विद्यासागर मुनि, आचार्य कुन्थुसागर मुनि, आचार्य अजित सागर मुनि, आर्यिका सुपार्श्वमती माता जी, आर्यिका ज्ञानमती माता जी, आर्यिका विशुद्धमती माता जी और क्षुल्लिका राजमती माता जी के महनीय कृतित्व का सांगोपांग विश्लेषण किया है । चतुर्थ अध्याय में बीसवीं शताब्दी के मनीषियों द्वारा प्रणीत प्रमुख जैन संस्कृत काव्यों का अनुशीलन सन्निविष्ट है । इसके पूर्ववर्ती - तृतीय अध्याय का पूरक ही है यह चतुर्थ अध्याय । वस्तुतः इसे तृतीय अध्याय के तारतम्य में ही पढ़ा जाना चाहिये । किन्तु शोध प्रबंध के अध्याय का आकार बहुत बढ़ा नहीं हो जावे एक तो इस भय से, और दूसरे, रचनाकारों का आश्रमपार्थक्य तथा उनकी रचना-धर्मिता, लेखनी का निजी वैशिष्ठ्य तथा स्वरूप सुस्पष्ट रेखांकित हो सके, इसलिए मैंने तृतीय अध्याय में केवल जैन साधुओं-साध्वियों द्वारा प्रणीत जैन संस्कृत काव्यालोक का अनुशीलन किया है । प्रस्तुत चतुर्थ अध्याय में उन सभी प्रमुख रचनाकारों को सन्दर्भित करके अनुशीलन किया गया है, जिन्होंने जैन विषयों पर संस्कृत में काव्य रचना की है । इस अध्याय में विवेचित अनेक रचनाकार जैन परंपरा में जन्मे हैं और बहुत से रचनाकार जैनेतर परंपरा में । सभी ने समवेत स्वर लहरी में संस्कृत जैन काव्य रचना के प्रमुख आधार - "द्वादशांग वाणी"- में विधिवत् अवगाहन किया है और अपने-अपने प्रशस्त क्षयोपशम के आधार पर भगवती वाग्देवी के अक्षय्य भाण्डार की श्रीवृद्धि की है। इस अध्याय के प्रमुख रचनाकारों में अनेक रचनाकार राष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त प्रथम श्रेणी के मूर्धन्य मनीषी हैं । इनमें सर्व श्री डॉ. पन्नालाल जी साहित्याचार्य, पं. मूलचन्द्र जी शास्त्री,पं. जवाहर लाल सिद्धांत शास्त्री, प्रो. राजकुमार साहित्याचार्य, डॉ. भागचन्द्र जैन "भागेन्दु", पं. भुवनेन्द्र कुमार शास्त्री, पं. कमलकुमार न्यायतीर्थ, पं. अमृतलाल शास्त्री साहित्य-दर्शनाचार्य,Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 326