Book Title: Apbhramsa Hindi Vyakaran
Author(s): Kamalchand Sogani, Shakuntala Jain
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य हेमचन्द्र-रचित सूत्रों पर आधारित अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण संपादन डॉ. कमलचन्द सोगाणी लेखिका श्रीमती शकुन्तला जैन eir णाणुज्जोवो जोबी जैनविद्या संस्थान श्री महावीरजी प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी FOराजस्थान Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य हेमचन्द्र-रचित सूत्रों पर आधारित अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण संपादन डॉ. कमलचन्द सोगाणी निदेशक जैनविद्या संस्थान-अपभ्रंश साहित्य अकादमी लेखिका श्रीमती शकुन्तला जैन सहायक निदेशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी जाणुज्जीवजात जैनविद्या संस्थान श्री महावीरजी प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी राजस्थान For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी जैनविद्या संस्थान दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी श्री महावीरजी - 322 220 (राजस्थान) दूरभाष – 07469-224323 प्राप्ति-स्थान 1. साहित्य विक्रय केन्द्र, श्री महावीरजी . 2. साहित्य विक्रय केन्द्र दिगम्बर जैन नसियाँ भट्टारकजी सवाई रामसिंह रोड, जयपुर - 302 004 दूरभाष - 0141-2385247 प्रथम संस्करण 2012 सर्वाधिकार प्रकाशकाधीन मूल्य - 350 रुपये ISBN No. 978-81-921276-9-9 पृष्ठ संयोजन फ्रेण्ड्स कम्प्यूटर्स जौहरी बाजार, जयपुर - 302003 दूरभाष - 0141-2562288 मुद्रक जयपुर प्रिण्टर्स प्रा. लि. एम.आई. रोड, जयपुर - 302 001 For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका पृष्ठ संख्या क्र.सं. विषय प्रकाशकीय प्रारम्भिक viii 1X 76 1. संज्ञा शब्दों के विभक्ति प्रत्यय 2. सर्वनाम शब्दों के विभक्ति प्रत्यय 3. क्रियाओं के कालबोधक प्रत्यय 4. कृदन्तों के प्रत्यय 5. भाववाच्य एंव कर्मवाच्य के प्रत्यय स्वार्थिक प्रत्यय 7. प्रेरणार्थक प्रत्यय 8. संख्यावाची शब्द 9. अव्यय 10. विविध परिशिष्ट - 1 संज्ञा शब्दों की रूपावली परिशिष्ट - 2 सर्वनाम शब्दों की रूपावली परिशिष्ट - 3 क्रियारूप व कालबोधक प्रत्यय परिशिष्ट - 4 संख्यावाची शब्द की रूपावली परिशिष्ट - 5 आचार्य हेमचन्द्र-रचित सूत्रों के सन्दर्भ सन्दर्भ ग्रन्थ सूची 87 94 110 117 118 121 For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्य हेमचन्द्र - रचित सूत्रों पर आधारित 'अपभ्रंश - हिन्दी- व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय 'अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण' अध्ययनार्थियों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। तीर्थंकर महावीर ने जनभाषा प्राकृत' में उपदेश देकर सामान्यजन के लिए विकास का मार्ग प्रशस्त किया। प्राकृत भाषा ही अपभ्रंश के रूप में विकसित होती हुई प्रादेशिक भाषाओं एवं हिन्दी का स्त्रोत बनी। अतः हिन्दी एवं अन्य सभी उत्तर भारतीय भाषाओं के विकास के इतिहास के अध्ययन के लिए 'अपभ्रंश भाषा' का अध्ययन आवश्यक है। - 'अपभ्रंश ईसा की लगभग सातवीं से तेरहवीं शताब्दी तक सम्पूर्ण उत्तर भारत की सामान्य लोक-जीवन के परस्पर व्यवहार की बोली रही है। हमारे देश में प्राचीनकाल से ही लोकभाषाओं में साहित्य-रचना होती रही है। 'अपभ्रंश' भी एक ऐसी ही लोकभाषा/जनभाषा थी जिसमें जीवन की सभी विधाओं में पुष्कलमात्रा में साहित्य रचा गया। अपभ्रंश साहित्य की विशालता, लोकप्रियता और महत्ता के कारण ही आचार्य हेमचन्द्र ने अपने प्राकृत-व्याकरण' के चतुर्थ पाद में सूत्र संख्या 329 से 446 तक स्वतन्त्र रूप से अपभ्रंश भाषा की व्याकरण-रचना की। For Personal & Private Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि अपभ्रंश भारतीय आर्यभाषाओं (उत्तर - भारतीय भाषाओं) की जननी है, उनके विकास की एक अवस्था है। डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी के अनुसार- 'साहित्यिक परम्परा की दृष्टि से विचार किया जाए तो अपभ्रंश के सभी काव्यरूपों की परम्परा हिन्दी में ही सुरक्षित है।'' द्विवेदी जी ने तो अपभ्रंश को हिन्दी की 'प्राणधारा' कहां है। हिन्दी एवं अन्य सभी उत्तर- भारतीय भाषाओं के इतिहास को जानने के लिये अपभ्रंश का अध्ययन आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है। अतः राष्ट्रभाषा हिन्दी सहित आधुनिक भारतीय. भाषाओं के सन्दर्भ में यह कहना कि अपभ्रंश का अध्ययन राष्ट्रीय चेतना और एकता का पोषक है उचित प्रतीत होता है। अपभ्रंश साहित्य के अध्ययन-अध्यापन एवं प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित 'जैनविद्या संस्थान' के अन्तर्गत अपभ्रंश साहित्य अकादमी की स्थापना सन् 1988 में की गई। अकादमी का प्रयास है- अपभ्रंश के अध्ययन-अध्यापन को सशक्त करके उसके सही रूप को सामने रखना जिससे प्राचीन साहित्यिक- निधि के साथ-साथ आधुनिक आर्यभाषाओं के स्वभाव और उनकी सम्भावनाएँ भी स्पष्ट हो सकें। A वर्तमान में अपभ्रंश भाषा के अध्ययन के लिए पत्राचार के माध्यम से अपभ्रंश सर्टिफिकेट व अपभ्रंश डिप्लामो पाठ्यक्रम संचालित हैं, ये दोनों पाठ्यक्रम राजस्थान विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त हैं। किसी भी भाषा को सीखने, जानने, समझने के लिए उसके रचनात्मक स्वरूप / संरचना को जानना आवश्यक है। अपभ्रंश के अध्ययन के लिये भी (vi) For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसकी रचना-प्रक्रिया एवं व्याकरण का ज्ञान आवश्यक है। अपभ्रंश भाषा को सीखने-समझने को ध्यान में रखकर ही 'अपभ्रंश रचना सौरभ', 'अपभ्रंश अभ्यास सौरभ', 'अपभ्रंश काव्य सौरभ', 'प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ', 'अपभ्रंश-व्याकरण' 'अपभ्रंश अभ्यास उत्तर पुस्तक' 'अपभ्रंश-व्याकरण एवं छंद-अलंकार अभ्यास उत्तर पुस्तक' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण' इसी क्रम का प्रकाशन है। 'अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण' अपभ्रंश भाषा को सीखने-समझने की दिशा में प्रथम व अनूठा प्रयास है। इसका प्रस्तुतिकरण अत्यन्त सहज, सरल, सुबोध एवं नवीन शैली में किया गया है जो विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी होगा। इस पुस्तक में अपभ्रंश के संज्ञा-सर्वनाम विभक्तियों, क्रिया-रूपों, कृदन्तों, स्वार्थिक प्रत्ययों, प्रेरणार्थक प्रत्ययों, अव्ययों आदि को हिन्दी भाषा में सरलता से समझाने का प्रयास किया गया है। यह पुस्तक विश्वविद्यालयों के हिन्दी, संस्कृत, इतिहास, राजस्थानी आदि विभागों के अध्ययनार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी, ऐसी आशा है। यहाँ यह जानना आवश्यक है कि संस्कृत-ज्ञान के अभाव में भी अध्ययनार्थी 'अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण' के माध्यम से अपभ्रंश भाषा का समुचित ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे। श्रीमती शकुन्तला जैन एम.फिल. (संस्कृत) ने बड़े परिश्रम से 'अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण' को तैयार किया है जिससे अध्ययनार्थी अपभ्रंश भाषा को सीखने में अनवरत उत्साह बनाये रख सकेंगे। अतः वे हमारी बधाई की पात्र हैं। (vii) For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुस्तक-प्रकाशन के लिए अपभ्रंश साहित्य अकादमी के विद्वानों विशेषतया श्रीमती शकुन्तला जैन के आभारी हैं जिन्होंने 'अपभ्रंश - हिन्दी- व्याकरण लिखकर अपभ्रंश के पठन-पाठन को सुगम बनाने का प्रयास किया है । पृष्ठ संयोजन के लिए फ्रेण्ड्स कम्प्यूटर्स एवं मुद्रण के लिए जयपुर प्रिण्टर्स प्रा. लि. धन्यवादार्ह है। जस्टिस नगेन्द्र कुमार जैन प्रकाशचन्द्र जैन डॉ. कमलचन्द सोगाणी मंत्री अध्यक्ष संयोजक जैनविद्या संस्थान समिति जयपुर प्रबन्धकारिणी कमेटी दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी तीर्थंकर श्रेयांसनाथ मोक्ष कल्याणक दिवस श्रावण शुक्ला पूर्णिमा वीर निर्वाण संवत् - 2538 02.08.2012 (viii) For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रारम्भिक अपभ्रंश भाषा के सम्बन्ध में निम्नलिखित सामान्य जानकारी आवश्यक है __ अपभ्रंश की वर्णमाला स्वर- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ओ। व्यंजन- क, ख, ग, घ, ङ। च, छ, ज, झ,ञ। ट, ठ, ड, ढ, ण। त, थ, द, ध, न। प, फ, ब, भ, म। य, र, ल, व। स, ह। यहाँ ध्यान देने योग्य है कि असंयुक्त अवस्था में ङ और का प्रयोग अपभ्रंश भाषा में नहीं पाया जाता। हेमचन्द्र कृत अपभ्रंश व्याकरण में ङ और अ का संयुक्त प्रयोग उपलब्ध है। न का भी संयुक्त और असंयुक्त अवस्था में प्रयोग देखा जाता है। ङ, ञ, न के स्थान पर संयुक्त अवस्था में अनुस्वार भी विकल्प से होता है। वचन . अपभ्रंश भाषा में दो ही वचन होते हैं- एकवचन और बहुवचन। लिंग अपभ्रंश भाषा में तीन लिंग होते हैं- पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग। अपभ्रंश भाषा में तीन पुरुष होते हैं- उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष, अन्य (ix) For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीया विभक्ति अपभ्रंश भाषा में संज्ञा में आठ विभक्तियाँ होती हैं और सर्वनाम में सात विभक्तियाँ होती हैं। सर्वनाम में संबोधन विभक्ति नहीं होती है। विभक्ति प्रत्यय-चिह्न प्रथमा द्वितीया को से, (के द्वारा) चतुर्थी के लिए से (पृथक् अर्थ में) 6. षष्ठी का, के, की 7. सप्तमी में, पर 8. सम्बोधन हे अपभ्रंश भाषा में चतुर्थी विभक्ति और षष्ठी विभक्ति में एक जैसे प्रत्यय होते हैं। क्रिया अपभ्रंश भाषा में दो प्रकार की क्रियाएँ होती हैं- सकर्मक और अकर्मक। लं + vio पंचमी काल अपभ्रंश भाषा में चार प्रकार के काल वर्णित हैं1. वर्तमानकाल 2. भूतकाल 3. भविष्यत्काल 4. विधि एवं आज्ञा अपभ्रंश भाषा में भूतकाल को व्यक्त करने के लिये भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग बहुलता से किया गया है। शब्द अपभ्रंश भाषा में छह प्रकार के शब्द पाए जाते हैं1. अकारान्त 2. आकारान्त 3. इकारान्त 4. ईकारान्त 5. उकारान्त 6. ऊकारान्त For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण में प्रयुक्त संज्ञा शब्द (क) पुल्लिंग शब्द - देव, हरि, गामणी, साहु, सयंभू (ख) नपुंसकलिंग शब्द - कमल, वारि, महु (ग) स्त्रीलिंग शब्द - कहा, मइ, लच्छी, घेणु, बहू पुल्लिंग अकारान्त पुल्लिंग - देव इकारान्त पुल्लिंग - हरि ईकारान्त पुल्लिंग - गामणी उकारान्त पुल्लिंग - साहु ऊकारान्त पुल्लिंग - सयंभू ___नपुंसकलिंग अकारान्त नपुंसकलिंग - कमल इकारान्त नपुंसकलिंग - वारि उकारान्त नपुंसकलिंग - महु स्त्रीलिंग आकारान्त स्त्रीलिंग - कहा इकारान्त स्त्रीलिंग - मह ईकाएरन्त स्तीगिए - लच्छी उकारान्त स्त्रीलिंग - घेणु ऊकारान्त स्त्रीलिंग - बहू (xi) For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. संज्ञा शब्दों के विभक्ति प्रत्यय अकारान्त (पु., नपुं.) (क) प्रथमा एकवचन 1 / 1 (ख) द्वितीया एकवचन 2 / 1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के प्रथमा विभक्ति एकवचन व द्वितीया विभक्ति एकवचन में 'उ' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे प्रथमा एकवचन 1 / 1 (क) देव (पु.) (देव+उ) = देवु (प्रथमा एकवचन) 2. कमल (नपुं.) (कमल + उ ) = कमलु (प्रथमा एकवचन) द्वितीया एकवचन 2/1 (ख) देव (पु.) (देव + 3 ) = देवु (द्वितीया एकवचन ) कमल (नपुं.) (कमल +3 ) = कमलु ( द्वितीया एकवचन) 3. - अकारान्त (पु.) प्रथमा एकवचन 1 / 1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग संज्ञा शब्दों के प्रथमा विभक्ति एकवचन में विकल्प से ‘ओ' प्रत्यय भी जोड़ा जाता है। जैसेदेव (पु.) (देव+ओ) = देवो (प्रथमा एकवचन) अन्य रूप - देव, देवा, देवु अकारान्त (पु., नपुं. ) तृतीया एकवचन 3 / 1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के तृतीया विभक्ति एकवचन में अन्त्य 'अ' का 'ए' करके उसमें 'ण', 'णं' और अनुस्वार (●) जोड़े जाते हैं। जैसे देव (पु.) (देवे+ण / णं) = देवेण / देवेणं (तृतीया एकवचन) (देवें+) = देवें (तृतीया एकवचन) कमल (नपुं.) (कमले +ण /णं) = कमलेण / कमलेणं (तृतीया एकवचन) (कमले + ) = कमलें (तृतीया एकवचन) ० अपभ्रंश - हिन्दी- व्याकरण For Personal & Private Use Only (1) Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. ... अकारान्त (पु.,नपुं.) सप्तमी एकवचन 7/1 . . अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के सप्तमी विभक्ति एकवचन में 'इ' और 'ए' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसेदेव (पु.) (देव+इ) = देवि (सप्तमी एकवचन) (देव+ए) = देवे (सप्तमी एकवचन) कमल (नपुं.)(कमल+इ) = कमलि (सप्तमी एकवचन) (कमल+ए) = कमले (सप्तमी एकवचन) •------ अकारान्त (पु.,नपुं.) तृतीया बहुवचन 3/2 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के तृतीया विभक्ति बहुवचन में अन्त्य 'अ' का विकल्प से 'ए' करके उसमें 'हिं' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसेदेव (पु.) (देवे+हिं) = देवेहिं (तृतीया बहुवचन) कमल (नपुं.)(कमले+हिं) = कमलेहिं (तृतीया बहुवचन) अन्य रूपदेव (पु.) (देव+हिं) = देवहिं (तृतीया बहुवचन) कमल (नपुं.)(कमल+हिं) = कमलहिं (तृतीया बहुवचन) अकारान्त (पु.,नपुं.) पंचमी एकवचन 5/1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के पंचमी विभक्ति एकवचन में 'हे' और 'हु' प्रत्यय जोड़े जाते हैं।जैसेदेव (पु.) (देव+हे) = देवहे (पंचमी एकवचन) (देव+हु) = देवहु (पंचमी एकवचन) कमल (नपुं.)(कमल+हे) = कमलहे (पंचमी एकवचन) (कमल+हु) = कमलहु (पंचमी एकवचन) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 7. अकारान्त (पु.,नपुं.) पंचमी बहुवचन 5/2 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के पंचमी विभक्ति बहुवचन में हुँ' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसेदेव (पु.) (देव+हुं) = देवहुं (पंचमी बहुवचन) कमल (नपुं.)(कमल+हुं) = कमलहुं (पंचमी बहुवचन) --------------------- ------------ अकारान्त (पु.,नपुं.) षष्ठी एकवचन 6/1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के षष्ठी विभक्ति एकवचन में 'सु', 'हो' और 'स्सु' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसेदेव (पु.) (देव+सु) = देवसु (षष्ठी एकवचन) (देव+हो) = देवहो (षष्ठी एकवचन) (देव+स्सु) = देवस्सु (षष्ठी एकवचन) कमल (नपुं.) (कमल+सु) = कमलसु (षष्ठी एकवचन) (कमल+हो) = कमलहो (षष्ठी एकवचन) (कमल+स्सु) = कमलस्सु (षष्ठी एकवचन) . . . अकारान्त (पु.,नपुं.) षष्ठी बहुवचन 6/2 . अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के षष्ठी विभक्ति बहुवचन में 'हे' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसेदेव (पु.) (देव+हं) = देवहं (षष्ठी बहुवचन) कमल (नपुं.)(कमल+हैं) = कमलहं (षष्ठी बहुवचन) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त (पु.) इकारान्त, उकारान्त (नपुं.) (क) षष्ठी बहुवचन 6/2 (ख) सप्तमी बहुवचन 7/2 10. अपभ्रंश भाषा में इ-ईकारान्त व उ-ऊकारान्त पुल्लिंग और इकारान्त व उकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के षष्ठी विभक्ति बहुवचन में 'हे' और 'हं' प्रत्यय तथा सप्तमी विभक्ति बहुवचन में 'हुँ' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे षष्ठी बहुवचन 6/2 (क) हरि (पु.) (हरि+हुं) = हरिहुं (षष्ठी बहुवचन) (हरि+हं) = हरिहं (षष्ठी बहुवचन) गामणी (पु.)(गामणी+हुं) = गामणीहुं (षष्ठी बहुवचन) _ (गामणी+ह) = गामणीहं (षष्ठी बहुवचन) साहु (पु.) (साहु+हुं) = साहुहं (षष्ठी बहुवचन) । (साहु+हं) = साहुहं (षष्ठी बहुवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+हुं) = सयंभूहं (षष्ठी बहुवचन) (सयंभू+ह) = संयभूहं (षष्ठी बहुवचन) वारि (नपुं.)(वारि+हुं) = वारिहुं (षष्ठी बहुवचन) _ (वारि+ह) = वारिहं (षष्ठी बहुवचन) महु (नपुं.) (महु+हुं) = महुहं (षष्ठी बहुवचन) (महु+हं) = महुहं (षष्ठी बहुवचन) ___ सप्तमी बहुवचन 7/2 (ख) हरि (पु.) (हरि+हुं) = हरिहुं (सप्तमी बहुवचन) गामणी (पु.) (गामणी+हुं) = गामणीहुं (सप्तमी बहुवचन) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहु (पु.) (साहु+हुं) = साहुहुं (सप्तमी बहुवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+हुं) = सयंभूहुं (सप्तमी बहुवचन) वारि (नपुं.) (वारि+हुं) = वारिहुं (सप्तमी बहुवचन) महु (नपुं.) (महु+हुं) = महुहुं (सप्तमी बहुवचन) इ-ईकारान्त, उ- ऊकारान्त (पु.) इकारान्त, उकारान्त (नपुं. ) 11. (क) पंचमी एकवचन 5 / 1 (ख) पंचमी बहुवचन 5 / 2 (ग) सप्तमी एकवचन 7/1 अपभ्रंश भाषा में इ-ईकारान्त व उ- ऊकारान्त पुल्लिंग और इकारान्त व उकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के पंचमी विभक्ति एकवचन में 'है', पंचमी विभक्ति बहुवचन में 'हुँ' तथा सप्तमी एकवचन में 'हि' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे पंचमी एकवचन 5 / 1 (क) हरि (पु.) (हरि+हे) = हरिहे (पंचमी एकवचन ) गामणी (पु.) ( गामणी + हे) = गामणीहे (पंचमी एकवचन ) साहु (पु.) (साहु+हे) = साहुहे (पंचमी एकवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+हे) = सयंभूहे (पंचमी एकवचन ) वारि (नपुं.) (वारि+हे) = वारिहे (पंचमी एकवचन) महु ( नपुं.) (महु + हे) = महुहे (पंचमी एकवचन ) पंचमी बहुवचन 5/2 (ख) हरि (पु.) (हरि+हुं) = हरिहुं (पंचमी बहुवचन) गामणी (पु.)(गामणी+हुं) = गामणीहुं (पंचमी बहुवचन) साहु (पु.) (साहु+हु) = साहुहुं (पंचमी बहुवचन) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only (5) Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सयंभू (पु.) (सयंभू+हुं) = सयंभूहं (पंचमी बहुवचन) वारि (नपुं.)(वारि+हुं) = वारिहुं (पंचमी बहुवचन) महु (नपुं.) (महु+हुं) = महुहुं (पंचमी बहुवचन) सप्तमी एकवचन 7/1 (ग) हरि (पु.) (हरि+हि) = हरिहि (सप्तमी एकवचन) गामणी (पु.) (गामणी+हि) = गामणीहि (सप्तमी एकवचन) साहु (पु.) (साहु+हि) = साहुहि (सप्तमी एकवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+हि) = सयंभूहि (सप्तमी एकवचन) । वारि (नपुं.) (वारि+हि) = वारिहि (सप्तमी एकवचन) महु (नपुं.) (महु+हि) = महुहि (सप्तमी एकवचन) 12. इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त (पु.) इकारान्त, उकारान्त (नपुं.) तृतीया एकवचन 3/1 अपभ्रंश भाषा में इ-ईकारान्त व उ-ऊकारान्त पुल्लिंग और इकारान्त व उकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के तृतीया विभक्ति एकवचन में 'एं', 'ण', 'णं' और 'अनुस्वार' (.) जोड़े जाते हैं। जैसेहरि (पु.) (हरि+एं) = हरिएं (तृतीया एकवचन) (हरि+ण/णं) = हरिण/हरिणं (तृतीया एकवचन) (हरि+०) = हरिं (तृतीया एकवचन) गामणी (पु.)(गामणी+एं) = गामणीएं (तृतीया एकवचन) (गामणी+ण/ण) गामणीण/गामणीणं(तृतीया एकवचन) (गामणी+1) = गामणी (तृतीया एकवचन) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहु (पु.) (साहु+एं) = साहुएं (तृतीया एकवचन) (साहु+ण/णं) = साहुण/साहुणं (तृतीया एकवचन) (साहु+• ) = साहुं (तृतीया एकवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+एं) = सयंभूएं (तृतीया एकवचन) (सयंभू+ण/णं) = सयंभूण/सयंभूणं (तृतीया एकवचन) (सयंभू+ •) = सयंभू (तृतीया एकवचन) वारि (नपुं.)(वारि+एं) = वारिएं (तृतीया एकवचन)) (वारि+ण/णं) = वारिण/वारिणं (तृतीया एकवचन) (वारि+) = वारिं (तृतीया एकवचन) महु (नपुं.) (महु+एं) = महुएं (तृतीया एकवचन) (महु+ण/j) = महुण/महुणं (तृतीया एकवचन) (महु+i) = महुं (तृतीया एकवचन) अकारान्त, इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त (पु.) (क) प्रथमा एकवचन 1/1 (ख) प्रथमा बहुवचन 1/2 (ग) द्वितीया एकवचन 2/1 (घ) द्वितीया बहुवचन 2/2 13. (i) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त पुल्लिंग संज्ञा शब्दों के प्रथमा विभक्ति एकवचन व प्रथमा विभक्ति बहुवचन तथा द्वितीया विभक्ति एकवचन व द्वितीया विभक्ति बहुवचन में 'शून्य' ..प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे . प्रथमा एकवचन 1/1 (क) देव (पु.) (देव+0) = देव (प्रथमा एकवचन) हरि (पु.) (हरि+0) = हरि (प्रथाण एकवचन) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण . (7) For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . गामणी (पु.) (गामणी+0) = गामणी (प्रथमा एकवचन) साहु (पु.) (साहु+0) = साहु (प्रथमा एकवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+0) = सयंभू (प्रथमा एकवचन) प्रथमा बहुवचन 1/2 . (ख) देव (पु.) (देव+0) = देव (प्रथमा बहुवचन) हरि (पु.) (हरि+0) = हरि (प्रथमा बहुवचन) गामणी (पु.) (गामणी+0) = गामणी (प्रथमा बहुवचन) साहु (पु.) (साहु+0) = साहु (प्रथमा बहुवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+0) = सयंभू (प्रथमा बहुवचन) द्वितीया एकवचन 2/1 (ग) देव (पु.) (देव+0) = देव (द्वितीया एकवचन) हरि (पु.) (हरि+0) = हरि (द्वितीया एकवचन) गामणी (पु.) (गामणी+0) = गामणी (द्वितीया एकवचन) साहु (पु.) (साहु+0) = साहु (द्वितीया एकवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+0) = सयंभू (द्वितीया एकवचन) द्वितीया बहुवचन 2/2 (घ) देव (पु.)(देव+0) = देव (द्वितीया बहुवचन) हरि (पु.) (हरि+0) = हरि (द्वितीया बहुवचन) गामणी (पु.)(गामणी+0) = गामणी (द्वितीया बहुवचन) साहु (पु.) (साहु+0) = साहु (द्वितीया बहुवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+0) = सयंभू (द्वितीया बहुवचन) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारान्त, इकारान्त, उकारान्त (नपुं.) (क) प्रथमा एकवचन 1/1 (ख) प्रथमा बहुवचन 1/2 (ग) द्वितीया एकवचन 2/1 (घ) द्वितीया बहु वचन 2/2 (ii) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के प्रथमा विभक्ति एकवचन व प्रथमा विभक्ति बहुवचन तथा द्वितीया विभक्ति एकवचन व द्वितीया विभक्ति बहुवचन में 'शून्य' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे प्रथमा एकवचन 1/1 (क) कमल (नपुं.)(कमल+0) = कमल (प्रथमा एकवचन) वारि (नपुं.)(वारि+0) = वारि (प्रथमा एकवचन) महु (नपुं.) (महु+0) = महु (प्रथमा एकवचन) . प्रथमा बहुवचन 1/2 (ख) कमल (नपुं.)(कमल+0) = कमल (प्रथमा बहुवचन) - वारि (नपुं.)(वारि+0) = वारि (प्रथमा बहुवचन) .... महु (नपुं.) (महु+0) = महु (प्रथमा बहुवचन) । . द्वितीया एकवचन 2/1 (ग) कमल (नपुं.) (कमल+0) = कमल (द्वितीया एकवचन) . वारि (मपुं.) (वारि+0) = वारि (द्वितीया एकवचन) महु (नपुं.) (महु+0) = महु (द्वितीया एकवचन) _ द्वितीया बहुवचन 2/2 (घ) कमल (नपुं.) (कमल+0) = कमल (द्वितीया बहुवचन) ___वारि (नपुं.)(वारि+0) = वारि (द्वितीया बहुवचन) महु (नपुं.) (महु+0) = महु (द्वितीया बहुवचन) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आकारान्त, इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त (स्त्री.) (क) प्रथमा एकवचन 1/1 (ख) प्रथमा बहुवचन 1/2 (ग) द्वितीया एकवचन 2/1 (घ) द्वितीया बहुवचन 2/2 .. अपभ्रंश भाषा में आकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के प्रथमा विभक्ति एकवचन व प्रथमा विभक्ति बहुवचन तथा द्वितीया विभक्ति एकवचन व द्वितीया विभक्ति बहुवचन में 'शून्य' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे प्रथमा एकवचन 1/1 (क) कहा (स्त्री.) (कहा+0) = कहा (प्रथमा एकवचन) मइ (स्त्री.) (मइ+0) = मइ (प्रथमा एकवचन) लच्छी (स्त्री.) (लच्छी+0) = लच्छी (प्रथमा एकवचन) धेणु (स्त्री.) (धेणु+0) = घेणु (प्रथमा एकवचन) बहू (स्त्री.) (बहू+0) = बहू (प्रथमा एकवचन) । प्रथमा बहुवचन 1/2 (ख) कहा (स्त्री.) (कहा+0) = कहा (प्रथमा बहुवचन) मइ (स्त्री.) (मइ+0) = मइ (प्रथमा बहुवचन) लच्छी (स्त्री.) (लच्छी+0) = लच्छी (प्रथमा बहुवचन) घेणु (स्त्री.) (धेणु+0) = घेणु (प्रथमा बहुवचन) बहू (स्त्री.) (बहू+0) = बहू (प्रथमा बहुवचन) द्वितीया एकवचन 2/1 (ग) कहा (स्त्री.) (कहा+0) = कहा (द्वितीया एकवचन) मइ (स्त्री.) (मइ+0) = मइ (द्वितीया एकवचन) लच्छी (स्त्री.) (लच्छी+0) = लच्छी (द्वितीया एकवचन) (10) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (घ) धेणु (स्त्री.) ( धेणु +0 ) = धेणु (द्वितीया एकवचन) बहू (स्त्री.) (बहू +0) = बहू (द्वितीया एकवचन ) द्वितीया बहुवचन 2/2 कहा (स्त्री.) ( कहा +0 ) = कहा (द्वितीया बहुवचन) मइ (स्त्री.) ( मइ + 0 ) = मइ (द्वितीया बहुवचन) लच्छी (स्त्री.) ( लच्छी +0) = धेणु (स्त्री.) (धेणु +0 ) = धेणु (द्वितीया बहुवचन) बहू (स्त्री.) ( बहू +0) = बहू ( द्वितीया बहुवचन) लच्छी ( द्वितीया बहुवचन) अकारान्त, इ-ईकारान्त, उ- ऊकारान्त (पु.) (कं) षष्ठी एकवचन 6 / 1 ( ख ) षष्ठी बहुवचन 6/2 14. (i) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त पुल्लिंग संज्ञा शब्दों के षष्ठी विभक्ति एकवचन व षष्ठी विभक्ति बहुवचन 'शून्य' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे में - षष्ठी एकवचन 6/1 (क) देव (पु.) (देव+0) = देव (षष्ठी एकवचन) हरि (पु.) (हरि + 0 ) = हरि ( षष्ठी एकवचन ) गामणी (पु.) ( गामणी + 0 ) = गामणी (षष्ठी एकवचन) साहु (पु.) ( साहु+0 ) = साहु (षष्ठी एकवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+0 ) = सयंभू (षष्ठी एकवचन) षष्ठी बहुवचन 6/2 (ख) देव (पु.) (देव+0) = देव (षष्ठी बहुवचन) हरि (पु.) (हरि + 0 ) = हरि ( षष्ठी बहुवचन) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only (11) Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गामणी (पु.) (गामणी+0) = गामणी (षष्ठी बहुवचन) साहु (पु.) (साहु+0) = साहु (षष्ठी बहुवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+0) = सयंभू (षष्ठी बहुवचन) अकारान्त, इकारान्त, उकारान्त (नपुं.) (क) षष्ठी एकवचन 6/1 (ख) षष्ठी बहुवचन 6/2 (ii) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग . संज्ञा शब्दों के षष्ठी विभक्ति एकवचन व षष्ठी विभक्ति बहुवचन में 'शून्य' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसेकमल (नपुं.)(कमल+0) = कमल (षष्ठी एकवचन) वारि (नपुं.)(वारि+0) = वारि (षष्ठी एकवचन) महु (नपुं.) (महु+0) = महु (षष्ठी एकवचन) षष्ठी बहुवचन 6/2 (ख) कमल (नपुं.) (कमल+0) = कमल (षष्ठी बहुवचन) वारि (नपुं.)(वारि+0) = वारि (षष्ठी बहुवचन) महु (नपुं.) (महु+0) = महु (षष्ठी बहुवचन) आकारान्त, इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त (स्त्री.) (क) षष्ठी एकवचन 6/1 (ख) षष्ठी बहुवचन 6/2 (iii) अपभ्रंश भाषा में आकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के षष्ठी विभक्ति एकवचन व षष्ठी विभक्ति बहुवचन में 'शून्य' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे (12) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठी एकवचन 6/1 (क) कहा (स्त्री.)(कहा+0) = कहा (षष्ठी एकवचन) मइ (स्त्री.) (मइ+0) = मइ (षष्ठी एकवचन) लच्छी (स्त्री.)(लच्छी+0) = लच्छी (षष्ठी एकवचन) धेणु (स्त्री.)(धेणु+0) = घेणु (षष्ठी एकवचन) बहू (स्त्री.) (बहू+0) = बहू (षष्ठी एकवचन) षष्ठी बहुवचन 6/2 (ख) कहा (स्त्री.) (कहा+0) = कहा (षष्ठी बहुवचन) मइ (स्त्री.) (मइ+0) = मइ (षष्ठी बहुवचन) लच्छी (स्त्री.) (लच्छी+0) = लच्छी (षष्ठी बहुवचन) धेणु (स्त्री.) (धेणु+0) = घेणु (षष्ठी बहुवचन) बहू (स्त्री.) (बहू+0) = बहू (षष्ठी बहुवचन) -------------------- अकारान्त, इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त (पु.) अकारान्त, इकारान्त, उकारान्त (नपुं.) आकारान्त, इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त (स्त्री.) संबोधन बहवचन 8/2 15.(i) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, इ- ईकारान्त और उ-ऊकारान्त पुल्लिंग संज्ञा शब्दों के संबोधन बहुवचन में 'हो' प्रत्यय जोड़ा जाता है। संबोधन के अन्य रूप प्रथमा विभक्ति एकवचन और बहुवचन के 'अनुरूप होंगे जिन्हें परिशिष्ट-1 से समझा जा सकता है। जैसे संबोधन बहुवचन (पु.) 8/2 देव (पु.) (देव+हो) = देवहो (संबोधन बहुवचन) हरि (पु.) (हरि+हो) = हरिहो (संबोधन बहुवचन) गामणी (पु.) (गामणी+हो) = गामणीहो (संबोधन बहुवचन) साहु (पु.) (साहु+हो) = साहुहो (संबोधन बहुवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+हो) = सयंभूहो (संबोधन बहुवचन) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (13) For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ii) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के संबोधन बहुवचन में 'हो' प्रत्यय जोड़ा जाता है। संबोधन के अन्य रूप प्रथमा विभक्ति एकवचन और बहुवचन के अनुरूप होंगे जिन्हें परिशिष्ट-1 से समझा जा सकता है। जैसे संबोधन बहुवचन (नपुं.) 8/2 कमल (नपं (कमलर हो = कमलहो (संबोधून गुन्द्र) वारि (नपुं.)(वारि+हो) = वारिहो (संबोधन बहुवचन) महु (नपुं.) (महु+हो) = महुहो (संबोधन बहुवचन) अपभ्रंश भाषा में आकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के संबोधन बहुवचन में 'हो' प्रत्यय जोड़ा जाता है। संबोधन के अन्य रूप प्रथमा विभक्ति एकवचन और बहुवचन के अनुरूप होंगे जिन्हें परिशिष्ट-1 से समझा जा सकता है। जैसे संबोधन बहुवचन (स्त्री.)8/2 कहा (स्त्री.)(कहा+हो) = कहाहो (संबोधन बहुवचन) मइ (स्त्री.) (मइ+हो) = मइहो (संबोधन बहुवचन) लच्छी (स्त्री.)(लच्छी+हो) = लच्छीहो (संबोधन बहुवचन) धेणु (स्त्री.)(धेणु+हो) = घेणुहो (संबोधन बहुवचन) बहू (स्त्री.) (बहू+हो) = बहूहो (संबोधन बहुवचन) ------------------------------- अकारान्त, इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त (पु.) (क) तृतीया बहुवचन 3/2 (ख) सप्तमी बहुवचन 7/2 16.(i) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त पुल्लिंग संज्ञा शब्दों के तृतीया विभक्ति बहुवचन तथा सप्तमी विभक्ति बहुवचन में 'हिं' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे (14) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीया बहुवचन 3/2 (क) देव (पु.) (देव+हिं) = देवहिं (तृतीया बहुवचन) हरि (पु.) (हरि+हिं) = हरिहिं (तृतीया बहुवचन) गामणी (पु.)(गामणी+हिं) = गामणीहिं (तृतीया बहुवचन) साहु (पु.) (साहु+हिं) = साहुहिं (तृतीया बहुवचन) सयंभू (पु.) (सयंभू+हिं) = सयंभूहिं (तृतीया बहुवचन) सप्तमी बहुवचन 7/2 (ख) देव (पु.) (देव+हिं) = देवहिं (सप्तमी बहुवचन) हरि (पु.) (हरि+हिं) = हरिहिं (सप्तमी बहुवचन) गामणी (पु.) (गामणी+हिं) = गामणीहिं (सप्तमी बहुवचन) साहु (पु.) (साहु+हिं) = साहुहिं (सप्तमी बहुवचन) .सयंभू (पु.) (सयंभू+हिं) = सयंभूहिं (सप्तमी बहुवचन) अकारान्त, इकारान्त, उकारान्त (नपुं.) (क) तृतीया बहुवचन 3/2 (ख) सप्तमी बहुवचन 7/2 (ii) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग संज्ञा शब्दों के तृतीया विभक्ति बहुवचन तथा सप्तमी विभक्ति बहुवचन में 'हिं' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे ___ तृतीया बहुवचन 3/2 (क) कमल (नपुं.) (कमल+हिं) = कमलहिं (तृतीया बहुवचन) वारि (नपुं.) (वारि+हिं) = वारिहिं (तृतीया बहुवचन) . महु (नपुं.) (महु+हिं) = महुहिं (तृतीया बहुवचन) - अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (15) For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमी बहुवचन 7/2 (ख) कमल (नपुं. ) ( कमल+हिं) = कमलहिं (सप्तमी बहुवचन) वारि ( नपुं. ) ( वारि+हिं) = वारिहिं (सप्तमी बहुवचन) महु ( नपुं.) (महु + हिं) = महहिं ( सप्तमी बहुवचन) आकारान्त, इ-ईकारान्त, उ- ऊकारान्त (स्त्री.) (iii) (क) तृतीया बहुवचन 3 / 2 (ख) सप्तमी बहुवचन 7 / 2 अपभ्रंश भाषा में आकारान्त, इ-ईकारान्त और उ- ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के तृतीया विभक्ति बहुवचन तथा सप्तमी विभक्ति बहुवचन में 'हं' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे तृतीया बहुवचन 3 / 2 (क) कहा (स्त्री.) (कहा + हिं) = कहाहिं (तृतीया बहुवचन) मइ (स्त्री.) (मइ + हिं) = मइहिं (तृतीया बहुवचन) (मइ+हिं) लच्छी (स्त्री.) ( लच्छी+हिं) = लच्छीहिं (तृतीया बहुवचन) (16) धेणु (स्त्री.) (धेणु + हिं) = धेणुहिं (तृतीया बहुवचन) बहू (स्त्री.) (बहू + हिं) = बहूहिं (तृतीया बहुवचन) (बहू+हिं) सप्तमी बहुवचन 7/2 (ख) कहा (स्त्री.) ( कहा + हिं) = कहाहिं (सप्तमी बहुवचन) मइ (स्त्री.) (मइ + हिं) = मइहिं (सप्तमी बहुवचन) : लच्छी (स्त्री.)(लच्छी+हिं) = लच्छीहिं (सप्तमी बहुवचन) धेणु (स्त्री.) (धेणु + हिं) = धेणुहिं (सप्तमी बहुवचन) बहू (स्त्री.) (बहू + हिं) = बहूहिं (सप्तमी बहुवचन) अपभ्रंश - हिन्दी- व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17. (क) आकारान्त, इ-ईकारान्त, उ- ऊकारान्त (स्त्री.) (क) प्रथमा बहुवचन 1/2 (ख) द्वितीया बहुवचन 2/2 अपभ्रंश भाषा में आकारान्त, इ-ईकारान्त और उ- ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के प्रथमा विभक्ति बहुवचन तथा द्वितीया विभक्ति बहुवचन में 'उ' और 'ओ' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे - प्रथमा बहुवचन 1/2 कहा (स्त्री.) ( कहा + उ ) = कहाउ (प्रथमा बहुवचन) ( कहा + ओ = कहाओ (प्रथमा बहुवचन) मइ (स्त्री.) (मइ + उ ) = मइउ (प्रथमा बहुवचन) (मइ+ओ) = मइओ (प्रथमा बहुवचन) लच्छी (स्त्री.) (लच्छी + उ ) = लच्छीउ (प्रथमा बहुवचन) ( लच्छी+ओ ) = लच्छीओ (प्रथमा बहुवचन) धेणु (स्त्री.) (धेणु + उ ) = धेणुउ (प्रथमा बहुवचन) (धेणु +ओ ) = धेणुओ (प्रथमा बहुवचन) = बहूउ (प्रथमा बहुवचन) बहू (स्त्री.) (बहू + 3 ) ( बहू +ओ ) = बहूओ (प्रथमा बहुवचन) द्वितीया बहुवचन 2/2 (ख) कहा (स्त्री.) ( कहा + उ ) = कहाउ (द्वितीया बहुवचन) ( कहा +ओ ) = कहाओ ( द्वितीया बहुवचन) मइ (स्त्री.) (मइ + उ ) = मइउ ( द्वितीया बहुवचन) ( मइ + ओ ) = मइओ ( द्वितीया बहुवचन) लच्छी (स्त्री.) (लच्छी+उ) = लच्छीउ ( द्वितीया बहुवचन) (लच्छी+ओ) = लच्छीओ (द्वितीया बहुवचन) (17) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धेणु (स्त्री.)(धेणु+उ) = घेणुउ (द्वितीया बहुवचन) ' (घेणु+ओ) = घेणुओ (द्वितीया बहुवचन) बहू (स्त्री.) (बहू+उ) = बहूङ (द्वितीया बहुवचन) (बहू+ओ) = बहूओ (द्वितीया बहुवचन) 18. म आकारान्त, इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त (स्त्री.) तृतीया एकवचन 3/1 अपभ्रंश भाषा में आकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के तृतीया विभक्ति एकवचन में 'ए' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसेकहा (स्त्री.)(कहा+ए) = कहाए (तृतीया एकवचन) मइ (स्त्री.) (मइ+ए) = मइए (तृतीया एकवचन) लच्छी (स्त्री.) (लच्छी+ए) = लच्छीए (तृतीया एकवचन) धेणु (स्त्री.)(धेणु+ए) = धेणुए (तृतीया एकवचन) बहू (स्त्री.) (बहू+ए) = बहूए (तृतीया एकवचन) आकारान्त, इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त (स्त्री.) (क) षष्ठी एकवचन 6/1 (ख) पंचमी एकवचन 5/1 अपभ्रंश भाषा में आकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के षष्ठी विभक्ति एकवचन तथा पंचमी विभक्ति एकवचन में 'हे' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे 19. (18) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठी एकवचन 6/1 (क) कहा (स्त्री.)(कहा+हे) = कहाहे (षष्ठी एकवचन) मइ (स्त्री.) (मइ+हे) = मइहे (षष्ठी एकवचन) लच्छी (स्त्री.)(लच्छी+हे) = लच्छीहे (षष्ठी एकवचन) धेणु (स्त्री.)(धेणु+हे) = घेणुहे (षष्ठी एकवचन) बहू (स्त्री.) (बहू+हे) = बहूहे (षष्ठी एकवचन) पंचमी एकवचन 5/1 (ख) कहा (स्त्री.) (कहा+हे) = कहाहे (पंचमी एकवचन) मइ (स्त्री.) (मइ+हे) = मइहे (पंचमी एकवचन) लच्छी (स्त्री.) (लच्छी+हे)= लच्छीहे (पंचमी एकवचन) घेणु (स्त्री.) (धेणु+हे) = घेणुहे (पंचमी एकवचन) बहू (स्त्री.) (बहू+हे) = बहूहे (पंचमी एकवचन) ----------- आकारान्त, इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त (स्त्री.) (क) षष्ठी बहुवचन 6/2 (ख) पंचमी बहुवचन 5/2 • 20. अपभ्रंश भाषा में आकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त स्त्रीलिंग ___ संज्ञा शब्दों के षष्ठी विभक्ति बहुवचन तथा पंचमी विभक्ति बहुवचन में 'ह' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे षष्ठी बहुवचन 6/2 — (क) कहा (स्त्री.)(कहा+हु) = कहाहु (षष्ठी बहुवचन) मइ (स्त्री.) (मइ+हु) = मइहु (षष्ठी बहुवचन) लच्छी (स्त्री.) (लच्छी+हु) = लच्छीहु (षष्ठी बहुवचन) धेणु (स्त्री.)(धेणु+हु) = घेणुह (षष्ठी बहुवचन) बहू (स्त्री.) (बहू+हु) = बहूहु (षष्ठी बहुवचन) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (19) For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी बहुवचन 5/2 (ख) कहा (स्त्री.) (कहा+हु) = कहाहु (पंचमी बहुवचन) मइ (स्त्री.) (मइ+हु) = मइहु (पंचमी बहुवचन) लच्छी (स्त्री.) (लच्छी+हु) = लच्छीहु (पंचमी बहुवचन) धेणु (स्त्री.) (धेणु+हु) = घेणुह (पंचमी बहुवचन) बहू (स्त्री.) (बहू+हु) = बहूहु (पंचमी बहुवचन) - - - - - --------------------------------- 21. आकारान्त, इ-ईकारान्त, उ-ऊकारान्त (स्त्री.) सप्तमी एकवचन 7/1 अपभ्रंश भाषा में आकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के सप्तमी विभक्ति एकवचन में 'हिं' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसेकहा (स्त्री.)(कहा+हिं) = कहाहिं (सप्तमी एकवचन) मइ (स्त्री.) (मइ+हिं) = मइहिं (सप्तमी एकवचन) लच्छी (स्त्री.)(लच्छी+हिं) = लच्छीहिं (सप्तमी एकवचन) धेणु (स्त्री.)(धेणु+हिं) = धेणुहिं (सप्तमी एकवचन) बहू (स्त्री.) (बहू+हिं) = बहूहिं (सप्तमी एकवचन) 22. अकारान्त, इकारान्त, उकारान्त (नपुं.) (क) प्रथमा बहुवचन 1/2 (ख) द्वितीया बहुवचन 2/2 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों के प्रथमा विभक्ति बहुवचन तथा द्वितीया विभक्ति बहुवचन में 'ई' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे (20) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (क) प्रथमा बहुवचन 1/2 कमल (नपुं.)(कमल+इं) = कमलई (प्रथमा बहुवचन) वारि (नपुं.)(वारि+इं) = वारिई (प्रथमा बहुवचन) महु (नपुं.) (महु+इं) = महुइं (प्रथमा बहुवचन) द्वितीया बहुवचन 2/2 (ख) कमल (नपुं.) (कमल+इं)= कमलई (द्वितीया बहुवचन) वारि (नपुं.) (वारि+इं) = वारिइं (द्वितीया बहुवचन) महु (नपुं.) (महु+इं) = महुइं (द्वितीया बहुवचन) ---------------- - 23. *दीर्घ होने पर हस्व तथा हस्व होने पर दीर्घ अकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त पुल्लिंग, अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग और आकारान्त, इ-ईकारान्त उ-ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों में प्रथमा विभक्ति से संबोधन तक के प्रत्यय परे होने पर/रहने पर अंतिम स्वर दीर्घ होने पर हस्व तथा ह्रस्व होने पर दीर्घ हो जाता है। (जो प्रत्यय संज्ञा शब्दों में मिलकर रूप निर्माण करते हैं अर्थात् जो परे नहीं बने रहते वहाँ यह नियम लागू नहीं होता है) जैसे- देवु, देवि, देवें, देवेण, देवो। .. कमलु, कमलि, कमले, कमलेण। इस नियम का उपयोग इस चिह्न से संज्ञा-सर्वनाम की रूपावली में दर्शाया जायेगा। अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (21) For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 24. स्वर परिवर्तन अपभ्रंश भाषा में स्वर परिवर्तन के साथ एक ही शब्द के अनेक रूप हो सकते हैं। जैसेबाह/बाहा/बाहु = भुजा लिह/लीह/लेह = लकीर पट्टि/पिट्टि/पुट्ठि = पीठ नोट- अपभ्रंश भाषा में शब्द-रचना-प्रवृत्ति कहीं-कहीं प्राकृत भाषा के अनुसार होती है और कहीं-कहीं पर शौरसेनी भाषा के समान भी होती 1. हेमचन्द्र वृत्ति 4/329 (22) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. (क) सर्वनाम' शब्दों के विभक्ति प्रत्यय अकारान्त सर्वनाम(पु., नपुं.) पंचमी एकवचन 5/1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग सव्वादि सर्वनामों के पंचमी विभक्ति एकवचन में 'हां' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे अकारान्त सर्वनाम (पु.) पंचमी एकवचन 5/1 सव्व (सब) (पु.) (सव्व+हां) = सव्वहां (पंचमी एकवचन) इयर (दूसरा) (पु.) (इयर+हां) = इयरहां (पंचमी एकवचन) अन्न (दूसरा) (पु.) (अन्न+हां) = अनहां (पंचमी एकवचन) पुव्व (पहला) (पु.) (पुव्व+हां) = पुव्वहां (पंचमी एकवचन) स (अपना) (पु.) (स+हां) = सहां (पंचमी एकवचन) त (वह)(पु.) (त+हां) = तहां (पंचमी एकवचन) ज (जो) (पु.)(ज+हां) = जहां (पंचमी एकवचन) क (कौन,क्या) (पु.) (क+हां) = कहां (पंचमी एकवचन) एक्क (एक) (पु.) (एक्क+हां) = एक्कहां (पंचमी एकवचन) नोट 1. . जो प्रत्यय अकारान्त (पु., नपु.) व आकारान्त (स्त्री.) संज्ञा शब्दों में प्रयुक्त हुए हैं वे ही प्रत्यय अकारान्त (पु., नपु.) व आकारान्त (स्त्री.) सर्वनामों में प्रयुक्त होंगे। यद्यपि इसमें कुछ अपवाद हैं जो सर्वनामों की रूपावली से समझे जा सकते हैं। ‘सर्वनाम शब्द इस प्रकार हैं- सव्व (सब), इयर (दूसरा), अन्न (दूसरा) पुव्व (पहला), स (अपना), त (वह), ज (जो), क (कौन,क्या), एक्क (एक)। यहाँ सव्वादि सर्वनामों के कुछ विभक्तियों के रूप बताये जा रहे हैं। शेष विभक्तियों के रूप पुल्लिंग में 'देव' के समान, नपुंसकलिंग में 'कमल' के समान तथा स्त्रीलिंग में 'कहा' के समान चलेंगे। अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (23) For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारान्त सर्वनाम (नपुं.) पंचमी एकवचन 5/1 | (ख) सव्व (सब) (नपुं.) (सव्व+हां) = सव्वहां (पंचमी एकवचन) इयर (दूसरा) (नपुं.) (इयर+हां) = इयरहां (पंचमी एकवचन) अन्न (दूसरा) (नपुं.) (अन्न+हां) = अन्नहां (पंचमी एकवचन) पुव्व (पहला) (नपुं.) (पुव्व+हां) = पुव्वहां (पंचमी एकवचन) स (अपना) (नपुं.) (स+हां) = सहां (पंचमी एकवचन) त (वह)(नपुं.) (त+हां) = तहां (पंचमी एकवचन) ज (जो) (नपुं.) (ज+हां) = जहां (पंचमी एकवचन) क (कौन,क्या) (नपुं.) (क+हां) = कहां (पंचमी एकवचन) एक्क (एक) (नपुं.) (एक्क+हां)= एक्कहां (पंचमी एकवचन) ------------------- 2. अकारान्त सर्वनाम (पु., नपुं.) पंचमी एकवचन 5/1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग क सर्वनाम के पंचमी विभक्ति एकवचन में इहे' प्रत्यय विकल्प से जोड़ा जाता है। जैसे अकारान्त सर्वनाम (पु.) पंचमी एकवचन 5/1 (क) क (पु.) (क+इहे) = किहे (पंचमी एकवचन) अन्य रूप - कहां, काहां (पंचमी एकवचन) अकारान्त सर्वनाम (नपुं.) पंचमी एकवचन 5/1 (ख) क (नपुं.) (क+इहे) = किहे (पंचमी एकवचन) अन्य रूप - कहां, काहां (पंचमी एकवचन) (24) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारान्त सर्वनाम (पु., नपुं.) सप्तमी एकवचन 7/1 3. अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग सव्वादि सर्वनामों के सप्तमी विभक्ति एकवचन में 'हिं' प्रत्यय जोड़ा जाता है। जैसे अकारान्त सर्वनाम (पु.) सप्तमी एकवचन 7/1 (क) सव्व (सब) (पु.) (सव्व+हिं) = सव्वहिं (सप्तमी एकवचन) इयर (दूसरा) (पु.) (इयर+हिं) = इयरहिं (सप्तमी एकवचन) अन्न (दूसरा) (पु.) (अन्न+हिं) = अन्नहिं (सप्तमी एकवचन) पुव्व (पहला) (पु.) (पुव्व+हिं) = पुव्वहिं (सप्तमी एकवचन) स (अपना) (पु.) (स+हिं) = सहिं (सप्तमी एकवचन) त (वह) (पु.) (त+हिं) = तहिं (सप्तमी एकवचन) ज (जो) (पु.) (ज+हिं) = जहिं (सप्तमी एकवचन) क (कौन,क्या) (पु.) (क+हिं) = कहिं (सप्तमी एकवचन) एक्क (एक) (पु.) (एक्क+हिं) = एक्कहिं (सप्तमी एकवचन) अकारान्त सर्वनाम (नपुं.) सप्तमी एकवचन 7/1 (ख) सव्व (सब) (नपुं.) (सव्व+हिं) = सव्वहिं (सप्तमी एकवचन) इयर (दूसरा) (नपुं.) (इयर+हिं) = इयरहिं (सप्तमी एकवचन) अन्न (दूसरा) (नपुं.) (अन्न+हिं) = अन्नहिं (सप्तमी एकवचन) पुव्व (पहला) (नपुं.) (पुव्व+हिं) = पुव्वहिं (सप्तमी एकवचन) स (अपना) (नपुं.) (स+हिं) = सहिं (सप्तमी एकवचन) त (वह) (नपुं.) (त+हिं) = तहिं (सप्तमी एकवचन) ज (जो) (नपुं.) (ज+हिं) = जहिं (सप्तमी एकवचन) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण . (25) For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कं (कौन,क्या)(नपुं.) (क+हिं) = कहिं (सप्तमी एकवचन) एक्क (एक)(नपुं.) (एक्क+हिं) = एक्कहिं (सप्तमी एकवचन) . ----------- (क) अकारान्त सर्वनाम (पु., नपुं.) षष्ठी एकवचन 6/1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग ज, त और क सर्वनामों के षष्ठी विभक्ति एकवचन में 'आसु' प्रत्यय विकल्प से जोड़ा जाता है। जैसे ___ अकारान्त सर्वनाम (पु.) षष्ठी एकवचन 6/1 ज (पु.) (ज+आसु) = जासु (षष्ठी एकवचन) अन्य रूप - ज, जा, जहो, जाहो, जस्सु (षष्ठी एकवचन) त (पु.) (त+आसु) = तासु (षष्ठी एकवचन) अन्य रूप- त, ता, तहो, ताहो, तस्सु (षष्ठी एकवचन) क (पु.) (क+आसु) = कासु (षष्ठी एकवचन) अन्य रूप - क, का, कहो, काहो, कस्सु (षष्ठी एकवचन) (ख) अकारान्त सर्वनाम (नपुं.) षष्ठी एकवचन 6/1 ज (नपुं.) (ज+आसु) = जासु (षष्ठी एकवचन) अन्य रूप - ज, जा, जहो, जाहो, जस्सु (षष्ठी एकवचन) त (नपुं.) (त+आसु) = तासु (षष्ठी एकवचन) अन्य रूप - त, ता, तहो, ताहो, तस्सु (षष्ठी एकवचन) क (नपुं.) (क+आसु) = कासु (षष्ठी एकवचन) अन्य रूप - क, का, कहो, काहो, कस्सु (षष्ठी एकवचन) -------------------------- (26) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 5. आकारान्त सर्वनाम (स्त्री.) षष्ठी एकवचन 6 / 1 अपभ्रंश भाषा में आकारान्त स्त्रीलिंग जा, ता और का सर्वनामों के षष्ठी विभक्ति एकवचन में 'अहे' प्रत्यय विकल्प से जोड़ा जाता है। 'अहे' प्रत्यय जोड़ने पर जा, ता और का सर्वनामों के अन्त्य स्वर आ का लोप हो जाता है। जैसे - जा (स्त्री.) (जा+अहे) = जहे (षष्ठी एकवचन ) अन्य रूप - जा, ज, जाहे (षष्ठी एकवचन) ता (स्त्री.) (ता+अहे) = तहे (षष्ठी एकवचन) अन्य रूप - ता, त, ताहे (षष्ठी एकवचन) का (स्त्री.) (का+अहे) = कहे (षष्ठी एकवचन) अन्य रूप का, क, काहे (षष्ठी एकवचन) अकारान्त सर्वनाम (पु., नपुं.) (क) प्रथमा एकवचन 1 / 1 (ख) द्वितीया एकवचन 2 / 1 6. (i) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग ज सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति एकवचन व द्वितीया विभक्ति एकवचन में विकल्प से 'धुं' भी होता है। जैसे प्रथमा एकवचन 1 / 1 ज (जो) (पु.) - धुं (प्रथमा एकवचन ) - - अन्य रूप ज, जा, जु, ज (जो ) ( नपुं. ) - धुं (प्रथमा एकवचन ) अन्य रूप - जु (प्रथमा एकवचन ) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण जो (प्रथमा एकवचन ) For Personal & Private Use Only (27) Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीया एकवचन 2/1 (ख) ज (जो) (पु.) - धुं (द्वितीया एकवचन) (iii) अन्य रूप (28) आकारान्त सर्वनाम (स्त्री.) (क) प्रथमा एकवचन 1 / 1 ( ख ) द्वितीया एकवचन 2 / 1 (ii) अपभ्रंश भाषा में आकारान्त स्त्रीलिंग जा सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति एकवचन व द्वितीया विभक्ति एकवचन में विकल्प से 'धुं' भी होता है। जैसे (क) जा (जो) (स्त्री.) - धुं (प्रथमा एकवचन) अन्य रूप - जु (प्रथमा एकवचन ) (ख) जा (जो) (स्त्री.) - धुं (द्वितीया एकवचन) अन्य रूप जु (द्वितीया एकवचन) - ज (जो ) ( नपुं.) - धुं (द्वितीया एकवचन) अन्य रूप - जु (द्वितीया एकवचन) ज, जा, जु (द्वितीया एकवचन) - अकारान्त सर्वनाम (पु., नपुं. ) (क) प्रथमा एकवचन 1 / 1 (ख) द्वितीया एकवचन 2 / 1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग और नपुंसकलिंग त सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति एकवचन व द्वितीया विभक्ति एकवचन में विकल्प से 'त्र' भी होता है। जैसे प्रथमा एकवचन 1 / 1 (क) त ( वह) (पु.) - त्रं (प्रथमा एकवचन ) अन्य रूप - स, सा, सु, सो, तं (प्रथमा एकवचन) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त (वह)(नपुं.) - त्रं (प्रथमा एकवचन) अन्य रूप - तं (प्रथमा एकवचन) ___ द्वितीया एकवचन 2/1 (ख) त (वह)(पु.) - त्रं (द्वितीया एकवचन) अन्य रूप - तं (द्वितीया एकवचन) त (वह)(नपुं.) - त्रं (द्वितीया एकवचन) अन्य रूप - तं (द्वितीया एकवचन) __आकारान्त सर्वनाम (स्त्री.) (क) प्रथमा एकवचन 1/1(ख) द्वितीया एकवचन 2/1 (iv) आकारान्त स्त्रीलिंग ता सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति एकवचन व द्वितीया विभक्ति एकवचन में विकल्प से त्रं' भी होता है। जैसे(क) ता (स्त्री.) (वह) - त्रं (प्रथमा एकवचन) अन्य रूप - सा, स, तं (प्रथमा एकवचन) (ख) ता (स्त्री.) (वह) - त्रं (द्वितीया एकवचन) . अन्य रूप - तं (द्वितीया एकवचन) --------------------------------------- अकारान्त सर्वनाम (नपुं.) प्रथमा एकवचन 1/1, द्वितीया एकवचन 2/1. अपभ्रंश भाषा में अकारान्त नपुंसकलिंग इम सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति एकवचन व द्वितीया विभक्ति एकवचन में 'इमु' होता है। जैसेइम (यह)(नपुं.) - इमु (प्रथमा एकवचन) ___ - इमु (द्वितीया एकवचन) - - - - - - - - - - - - - - - - -------- अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण • (29) For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारान्त सर्वनाम (पु.) प्रथमा एकवचन 1/1, द्वितीया एकवचन 2/1 8.(i) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग एत सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति एकवचन व द्वितीया विभक्ति एकवचन में ‘एहो' होता है। जैसेएत (यह) (पु.) - एहो (प्रथमा एकवचन) - एहो (द्वितीया एकवचन) अकारान्त सर्वनाम (नपुं.) प्रथमा एकवचन 1/1, द्वितीया एकवचन 2/1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त नपुंसकलिंग एत सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति एकवचन व द्वितीया विभक्ति एकवचन में 'एह' होता है। जैसेएत (यह)(नपुं.) - एहु (प्रथमा एकवचन) - एहु (द्वितीया एकवचन) , आकारान्त सर्वनाम (स्त्री.) प्रथमा एकवचन 1/1, द्वितीया एकवचन 2/1 अपभ्रंश भाषा में आकारान्त स्त्रीलिंग एता सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति एकवचन व द्वितीया विभक्ति एकवचन में ‘एह' होता है। जैसेएता (यह)(स्त्री.) - एह (प्रथमा एकवचन) __ - एह (द्वितीया एकवचन) अकारान्त सर्वनाम (पु.) प्रथमा बहुवचन 1/2, द्वितीया बहुवचन 2/2 9. (i) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त पुल्लिंग एत सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति बहुवचन व द्वितीया विभक्ति बहुवचन में ‘एई' होता है। जैसे (30) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एत (यह) (पु.) - एइ (प्रथमा बहुवचन) - एइ (द्वितीया बहुवचन) अकारान्त सर्वनाम (नपुं.) प्रथमा बहुवचन 1/2, द्वितीया बहुवचन 2/2 (ii) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त नपुंसकलिंग एत सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति बहुवचन व द्वितीया विभक्ति बहुवचन में ‘एई' होता है।जैसेएत (यह)(नपुं.) - एइ (प्रथमा बहुवचन) - एइ (द्वितीया बहुवचन) आकारान्त सर्वनाम (स्त्री.) प्रथमा बहुवचन 1/2, द्वितीया बहुवचन 2/2 (iii) अपभ्रंश भाषा में आकारान्त स्त्रीलिंग एता सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति बहुवचन व द्वितीया बहुवचन में ‘एई' होता है। जैसेएता (यह)(स्त्री.) - एइ (प्रथमा बहुवचन) - एइ (द्वितीया बहुवचन) अकारान्त सर्वनाम (पु.) प्रथमा बहुवचन 1/2, द्वितीया बहुवचन 2/2 _10. (i)अपभ्रंश भाषा में पुल्लिग अमु सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति बहुवचन व द्वितीया विभक्ति बहुवचन में 'ओई' होता है। जैसेअमु (यह) (पु.)- ओइ (प्रथमा बहुवचन) - ओइ (द्वितीया बहुवचन) अकारान्त सर्वनाम (नपुं.) प्रथमा बहुवचन 1/2, द्वितीया बहुवचन 2/2 (i) अपभ्रंश भाषा में नपुंसकलिंग अमु सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति बहुवचन व द्वितीया विभक्ति बहुवचन में 'ओई' होता है। जैसे अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (31) For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (iii) अमु(यह)(नपुं.) - ओइ (प्रथमा बहुवचन) - ओइ (द्वितीया बहुवचन) आकारान्त सर्वनाम (स्त्री.) प्रथमा बहुवचन 1/2, द्वितीया बहुवचन 2/2 अपभ्रंश भाषा में स्त्रीलिंग अमु सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति बहुवचन व द्वितीया विभक्ति बहुवचन में 'ओई' होता है। जैसेअमु (यह)(स्त्री.)- ओइ (प्रथमा बहुवचन) - ओइ (द्वितीया बहुवचन) ------------ 11. अपभ्रंश भाषा में यह के अर्थ में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग 'आय' और स्त्रीलिंग ‘आया' का प्रयोग भी होता है। नोट : पुल्लिंग, नपुंसकलिंग में आय के रूप सव्व की तरह तथा स्त्रीलिंग में आया के रूप सव्वा (कहा) की तरह चलेंगे। --- 12. अपभ्रंश भाषा में सब के अर्थ में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग ‘साह' और स्त्रीलिंग ‘साहा' का प्रयोग भी होता है। नोट : पुल्लिंग, नपुंसकलिंग में साह के रूप सव्व की तरह तथा स्त्रीलिंग में साहा के रूप सव्वा (कहा) की तरह चलेंगे। ------- 13. (i) अपभ्रंश भाषा में कौन, क्या के अर्थ में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग में ‘काई' का प्रयोग भी होता है। नोट : काइं सभी विभक्तियों (प्रथमा से सप्तमी तक) व दोनों वचनों (एकवचन व बहुवचन) में काई ही रहता है। (32) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ii) अपभ्रंश भाषा में कौन, क्या के अर्थ में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग ‘कवण' और स्त्रीलिंग ‘कवणा' का प्रयोग भी होता है। नोटः पुल्लिंग, नपुंसकलिंग में कवण के रूप सव्व की तरह तथा स्त्रीलिंग कवणा के रूप सव्वा (कहा) की तरह चलेंगे। -------------- पुरुषवाचक सर्वनाम तुम्ह (तुम) (तीनों लिंगों में) प्रथमा एकवचन 1/1 14. अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग तुम्ह सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति एकवचन में 'तुहं होता है। तुम्ह (तुम) (तीनों लिंग) - तुहं (प्रथमा एकवचन) ----- (क) प्रथमा बहुवचन 1/2 (ख) द्वितीया बहुवचन 2/2 15. अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग तुम्ह सर्वनाम के प्रथमा विभक्ति बहुवचन तथा द्वितीया विभक्ति बहुवचन में 'तुम्हे' और 'तुम्हई होते हैं। प्रथमा बहुवचन 1/2 (क) तुम्ह (तुम) (तीनों लिंग) - तुम्हे/तुम्हई (प्रथमा बहुवचन) द्वितीया बहुवचन 2/2 - (ख). तुम्ह (तुम) (तीनों लिंग) - तुम्हे/तुम्हइं (द्वितीया बहुवचन) . (क) द्वितीया एकवचन 2/1(ख) तृतीया एकवचन 3/1(ग) सप्तमी एकवचन 7/1 16. अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग तुम्ह सर्वनाम के द्वितीया विभक्ति एकवचन, तृतीया विभक्ति एकवचन तथा सप्तमी विभक्ति एकवचन में 'पई' और 'तई होते हैं। अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (33) For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीया एकवचन 2/1 (क) तुम्ह (तुम) (तीनों लिंग ) - पई / तई (द्वितीया एकवचन) तृतीया एकवचन 3 / 1 (ख) तुम्ह (तुम) (तीनों लिंग ) - पई / तई (तृतीया एकवचन) सप्तमी एकवचन 7/1 (ग) तुम्ह (तुम) (तीनों लिंग ) - पई / तई ( सप्तमी एकवचन) 17. 18. तृतीया बहुवचन 3 / 2 अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग और नपुंसकलिंग तथा स्त्रीलिंग तुम्ह सर्वनाम के तृतीया विभक्ति बहुवचन में 'तुम्हेहिं' होता है। तुम्ह (तुम) (तीनों लिंग ) - तुम्हेहिं (तृतीया बहुवचन) (34) (क) पंचमी एकवचन 5 / 1 ( ख ) षष्ठी एकवचन 6/1 अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग तुम्ह सर्वनाम के पंचमी विभक्ति एकवचन तथा षष्ठी विभक्ति एकवचन में 'तउ, तुज्झ और तुध्र' होते हैं। पंचमी एकवचन 5/1 (क) तुम्ह (तुम) (तीनों लिंग ) - तउ / तुज्झ / तुध्र (पंचमी एकवचन ) षष्ठी एकवचन 6/1 (ख) तुम्ह (तुम) (तीनों लिंग ) - तउ / तुज्झ / तुध्र ( षष्ठी एकवचन) For Personal & Private Use Only अपभ्रंश - हिन्दी- व्याकरण Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (क) पंचमी बहुवचन 5/2 (ख) षष्ठी बहुवचन 6/2 19. अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग तुम्ह सर्वनाम के पंचमी विभक्ति बहुवचन तथा षष्ठी विभक्ति बहुवचन में तुम्हहं' होता है। पंचमी बहुवचन 5/2 (क) तुम्ह (तुम) (तीनों लिंग) - तुम्हहं (पंचमी बहुवचन) . षष्ठी बहुवचन 6/2 (ख) तुम्ह (तुम) (तीनों लिंग) - तुम्हहं (षष्ठी बहुवचन) ___सप्तमी बहुवचन 7/2 20. अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग तुम्ह सर्वनाम के सप्तमी विभक्ति बहुवचन में 'तुम्हासु' होता है। तुम्ह (तुम) (तीनों लिंग) - तुम्हासु (सप्तमी बहुवचन) -------------------------------------- म पुरुषवाचक सर्वनाम अम्ह (मैं) (तीनों लिंगों में) प्रथमा एकवचन 1/1 21. अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग अम्ह सर्वनाम ___ के प्रथमा विभक्ति एकवचन में 'हउं' होता है। . . · अम्ह (मैं) (तीनों लिंग) - हउं (प्रथमा एकवचन) - - - - - - - - - - (क) प्रथमा बहुवचन 1/2 (ख) द्वितीया बहुवचन 2/2 22. अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग अम्ह सर्वनाम - के प्रथमा विभक्ति बहुवचन तथा द्वितीया विभक्ति बहुवचन में 'अम्हे' और 'अम्हई होते हैं। अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (35) For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा बहुवचन 1/2 (क) अम्ह (मैं) (तीनों लिंग) - अम्हे / अम्हई (प्रथमा बहुवचन) द्वितीया बहुवचन 2/2 (ख) अम्ह ( मैं ) ( तीनों लिंग ) - अम्हे / अम्हइं (द्वितीया बहुवचन) 23. (क) द्वितीया एकवचन 2 / 1 (ख) तृतीया एकवचन 3 / 1 ( ग ) सप्तमी एकवचन 7/1 अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग अम्ह सर्वनाम के द्वितीया विभक्ति एकवचन, तृतीया विभक्ति एकवचन तथा सप्तमी विभक्ति एकवचन में 'मई' होता है। (क) अम्ह (मैं) (तीनों लिंग) (ग) तृतीया एकवचन 3 / 1 (ख) अम्ह (मैं) (तीनों लिंग ) - मई (तृतीया एकवचन ) 24. 25. द्वितीया एकवचन 2/1 (36) 1 • मई (द्वितीया एकवचन ) सप्तमी एकवचन 7/1 अम्ह (मैं) (.तीनों लिंग) - मई ( सप्तमी एकवचन) तृतीया बहुवचन 3 / 2 अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग अम्ह सर्वनाम के तृतीया विभक्ति बहुवचन में 'अम्हेहिं' होता है। अम्ह (मैं) (तीनों लिंग) - अम्हेहिं (तृतीया बहुवचन) (क) पंचमी एकवचन 5 / 1 ( ख ) षष्ठी एकवचन 6/1 अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग अम्ह सर्वनाम के पंचमी विभक्ति एकवचन तथा षष्ठी विभक्ति एकवचन में 'महु', और 'मज्झ' होते हैं। अपभ्रंश - हिन्दी For Personal & Private Use Only -व्याकरण Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमी एकवचन 5/1 (क) अम्ह (मैं) (तीनों लिंग) - मह/मज्झु (पंचमी एकवचन) षष्ठी एकवचन 6/1 (ख) अम्ह (मैं) (तीनों लिंग) - मह/मज्झु (षष्ठी एकवचन) (क) पंचमी बहुवचन 5/2 (ख) षष्ठी बहुवचन 6/2 26. अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग अम्ह सर्वनाम के पंचमी विभक्ति बहुवचन तथा षष्ठी विभक्ति बहुवचन में अम्हहं' होता है। पंचमी बहुवचन 5/2 (क) अम्ह (मैं) (तीनों लिंग) - अम्हहं (पंचमी बहुवचन) षष्ठी बहुवचन 6/2 (ख) अम्ह (मैं) (तीनों लिंग) - अम्हहं (षष्ठी बहुवचन) सप्तमी बहुवचन 7/2 27. अपभ्रंश भाषा में पुल्लिंग, नपुंसकलिंग और स्त्रीलिंग अम्ह सर्वनाम के सप्तमी विभक्ति बहुवचन में 'अम्हासु' होता है। . अम्ह (मैं) (तीनों लिंग) - अम्हासु (सप्तमी बहुवचन) नोट- अपभ्रंश भाषा में शब्द-रचना-प्रवृत्ति कहीं-कहीं प्राकृत भाषा' के अनुसार होती है और कहीं-कहीं पर शौरसेनी भाषा के मान भी होती 1. हेमचन्द्र वृत्ति 4/329 अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (37) For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. 2. (38) क्रियाओं के कालबोधक प्रत्यय वर्तमानकाल उत्तम पुरुष एकवचन 1 / 1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन में विकल्प से 'उ' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। जैसे (हस + उं) = हसउं = (मैं) हँसता हूँ/हँसती हूँ। (व.उ.पु. एक.) (ठा+उं)= ठाउं = (मैं) ठहरता हूँ/ठहरती हूँ। (व.उ.पु.एक.) (हो+उं) = होउं = (मैं) होता हूँ/होती हूँ। (व.उ.पु.एक.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन में प्राकृत भाषा के अनुसार 'मि' प्रत्यय भी उपर्युक्त क्रियाओं में लगता है। 'मि' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'आ' और 'ए' भी हो जाता है। जैसे ( हस+मि) = हसमि / हसामि / हसेमि= (मैं) हँसता हूँ / हँसती हूँ। (व.उपु.एक.) - (ठा+मि)=ठामि = (मैं) ठहरता हूँ/ठहरती हूँ। (व.उ.पु.एक.) ( हो + मि) = होमि = (मैं) होता हूँ/होती हूँ। (व.उ.पु.एक.) उत्तम पुरुष बहुवचन 1/2 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन में विकल्प से 'हुँ' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। जैसे - (हस+हुं) = हसहुं = (हम दोनों/हम सब) हँसते हैं/हँसती हैं। (व.उ.पु.बहु.) (ठा+हु) = ठाहुं = ( हम दोनों / हम सब ) ठहरते हैं / ठहरती हैं। (व.उ. पु. बहु.) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (हो+हुं) = होहुं = (हम दोनों/हम सब) होते हैं/होती हैं। (व.उ.पु.बहु.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन में प्राकृत भाषा के अनुसार ‘मो, मु और म' प्रत्यय भी उपर्युक्त क्रियाओं में लगते हैं। 'मो, मु और म' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'आ' 'इ' और 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+मो) = हसमो/हसामो/हसिमो/हसेमो = (हम दोनों/हम सब) हँसते हैं/हँसती हैं। (व.उ.पु.बहु.) (ठा+मो) = ठामो = (हम दोनों/हम सब)ठहरते हैं/ठहरती हैं। (व.उ.पु.बहु.) (हो+मो) = होमो = (हम दोनों/हम सब) होते हैं/होती हैं। (व.उ.पु.बहु.) (ख) (हस+मु) हसमु/हसामु/हसिमु/हसेमु = (हम दोनों/हम सब) हँसते हैं/हँसती हैं। (व.उ.पु.बहु.) (ठा+मु)-ठामु = (हम दोनों/हम सब)ठहरते हैं/ठहरती हैं। (व.उ.पु.बहु .) (हो+मु)-होमु = (हम सब) होते हैं/होती हैं। (व.उ.पु.बहु.) (ग) (हस+म) = हसम/हसाम/हसिम/हसेम = (हम दोनों/हम सब)हँसते हैं/हँसती हैं। (व.उ.पु.बहु.) (ठा+म)=ठाम = (हम दोनों/हम सब)ठहरते हैं/ठहरती हैं। (व.उ.पु.बहु.) (हो+म)= होम = (हम दोनों/हम सब) होते हैं/होती हैं। (व.उ.पु.बहु.) मध्यम पुरुष एकवचन 2/1 - 3. अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन में विकल्प से 'हि' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। जैसे (हस+हि) = हसहि = (तुम) हँसते हो/हँसती हो। (व.म.पु.एक.) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (39) For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ठा+हि) = ठाहि = (तुम) ठहरते हो/ठहरती हो। (व.म.पु.एक.) (हो+हि) = होहि = (तुम)होते हो/होती हो। (व.म.पु.एक.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन में प्राकृत भाषा के अनुसार 'सि और से' प्रत्यय भी अकारान्त क्रियाओं में लगते हैं। 'सि' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में केवल 'सि' प्रत्यय ही . लगता है ‘से' प्रत्यय नहीं लगता है। जैसे(हस+सि) = हससि/हसेसि = (तुम) हँसते हो/हँसती हो। (व.म.पु.एक.) (हस+से) = हससे = (तुम) हँसते हो/हँसती हो। (व.म.पु.एक.) (ठा+सि)= ठासि = (तुम) ठहरते हो/ठहरती हो। (व.म.पु.एक.) (हो+सि) = होसि (तुम) होते हो/होती हो। (व.म.पु.एक.) ----------------- मध्यम पुरुष बहुवचन 2/2 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन में विकल्प से 'हु' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। जैसे(हस+हु) = हसहु = (तुम दोनों/तुम सब) हँसते हो/हँसती हो। (व.म.पु.बहु.) (ठा+हु) = ठाहु = (तुम दोनों/तुम सब) ठहरते हो/ठहरती हो। (व.म.पु.बहु.) (हो+हु) = होहु = (तुम दोनों/तुम सब) होते हो/होती हो।(व.म.पु.बहु.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन में प्राकृत भाषा के अनुसार 'ह और इत्था' प्रत्यय तथा शौरसेनी भाषा के अनुसार 'ध' प्रत्यय भी उपर्युक्त क्रियाओं में लगता है। 'ह' , इत्था' और 'ध' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। जैसे अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण 4. (40) For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (क) (हस+ह) हसह/हसेह=(तुम दोनों/तुम सब) हँसते हो/हँसती हो। (व.म.पु.बहु.) (ठा+ह) = ठाह = (तुम दोनों/तुम सब)ठहरते हो/ठहरती हो। (व.म.पु.बहु .) (हो+ह) = होह = (तुम दोनों/तुम सब) होते हो/होती हो। (व.म.पु.बहु.) (ख) (हस+इत्था)=हसित्था/हसेइत्था = (तुम दोनों/तुम सब)हँसते हो/हँसती हो। (व.म.पु.बहु.) (ठा+इत्था)=ठाइत्था = (तुम दोनों/तुम सब)ठहरते हो/ठहरती हो।(व.म.पु.बहु.) (हो+इत्था) होइत्था = (तुम दोनों/तुम सब) होते हो/होती हो।(व.म.पु.बहु.) (ग) (हस+ध)-हसध/हसेध=(तुम दोनों/तुम सब) हँसते हो/हँसती हो।(व.म.पु.बहु.) (ठा+ध) = ठाध = (तुम दोनों/तुम सब)ठहरते हो/ठहरती हो।(व.म.पु.बहु .) (हो+ध) = होध = (तुम दोनों/तुम सब) होते हो/होती हो। (व.म.पु.बहु.) ------------ ---------- 5. अन्य पुरुष एकवचन 3/1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त क्रियाओं के वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन में प्राकृत भाषा के अनुसार ‘इ और ए' प्रत्यय तथा शौरसेनी भाषा के अनुसार 'दि और दे' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। 'ई' तथा 'दि' प्रत्यय लगने पर क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन में प्राकृत भाषा के अनुसार 'ई' प्रत्यय तथा शौरसेनी भाषा के अनुसार 'दि' प्रत्यय ही क्रियाओं में लगते हैं 'ए' तथा 'दे' प्रत्यय इन क्रियाओं में नहीं लगते हैं। जैसे(हस+इ)= हसइ/हसेइ = (वह) हँसता है/हँसती है। (व.अ.पु.एक.) (हस+ए) = हसए = (वह) हँसता है/हँसती है। (व.अ.पु.एक.) (हस+दि)= हसदि/हसेदि = (वह) हँसता है/हँसती है। (व.अ.पु.एक.) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (41) For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. (क) (ख) (42) ( हस+दे) = हसदे = ( वह) हँसता है / हँसती है। (व.अ.पु. एक.) (ठा+इ) = ठाइ = (वह) ठहरता है / ठहरती है । (व.अ.पु. एक.) (ठा+दि) = ठादि = ( वह) ठहरता है/ठहरती है। (व.अ.पु.एक.) (हो+इ) होइ = (वह) होता है / होती है। (व.अ.पु. एक.) = (हो+दि) = होदि = (वह) होता है/होती है। (व.अ.पु.एक.) अन्य पुरुष बहुवचन 3/2 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन में विकल्प से 'हिं' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। जैसे (हस + हिं) = हसहिं = (वे दोनों / वे सब ) हँसते हैं / हँसती हैं। (व.अ.पु.बहु.) (ठा+हिं) = ठाहिं (वे दोनों / वे सब ) ठहरते हैं/ठहरती हैं। (व.अ.पु.बहु.) (हो+हिं) = होहिं (वे दोनों / वे सब ) होते हैं/होती हैं। (व.अ.पु.बहु.) इसके अतिरिक्त वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन में प्राकृत भाष के अनुसार 'न्ति, न्ते और इरे' प्रत्यय भी उपर्युक्त क्रियाओं में लगते हैं। प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है। जैसे ( हस+न्ति) = हसन्ति = (वे दोनों/वे सब हँसते हैं/हँसती हैं। (व.अ.पु.बहु.) (ठा+न्ति)=ठान्ति→ठन्ति= (वे दोनों / वे सब ) ठहरते हैं/ठहरती हैं। (व.अ.पु.बहु.) (हो+न्ति) = होन्ति = (वे दोनों/वे सब) होते हैं/होती हैं। (व.अ.पु.बहु.) ( हस + न्ते) = हसन्ते = (वे दोनों / वे सब ) हँसते हैं/ हँसती हैं। (व.अ.पु.बहु.) (ठा+न्ते) = ठान्ते ठन्ते = (वे दोनों / वे सब ) ठहरते हैं/ठहरती हैं। (व.अ.पु.बहु.) ( हो+न्ते) = होन्ते = (वे दोनों / वे सब ) होते हैं/होती हैं। (व.अ.पु.बहु.) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ग) (हस+इरे) = हसिरे = (वे दोनों/वे सब) हँसते हैं/हँसती हैं। (व.अ.पु.बहु.) (ठा+इरे) = ठाइरे = (वे दोनों/वे सब) ठहरते हैं/ठहरती हैं। (व.अ.पु.बहु.) (हो+इरे) = होइरे = (वे दोनों/वे सब) होते हैं/होती हैं। (व.अ.पु.बहु.) 7. भूतकाल उत्तम पुरुष 1/1, मध्यम पुरुष 2/1, अन्य पुरुष 3/1 (एकवचन) उत्तम पुरुष 1/2, मध्यम पुरुष 2/2, अन्य पुरुष 3/2 (बहुवचन) अपभ्रंश भाषा में अकारान्त क्रियाओं में प्राकृत भाषा के अनुसार भूतकाल के उत्तम पुरुष एकवचन व बहुवचन, मध्यम पुरुष एकवचन व बहुवचन, अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में 'ईअ' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। जैसे - उत्तम पुरुष एकवचन 1/1 (हस+ईअ) = हसीअ = (मैं) हँसा/हँसी। (भू.उ.पु.एक.) उत्तम पुरुष बहुवचन 1/2 (हस+ईअ) = हसीअ = (हम दोनों/हम सब) हँसे/हँस। (भू.उ.पु.बहु.) - मध्यम पुरुष एकवचन 2/1 (हस+ईअ) = हसीअ = (तुम) हँसे/हँसी। (भू.म.पु.एक.) मध्यम पुरुष बहुवचन 2/2 (हस+ईअ) = हसीअ = (तुम दोनों/तुम सब) हँसे/हँस। (भू.म.पु.बहु.) अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (हस+ईअ) = हसीअ = (वह) हँसा/हँसी। (भू.अ.पु.एक.) अन्य पुरुष बहुवचन 3/2 (हस+ईअ) = हसीअ = (वे दोनों/वे सब) हँसे/हँसी। (भू.अ.पु.बहु.) ----------- अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (43) For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तम पुरुष 1/1, मध्यम पुरुष 2/1, अन्य पुरुष 3/1 (एकवचन) उत्तम पुरुष 1/2, मध्यम पुरुष 2/2, अन्य पुरुष 3/2 (बहुवचन) अपभ्रंश में आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में प्राकृत भाषा के अनुसार भूतकाल के उत्तम पुरुष एकवचन व बहुवचन, मध्यम पुरुष एकवचन व बहुवचन, अन्य पुरुष एकवचन व बहुवचन में 'सी', 'ही', 'हीअ' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। जैसे उत्तम पुरुष एकवचन 1/1 (ठा+सी) = ठासी = (मैं) ठहरा/ठहरी। (भू.उ.पु.एक.) (ठा+ही) = ठाही = (मैं) ठहरा/ठहरी। (भू.उ.पु.एक.) (ठा+हीअ) = ठाहीअ = (मैं) ठहरा/ठहरी। (भू.उ.पु.एक.) (हो+सी) = होसी = (मैं) हुआ/हुई। (भू.उ.पु.एक.) (हो+ही) = होही = (मैं) हुआ/हुई। (भू.उ.पु.एक.) (हो+हीअ) = होहीअ = (मैं) हुआ/हुई। (भू.उ.पु.एक.) ___ उत्तम पुरुष बहुवचन 1/2 (ठा+सी) = ठासी = (हम दोनों/हम सब) ठहरे/ठहरीं। (भू.उ.पु.बहु.) (ठा+ही) = ठाही = (हम दोनों/हम सब) ठहरे/ठहरीं। (भू.उ.पु.बहु.) (ठा+हीअ) = ठाहीअ = (हम दोनों/हम सब) ठहरे/ठहरीं। (भू.उ.पु.बहु.) (हो+सी) = होसी = (हम दोनों/हम सब) हुए/हुईं। (भू.उ.पु.बहु.) (हो+ही) = होही = (हम दोनों/हम सब) हुए/हुईं। (भू.उ.पु.बहु.) (हो+हीअ) = होहीअ = (हम दोनों/हम सब) हुए/हुईं। (भू.उ.पु.बहु.) मध्यम पुरुष एकवचन 2/1 (ठा+सी) = ठासी = (तुम) ठहरे/ठहरी। (भू.म.पु.एक.) (44) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ठा+ही) = ठाही = (तुम) ठहरे/ठहरी। (भू.म.पु.एक.) (ठा+हीअ) = ठाहीअ = (तुम) ठहरे/ठहरी। (भू.म.पु.एक.) (हो+सी) = होसी = (तुम) हुए/हुई। (भू.म.पु.एक.) (हो+ही) = होही = (तुम) हुए/हुई। (भू.म.पु.एक.) (हो+हीअ) = होहीअ = (तुम) हुए/हुई। (भू.म.पु.एक.) मध्यम पुरुष बहुवचन 2/2 (ठा+सी) = ठासी = (तुम दोनों/तुम सब) ठहरे/ठहरीं। (भू.म.पु.बहु.) (ठा+ही) = ठाही = (तुम दोनों/तुम सब) ठहरे/ठहरीं। (भू.म.पु.बहु.) (ठा+हीअ) = ठाहीअ = (तुम दोनों/तुम सब) ठहरे/ठहरीं। (भू.म.पु.बहु.) (हो+सी) = होसी = (तुम दोनों/तुम सब) हुए/हुईं। (भू.म.पु.बहु.) (हो+ही) = होही = (तुम दोनों/तुम सब) हुए/हुईं। (भू.म.पु.बहु.) (हो+हीअ) = होहीअ = (तुम दोनों/तुम सब) हुए/हुईं। (भू.म.पु.बहु.) अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (ठा+सी) = ठासी = (वह) ठहरा/ठहरी। (भू.अ.पु.एक.) (ठा+ही) = ठाही = (वह) ठहरा/ठहरी। (भू.अ.पु.एक.) (ठा+हीअ) = ठाहीअ = (वह) ठहरा/ठहरी। (भू.अ.पु.एक.) (हो+सी) = होसी = (वह) हुआ/हुई। (भू.अ.पु.एक.) (हो+ही) = होही = (वह) हुआ/हुई। (भू.अ.पु.एक.) (हो+हीअ) = होहीअ = (वह) हुआ/हुई। (भू.अ.पु.एक.) . अन्य पुरुष बहुवचन 3/2 (ठा+सी) = ठासी = (वे दोनों/वे सब) ठहरे/ठहरीं। (भू.अ.पु.बहु.) (ठा+ही) = ठाही = (वे दोनों/वे सब) ठहरे/ठहरी। (भू.अ.पु.बहु.) (ठा+हीअ) = ठाहीअ = (वे दोनों/वे सब) ठहरे/ठहरीं।.(भू.अ.पु.बहु.) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (45) For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (हो+सी) = होसी = (वे दोनों/वे सब) हुए/हुईं। (भू.अ.पु.बहु.) - (हो+ही) = होही = (वे दोनों/वे सब) हुए/हुई। (भू.अ.पु.बहु.) (हो+हीअ) = होहीअ = (वे दोनों/वे सब) हुए/हुईं। (भू.अ.पु.बहु.) 9. भविष्यत्काल — उत्तम पुरुष एकवचन 1/1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के अर्थ में विकल्प से 'स' प्रत्यय जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन का 'उ' प्रत्यय जोड़ दिया जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+स+उं) = हसिसउं/हसेसउं = (मैं) हँसूंगा/हलूंगी। (भ.उ.पु.एक.) (ठा+स+3) = ठासउं (मैं) ठहरूँगा/ठहरूंगी। (भ.उ.पु.एक.) (हो+स+3) = होसउं (मैं) होऊँगा/होऊँगी। (भ.उ.पु.एक.) इसके अतिरिक्त उपर्युक्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के अर्थ में प्राकृत भाषा के अनुसार 'हि' प्रत्यय भी जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् प्राकृत भाषा के अनुसार वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष एकवचन का 'मि' प्रत्यय जोड़ दिया जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+हि+मि) = हसिहिमि/हसेहिमि (मैं) हँसूंगा/हँसूंगी। (भ.उ.पु.एक.) (ठा+हि+मि) = ठाहिमि ((मैं) ठहरूंगा/ठहरूंगी। (भ.उ.पु.एक.) (हो+हि+मि) = होहिमि (मैं) होऊँगा/होऊँगी। (भ.उ.पु.एक.) (46) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तम पुरुष बहुवचन 1/2 10. अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के अर्थ में विकल्प से 'स' प्रत्यय जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन का 'हुँ' प्रत्यय जोड़ दिया जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+स+हुं) = हसिसहुं/हसेसहुं = (हम दोनों/हम सब) हँसेंगे/हँसेंगी। (भ.उ.पु.बहु.) (ठा+स+हुं) = ठासहुं = (हम दोनों/हम सब) ठहरेंगे/ठहरेंगी। (भ.उपु.बहु.) (हो+स+हुं) = होसहुं = (हम दोनों/हम सब) होंगे/होंगी। (भ.उ.पु.बहु.) इसके अतिरिक्त उपर्युक्त क्रियाओं में भविष्यत्काल के अर्थ में प्राकृत भाषा के अनुसार 'हि' प्रत्यय भी जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् प्राकृत भाषा के अनुसार वर्तमानकाल के उत्तम पुरुष बहुवचन के 'मो, मु और म' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं और अकारान्त क्रिया ... के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसे(क) (हस+हि+मो)=हसिहिमो/हसेहिमो = (हम दोनों/हम सब) हँसेंगे/हँसेंगी। (भ.उ.पु.बहु.) (ठा+हि+मो) = ठाहिमो = (हम दोनों/हम सब) ठहरेंगे/ठहरेंगी। (भ.उ.पु.बहु.) (हो+हि+मो) = होहिमो = (हम दोनों/हम सब) होंगे /होंगी। (भ.उ.पु.बहु.) (ख) (हस+हि+मु) = हसिहिमु/हसेहिमु = (हम दोनों/हम सब) हँसेंगे/हँसेंगी। (भ.उ.पु.बहु.) (ठा+हि+मु) = ठाहिमु = (हम दोनों/हम सब) ठहरेंगे/ठहरेंगी। (भ.उ.पु.बहु.) (हो+हि+मु) = होहिमु = (हम दोनों/हम सब) होंगे/होंगी। (भ.उ.पु.बहु.) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (47) For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ग) (हस + हि+म) = हसिहिम / हसेहिम = ( हम दोनों/हम सब) हँसेंगे/हँसेंगी। (भ.उ.पु.बहु.) (ठा+हि+म) = ठाहिम = (हम दोनों / हम सब ) ठहरेंगे / ठहरेंगी। (भ.उ.पु.बहु.) ( हो + हि+म) = होहिम = (हम दोनों / हम सब ) होंगे / होंगी। (भ.उ.पु.बहु.) मध्यम पुरुष एकवचन 2 / 1 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के अर्थ में विकल्प से 'स' प्रत्यय जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन का 'हि' प्रत्यय जोड़ दिया जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है । जैसे = (तुम) हँसोगे / हँसोगी। (भ.म.पु. एक.) ( हस + स + हि) = हसिसहि / हसेसहि (ठा+स+हि) = ठासहि = (तुम) ठहरोगे / ठहरोगी । (भ.म.पु.एक.) (हो+स+हि) = होसहि = (तुम) होओगे / होओगी। (भ.म.पु.एक.) इसके अतिरिक्त भविष्यत्काल के अर्थ में उपर्युक्त क्रियाओं में प्राकृत भाषा के अनुसार 'हि' प्रत्यय भी जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् प्राकृत भाषा के अनुसार वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष एकवचन के 'सि और से' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है । जैसे(क) (हस+हि+सि) =हसिहिसि / हसेहिसि = (तुम) हँसोगे /हँसोगी। (भ.म.पु.एक.) (हस + हि+ से) = हसिहिसे/हसेहिसे = (तुम) हँसोगे / हँसोगी। (भ.म.पु.एक.) आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में केवल 'सि' प्रत्यय ही जोड़ा जाता है 'से' प्रत्यय नहीं । जैसे 11. (48) - अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ख) (ठा + हि+सि) = ठाहिसि = (तुम) ठहरोगे / ठहरोगी। (भ.म.पु.एक.) ( हो + हि+सि) = होहिसि = (तुम) होओगे / होओगी। (भ.म.पु.एक.) 12. मध्यम पुरुष बहुवचन 2/2 अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के अर्थ में विकल्प से 'स' प्रत्यय जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन का 'हु' प्रत्यय जोड़ दिया जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसे ( हस+स+हु) = हसिसह / हसेसहु = (तुम दोनों / तुम सब ) हँसोगे / हँसोगी। (भ.म.पु.बहु.) (ठा+स+हु) = ठासहु = (तुम दोनों / तुम सब ) ठहरोगे / ठहरोगी। (भ.म.पु.बहु.) (हो+स+हु) = होसहु = (तुम दोनों / तुम सब ) होवोगे / होवोगी। (भ.म.पु.बहु.) इसके अतिरिक्त भविष्यत्काल के अर्थ में उपर्युक्त क्रियाओं में प्राकृत भाषा के अनुसार 'हि' प्रत्यय भी जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् प्राकृत भाषा के अनुसार वर्तमानकाल के मध्यम पुरुष बहुवचन के ‘ह और इत्था' प्रत्यय तथा शौरसेनी भाषा के अनुसार 'ध' प्रत्यय भी जोड़ दिया जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' और 'ए' हो जाता है । जैसे (हस + हि+ह) = हसिहिह / हसेहिह = (तुम दोनों / तुम सब ) हँसोगे/हँसोगी। (भ.म.पु. बहु (ठा+हि+ह) = ठाहिह = (तुम दोनों / तुम सब ) ठहरोगे / ठहरोगी । (भ.म.पु.बहु.) (हो+हि+ह) = होहिह = (तुम दोनों / तुम सब ) होवोगे / होवोगी। (भ.म.पु.बहु.) (49) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ख) (हस+हि+इत्था) = हसिहित्था/हसेहित्था = (तुम दोनों/तुम सब) हँसोगे/हँसोगी। (भ.मपु.एक.) (ठा+हि+इत्था)=ठाहित्था=(तुम दोनों/तुम सब) ठहरोगे/ठहरोगी। (भ.म.पु.बहु.) (हो+हि+इत्था) होहित्था (तुम दोनों/तुम सब) होवोगे/होवोगी। (भ.म.पु.बहु.) (ग) (हस+हि+ध)= हसिहिध/हसेहिध= (तुम दोनों/तुम सब) हँसोगे/हँसोगी। (भ.म.पु.बहु) . (ठा+हि+ध) = ठाहिध = (तुम दोनों/तुम सब) ठहरोगे/ठहरोगी। (भ.म.पु.बहु.) (हो+हि+ध) = होहिध = (तुम दोनों/तुम सब) होवोगे/होवोगी। (भ.म.पु.बहु.) -------- अन्य पुरुष एकवचन 3/1 13. अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के अर्थ में विकल्प से 'स' प्रत्यय जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन के 'इ, ए, दि और दे' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। . आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में केवल 'इ और दि' प्रत्यय ही क्रियाओं में जोड़े जाते हैं 'ए और दें' प्रत्यय नहीं। जैसे(हस+स+इ) = हसिसइ/हसेसइ = (वह) हँसेगा /हँसेगी। (भ.अ.पु.एक.) (हस+स+ए) = हसिसए/हसेसए = (वह) हँसेगा /हँसेगी। (भ.अ.पु.एक.) (हस+स+दि) = हसिसदि/हसेसदि = (वह) हँसेगा /हँसेगी। (भ.अ.पु.एक.) (हस+स+दे) = हसिसदे/हसेसदे = (वह) हँसेगा /हँसेगी। (भ.अ.पु.एक.) (ठा+स+इ) = ठासइ = (वह) ठहरेगा/ठहरेगी। (भ.अ.पु.एक.) (ठा+स+दि) = ठासदि = (वह) ठहरेगा/ठहरेगी। (भ.अ.पु.एक.) (हो+स+इ) = होसइ = (वह) होवेगा/होवेगी। (भ.अ.पु.एक.) (हो+स+दि) = होसदि = (वह) होवेगा/होवेगी। (भ.अ.पु.एक.) (50) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इसके अतिरिक्त भविष्यत्काल के अर्थ में उपर्युक्त क्रियाओं में प्राकृत भाषा के अनुसार 'हि' प्रत्यय भी जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन के 'इ, ए, दि और दें' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं में केवल 'इ और दि' प्रत्यय ही क्रियाओं में जोड़े जाते हैं ‘ए और दें' प्रत्यय नहीं। जैसे(हस+हि+इ) = हसिहिइ/हसेहिइ = (वह) हँसेगा/हँसेगी। (भ.अ.पु.एक.) (हस+हि+ए) = हसिहिए/हसेहिए = (वह) हँसेगा/हंसेगी। (भ.अ.पु.एक.) (हस+हि+दि) हसिहिदि/हसेहिदि = (वह) हँसेगा/हँसेगी। (भ.अ.पु.एक.) (हस+हि+दे) = हसिहिदे/हसेहिदे = (वह) हँसेगा/हँसेगी। (भ.अ.पु.एक.) (ठा+हि+इ) = ठाहिइ = (वह) ठहरेगा/ठहरेगी। (भ.अ.पु.एक.) (ठा+हि+दि) = ठाहिदि = (वह) ठहरेगा/ठहरेगी। (भ.अ.पु.एक.) (हो+हि+इ) = होहिइ = (वह) होवेगा/होवेगी। (भ.अ.पु.एक.) (हो+हि+दि) = होहिदि = (वह) होवेगा/होवेगी। (भ.अ.पु.एक.) इनके अतिरिक्त भविष्यत्काल के अर्थ में उपर्युक्त क्रियाओं में शौरसेनी भाषा के अनुसार 'स्सि' प्रत्यय भी जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के अन्य पुरुष एकवचन का 'दि' प्रत्यय भी . जोड़ दिया जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। जैसे(हस+स्सि+दि) = हसिस्सिदि = (वह) हँसेगा/हँसेगी। (भ.अ.पु.एक.) (ठा+स्सि+दि) = ठास्सिदि = (वह) ठहरेगा/ठहरेगी। (भ.अ.पु.एक.) (हो+स्सि+दि) = होस्सिदि = (वह) होवेगा/होवेगी। (भ.अ.पु.एक.) --- अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (51) For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्य पुरुष बहुवचन 3/2 . 14. अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में भविष्यत्काल के अर्थ में विकल्प से 'स' प्रत्यय जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन का 'हिं' प्रत्यय जोड़ दिया जाता है और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसे(हस+स+हिं) = हसिसहि/हसेसहिं = (वे दोनों/वे सब) हँसेंगे/हँसेंगी। _(भ.अ.पु.बहु.) (ठा+स+हिं) = ठासहिं = (वे दोनों/वे सब) ठहरेंगे/ठहरेंगी।(भ.अ.पु.बहु.) (हो+स+हिं) = होसहिं = (वे दोनों/वे सब) होंगे/होंगी। (भ.अ.पु.बहु.) इसके अतिरिक्त भविष्यत्काल के अर्थ में प्राकृत भाषा के अनुसार उपर्युक्त क्रियाओं में 'हि' प्रत्यय भी जोड़ा जाता है, इसको जोड़ने के पश्चात् प्राकृत भाषा के अनुसार वर्तमानकाल के अन्य पुरुष बहुवचन के 'न्ति, न्ते और इरे' प्रत्यय जोड़ दिये जाते हैं और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसे(क) (हस+हि+न्ति) हसिहिन्ति/हसेहिन्ति (वे दोनों/वे सब) हँसेंगे/हँसेंगी। (भ.अ.पु.बहु.) (ठा+हि+न्ति) = ठाहिन्ति = (वे दोनों/वे सब) ठहरेंगे/ठहरेंगी।(भ.अ.पु.बहु.) (हो+हि+न्ति) = होहिन्ति = (वे दोनों/वे सब) होंगे/होंगी। (भ.अ.पु.बहु.) (ख) (हस+हि+न्ते) हसिहिन्ते/हसेहिन्ते= (वे दोनों/वे सब) हँसेंगे/हँसेंगी। (भ.अ.पु.बहु.) (ठा+हि+न्ते) = ठाहिन्ते = (वे दोनों/वे सब) ठहरेंगे/ठहरेंगी।(भ.अ.पु.बहु .) (हो+हि+न्ते) = होहिन्ते = (वे दोनों/वे सब) होंगे/होंगी। (भ.अ.पु.बहु.) (52) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ग) (हस+हि+इरे) = हसिहिइरे या हसिहिरे/हसेहिइरे या हसेहिरे = (वे दोनों/वे सब) हँसेंगे/हँसेंगी। (भ.अ.पु.बहु.) (ठा+हि+इरे) = ठाहिइरे या ठाहिरे = (वे दोनों/वे सब)ठहरेंगे/ठहरेंगी।(भ.अ.पु.बहु.) (हो+हि+इरे) होहिइरे या होहिरे=(वे दोनों/वे सब) होंगे/होंगी। (भ.अ.पु.बहु.) विधि एवं आज्ञा उत्तम पुरुष एकवचन 1/1 15. अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के विधि एवं आज्ञा के उत्तम पुरुष एकवचन में प्राकृत भाषा के अनुसार 'मुं' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। 'मु' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+मु) = हसमु/हसेमु = (मैं) हँसू। (वि. उ.पु. एक.) (ठा+मु) = ठामु = (मैं) ठहरूँ। (वि.उ.पु.एक.) (हो+मु) = होमु = (मैं) होऊँ। (वि.उ.पु.एक.) . . उत्तम पुरुष बहुवचन 1/2 16. अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के विधि एवं आज्ञा के उत्तम पुरुष बहुवचन में प्राकृत भाषाके अनुसार .. 'मो' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। 'मो' प्रत्यय लगने पर अकारान्त - क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'आ' और 'ए' भी हो जाता है। जैसे(क) (हस+मो)-हसमो/हसामो/हसेमो (हम दोनों/हम सब) हँसें। (वि.उ.पु.बहु.) - (ठा+मो) = ठामो = (हम दोनों/हम सब) ठहरें। (वि.उ.पु.बहु.) (हो+मो) = होमो = (हम दोनों/हम सब) होवें। (वि.उ.पु.बहु.) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (53) For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मध्यम पुरुष एकवचन 2/1 17. अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के विधि एवं आज्ञा के मध्यम पुरुष एकवचन में विकल्प से 'इ, उ और ए' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। जैसे(क) (हस+इ) = हसि = (तुम) हँसो। (वि.म.पु.एक.) (ठा+इ) = ठाइ = (तुम) ठहरो। (वि.म.पु.एक.) (हो+इ) = होइ = (तुम) होवो। (वि.म.पु.एक.) (ख) (हस+उ) = हसु = (तुम) हँसो। (वि.म.पु.एक.) (ठा+उ) = ठाउ = (तुम) ठहरो। (वि.म.पु.एक.) (हो+उ) = होउ = (तुम) होवो। (वि.म.पु.एक.) (ग) (हस+ए) = हसे = (तुम) हँसो। (वि.म.पु.एक.) (ठा+ए) = ठाए = (तुम) ठहरो। (वि.म.पु.एक.) (हो+ए) = होए = (तुम) होवो। (वि.म.पु.एक.) इसके अतिरिक्त प्राकृत भाषा के अनुसार अकारान्त क्रियाओं में 'हि, सु और शून्य (0)' प्रत्यय भी लगते हैं। प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। जैसे(हस+हि) = हसहि/हसेहि = (तुम) हँसो। (वि.म.पु.एक.) (हस+सु) = हससु/हसेसु = (तुम) हँसो। (वि.म.पु.एक.) (हस+0) = हस = (तुम) हँसो। (वि.म.पु.एक) आकारान्त व ओकारान्त आदि क्रियाओं में केवल 'हि और सु' प्रत्यय ही लगते हैं 'शून्य (0)' प्रत्यय नहीं लगता। जैसे(ख) (ठा+हि) = ठाहि = (तुम) ठहरो। (वि.म.पु.एक.) (हो+हि) = होहि = (तुम) होवो। (वि.म.पु.एक.) (54) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ग) (ठा+सु) = ठासु = (तुम) ठहरो। (वि.म.पु.एक.) (हो+सु) = होसु = (तुम) होवो। (वि.म.पु.एक.) 18. (क) (ख) 19. (क) मध्यम पुरुष बहुवचन 2/2 अपभ्रंश में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के विधि एवं आज्ञा के मध्यम पुरुष बहुवचन में प्राकृत भाषा के अनुसार 'ह' प्रत्यय तथा शौरसेनी भाषा के अनुसार 'ध' प्रत्यय क्रियाओं में लगता है। 'ह' और 'ध' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। जैसे ( हस + ह) = हसह / हसेह = (तुम दोनों / तुम सब ) हँसो। (वि.म.पु. बहु.) (ठा+ह) : = ठाह = (तुम दोनों / तुम सब ) ठहरो । ( वि.म.पु. बहु . ) (हो+ह) = - होह = (तुम दोनों / तुम सब ) होवो । (वि.म.पु. बहु.) ( हस+ध) = हसध / हसेध = (तुम दोनों / तुम सब ) हँसो। (वि.म.पु.बहु.) (ठा+ध) = ठाध = (तुम दोनों/तुम सब) ठहरो। (वि.म.पु.बहु.) (हो+ध) = होध = (तुम दोनों/तुम सब) होवो। (वि.म.पु.बहु.) अन्य पुरुष एकवचन 3 / 1 अपभ्रंश में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के विधि एवं आज्ञा के अन्य पुरुष एकवचन में प्राकृत भाषा के अनुसार 'उ' प्रत्यय तथा शौरसेनी भाषा के अनुसार 'दु' प्रत्यय क्रियाओं में लगते हैं। ‘उ और दु' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। जैसे ( हस + उ ) = हसउ / हसेउ = (वह) हँसे। (वि.अ.पु.एक.) (31+3) = ठाउ = (वह) ठहरे। (वि.अ.पु. एक.) ( हो+उ) = होउ = ( वह) होवे। (वि.अ.पु.एक.) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only (55) Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ख) (हस+दु) = हसदु/हसेदु = (वह) हँसे। (वि.अ.पु.एक.) (ठा+दु) = ठादु = (वह) ठहरे। (वि.अ.पु.एक.) (हो+दु) = होदु = (वह) होवे। (वि.अ.पु.एक.) . अन्य पुरुष बहुवचन 3/2 20. अपभ्रंश भाषा में अकारान्त, आकारान्त, ओकारान्त आदि क्रियाओं के विधि एवं आज्ञा के अन्य पुरुष बहुवचन में प्राकृत भाषा के अनुसार 'न्तु' प्रत्यय क्रिया में लगता है। 'न्तु' प्रत्यय लगने पर अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ए' भी हो जाता है। प्राकृत के नियमानुसार संयुक्ताक्षर के पहिले यदि दीर्घ स्वर हो तो वह ह्रस्व हो जाता है। जैसे(हस+न्तु) = हसन्तु/हसेन्तु = (वे दोनों/वे सब) हँसें। (वि.अ.पु.बहु.) (ठा+न्तु) = ठान्तु- ठन्तु = (वे दोनों/वे सब) ठहरें। (वि.अ.पु.बहु.) (हो+न्तु) = होन्तु = (वे दोनों/वे सब)होवें। (वि.अ.पु.बहु.) -------------- ------------- नोट- अपभ्रंश भाषा में शब्द-रचना-प्रवृत्ति कहीं-कहीं प्राकृत भाषा' के अनुसार होती है और कहीं-कहीं पर शौरसेनी भाषा के समान भी होती 1. हेमचन्द्र वृत्ति 4/329 (56) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तों के प्रत्यय विधि कृदन्त 1.(क) अपभ्रंश भाषा में ‘चाहिए' अर्थ में विधि कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। विधि कृदन्त में 'इएव्वउं', 'एव्वउं' और 'एवा' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं। जैसे1. (हस+इएव्वउं) = हसिएव्वउं (हँसा जाना चाहिए) 2. (हस+एव्वउं) = हसेव्वउं (हँसा जाना चाहिए) 3. (हस+एवा) = हसेवा (हँसा जाना चाहिए) (ख) अपभ्रंश भाषा में प्राकृत भाषा के अनुसार विधि कृदन्त में अव्व, यव्व, तव्व और दव्व' प्रत्यय भी क्रियाओं में जोड़े जाते हैं और अकारान्त क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' और 'ए' हो जाता है। जैसे (हस+अव्व) = हसिअव्व/हसेअव्व (हँसा जाना चाहिए) (हस+यव्व) = हसियव्व/हसेयव्य (हँसा जाना चाहिए) (हस+तव्व) = हसितव्व/हसेतव्व (हँसा जाना चाहिए) (हस+दव्व) = हसिदव्व/हसेदव्व (हँसा जाना चाहिए) सम्बन्धक भूतकृदन्त 2. (i) अपभ्रंश भाषा में 'करके अर्थ में संबंधक भूतकृदन्त का प्रयोग किया जाता है। संबंधक भूतकृदन्त में 'इ', 'इउ', 'इवि', अवि', 'एप्पि', 'एप्पिणु', ‘एवि' और 'एविणु' प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते हैं। जैसे अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण . (57) For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ii) 3. (58) 1. ( हस + इ) = हसि (हँसकर) 2. (हस + इउ) = हसिउ (हँसकर ) 3. ( हस + इवि ) = हसिवि (हँसकर ) 4. ( हस + अवि ) = हसवि (हँसकर ) 5. ( हस + एप्पि) = हसेप्पि (हँसकर ) 6. ( हस + एप्पिणु) = हसेप्पिणु (हँसकर ) 7. (हस + एवि ) = हसेवि (हँसकर ) 8. ( हस + एविणु) = हसेविणु (हँसकर ) अपभ्रंश भाषा में 'करके' अर्थ में संबंधक भूतकृदन्त का प्रयोग किया जाता है। शौरसेनी भाषा के अनुसार संबंधक भूतकृदन्त में 'इय', 'दूण', 'दूणं' और 'त्ता' प्रत्यय भी क्रिया में जोड़े जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। जैसे -, 1. (हस + इय) = 2. ( हस+ दूण) = हसिदूण / हसिदूणं (हँसकर). 3. ( हस + त्ता) = हसित्ता (हँसकर ) हसि (हँसकर ) अपभ्रंश भाषा में 'जाकर', 'गमन करके' अर्थ में 'गम' क्रिया में 'एप्पिणु' और 'एप्पि' प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते हैं। इन प्रत्ययों को क्रिया में जोड़ने के पश्चात् विकल्प से एप्पिणु और एप्पि प्रत्ययों के आदि स्वर एका लोप हो जाता है। जैसे - ( गम + एप्पिणु) = गम्प्पिणु / गमेप्पिणु (जाकर / गमन करके) ( गम + एप्पि) = गम्प्पि / गमेप्पि ( जाकर / गमन करके) अपभ्रंश - हिन्दी- व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 4. 5. हेत्वर्थक कृदन्त अपभ्रंश भाषा में 'के लिए' अर्थ में हेत्वर्थक कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। हेत्वर्थक कृदन्त में 'एवं', 'अण', 'अणहं', 'अणहिं', 'एप्पि', 'एप्पिणु', 'एवि' और 'एविणु' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं। जैसे 1. (हस + एवं ) = हसेवं (हँसने के लिए) 2. ( हस + अण) = हसण ( हँसने के लिए) 3. (हस + अहं) = हसणहं (हँसने के लिए) 4. ( हस + अणहिं) = हसणहिं (हँसने के लिए) 5. (हस + एप्पि) = हसेप्पि (हँसने के लिए ) 6. ( हस + एप्पिणु) = हसेप्पिणु (हँसने के लिए) 7. ( हस + एवि ) = हसेवि (हँसने के लिए) 8. ( हस + एविणु) = हसेविणु (हँसने के लिए) भूतकालिक कृदन्त अपभ्रंश भाषा में भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए प्राकृत भाषा के अनुसार भूतकालिक कृदन्त का भी प्रयोग किया जाता है। भूतकालिक कृदन्त में 'अ' और 'य' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'ई' हो जाता है। जैसे (हस + अ ) = हसिअ (हँसा ) ( हस+य) = हसिय (हँसा ) अपभ्रंश - हिन्दी- व -व्याकरण - For Personal & Private Use Only (59) Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. 1. वर्तमान कृदन्त अपभ्रंश भाषा में हँसता हुआ आदि भावों को प्रकट करने के लिए प्राकृत भाषा के अनुसार वर्तमान कृदन्त का प्रयोग किया जाता है। वर्तमान में 'न्त' और 'माण' प्रत्यय क्रियाओं में जोड़े जाते कृ (60) हैं। जैसे नोट- अपभ्रंश भाषा में शब्द - रचना - प्रवृत्ति कहीं-कहीं प्राकृत भाषा' के अनुसार होती है और कहीं-कहीं पर शौरसेनी भाषा के समान भी होती है। - ( हस+न्त) = हसन्त (हँसता हुआ) ( हस+माण) = हसमाण (हँसता हुआ ) हेमचन्द्र वृत्ति 4/329 अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाववाच्य एवं कर्मवाच्य के प्रत्यय अपभ्रंश भाषा में भाववाच्य तथा कर्मवाच्य का प्रयोग किया जाता है। अकर्मक क्रियाओं से भाववाच्य तथा सकर्मक क्रियाओं से कर्मवाच्य बनाया जाता है। क्रिया का भाववाच्य में प्रयोग - नियम अकर्मक क्रियाओं से भाववाच्य बनाने के लिए प्राकृत भाषा के अनुसार 'इज्ज' और 'इअ' / 'इय' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। * कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी । क्रिया में उपर्युक्त प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् 'अन्य पुरुष एकवचन ' के प्रत्यय भी काल के अनुसार लगा दिये जाते हैं। 'इज्ज' और 'इअ' / 'इय' प्रत्यय वर्तमानकाल, भूतकाल तथा विधि एवं आज्ञा में लगाये जाते हैं। जैसे = (क) (i) (हस + इज्ज+इ) = हसिज्जइ = हँसा जाता है। (व.अ.पु. एक.) (हस + इज्ज + ए ) = हसिज्जए हँसा जाता है। (व.अ.पु. एक.) (हस + इज्ज+दि) = हसिज्जदि = हँसा जाता है। (व.अ.पु.एक.) ( हस + इज्ज + दे ) = हसिज्जदे = हँसा जाता है। (व.अ.पु. एक.) (ii) (हस + इ + इ) = हसियइ = हँसा जाता है। (व.अ.पु.एक.) ( हस + इ + ए ) = हसियए = हँसा जाता है। (व.अ.पु. एक.) (हस + इय+दि) = हसियदि हँसा जाता है। (व.अ.पु. एक.) (हस + इ + ए ) = हसियदे = हँसा जाता है। (व.अ.पु. एक.) = 1. * इअ / इय के लिए देखें, अपभ्रंश भाषा का अध्ययन, अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण पृष्ठ-218 For Personal & Private Use Only (61) Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ख) (हस+इज्ज+ईअ) = हसिज्जईअ (हसिज्जीअ) = हँसा गया। (भू.अ.पु.एक.) (हस+इअ+ईअ) = हसिअईअ (हसिईअ) = हँसा गया। (भू.अ.पु.एक.) (ग) (i) (हस+इज्ज+उ) = हसिज्जउ = हँसा जाए। (वि.अ.पु.एक.) (हस+इज्ज+दु) = हसिज्जदु = हँसा जाए। (वि.अ.पु.एक.) (i) (हस+इअ+उ) = हसिअउ = हँसा जाए। (वि.अ.पु.एक.) (हस+इअ+दु) = हसिअदु = हँसा जाए। (वि.अ.पु.एक.) ----- 2. भविष्यत्काल में क्रिया का भविष्यत्काल कर्तृवाच्य रूप ही बना रहता है उसमें 'इज्ज' और 'इ' प्रत्यय नहीं लगते। जैसे(क) (हस+स+इ) = हसिसइ/हसेसइ = हँसा जायेगा। (भ.अ.पु.एक.) (हस+स+ए) = हसिसए/हसेसए = हँसा जायेगा। (भ.अ.पु.एक.) (हस+स+दि) = हसिसदि/हसिसदि = हँसा जायेगा। (भ.अ.पु.एक.) (हस+स+दे) = हसिसदे/हसेसदे = हँसा जायेगा। (भ.अ.पु.एक.) (ख) (हस+हि+इ) = हसिहिइ/हसेहिइ = हँसा जायेगा। (भ.अ.पु.एक.) (हस+हि+ए) = हसिहिए/हसेहिए = हँसा जायेगा। (भ.अ.पु.एक.) (हस+हि+दि) = हसिहिदि/हसेहिदि = हँसा जायेगा। (भ.अ.पु.एक.) (हस+हि+दे) = हसिहिदे/हसेहिदे = हँसा जायेगा। (भ.अ.पु.एक.) -------- नोट- अपभ्रंश भाषा में शब्द-रचना-प्रवृत्ति कहीं-कहीं प्राकृत भाषा' के अनुसार होती है और कहीं-कहीं पर शौरसेनी भाषा के समान भी होती ---- 1. हेमचन्द्र वृत्ति 4/329 (62) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तों का भाववाच्य में प्रयोग-नियम भूतकालिक कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग-नियम जब क्रिया अकर्मक होती है तो अपभ्रंश भाषा में प्राकृत भाषा के अनुसार भूतकालिक कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग होता है। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कृदन्त में सदैव 'नपुंसकलिंग एकवचन' ही होगा। जैसे हसिअ/हसिआ/हसिउ = हँसा गया। नोट- जब अकर्मक क्रियाओं में भूतकालिक कृदन्त के प्रत्ययों को लगाया जाता है तो भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए इनका प्रयोग कर्तृवाच्य में भी किया जा सकता है। कर्ता पुल्लिंग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग में से जो भी होगा भूतकालिक कृदन्त के रूप भी उसी के अनुसार होंगे। जैसे(क) नरिंद/नरिंदा/नरिंदु/नरिंदो हसिअ/हसिआ/हसिउ/हसिओ = राजा हँसा। (पुल्लिंग एकवचन) (ख) कमल/कमला/कमलु विअसिअ/विअसिआ/विअसिउ = कमल खिला । (नपुंसकलिंग एकवचन) (ग) ससा/सस हसिआ/हसिअ = बहिन हँसी। (स्त्रीलिंग एकवचन) -------------------- -------- . विधि कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग-नियम (क). जब क्रिया अकर्मक होती है तो अपभ्रंश भाषा में प्राकृत भाषा के अनुसार विधि कृदन्त का प्रयोग भाववाच्य में किया जाता है। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कृदन्त में सदैव नपुंसकलिंग एकवचन' ही होगा। जैसेहसिअव्व/हसिअव्वा/हसिअव्वु आदि = हँसा जाना चाहिए। अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (63) For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ख) अपभ्रंश में विधि कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग करने के लिए कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कृदन्त में कोई परिवर्तन नहीं होगा। जैसे हसिएव्वउं/हसेव्वउं/हसेवा = हँसा जाना चाहिए। नोट- विधि कृदन्त कर्तृवाच्य में प्रयुक्त नहीं होता है। ----... क्रिया का कर्मवाच्य में प्रयोग-नियम सकर्मक क्रियाओं से कर्मवाच्य बनाने के लिए प्राकृत भाषा के अनुसार 'इज्ज' और 'इ'/'इय' प्रत्यय जोड़े जाते हैं। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कर्म में द्वितीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) के स्थान पर प्रथमा विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। क्रिया में उपर्युक्त प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् (प्रथमा में परिवर्तित) कर्म के अनुसार 'क्रिया' में पुरुष और वचन के प्रत्यय काल के अनुरूप जोड़ दिए जाते हैं। 'इज्ज' और 'इ'/'इय'प्रत्यय वर्तमानकाल, भूतकाल तथा विधि एवं आज्ञा में लगाये जाते हैं। जैसे(क) (कोक+इज्ज+इ) = कोकिज्जइ = बुलाया जाता है। (व.अ.पु. एक.) (कोक+इज्ज+ए) = कोकिज्जए = बुलाया जाता है। (व.अ.पु. एक.) (कोक+इज्ज+दि) कोकिज्जदि = बुलाया जाता है। (व.अ.पु. एक.) (कोक+इज्ज+दे)= कोकिज्जदे = बुलाया जाता है। (व.अ.पु. एक.) (कोक+इय+इ) = कोकियइ = बुलाया जाता है। (व.अ.पु. एक.) (कोक+इय+ए) = कोकियए = बुलाया जाता है। (व.अ.पु. एक.) (कोक+इय+दि)= कोकियदि = बुलाया जाता है। (व.अ.पु. एक.) (64) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ख) (TT) 2. (कोक + इय+दे) = कोकियदे = बुलाया जाता है। (व.अ.पु. एक.) (कोक + इज्ज + ईअ) = कोकिज्जईअ ( कोकिज्जीअ ) = (क) बुलाया गया। (भू.अ.पु. एक.) (कोक + इअ + ईअ) = कोकिअईअ ( कोकिईअ) = बुलाया गया। (भू.अ.पु.एक.) कोकिज्जउ = बुलाया जाए। (वि.अ.पु. एक.) (कोक+इज्ज+उ) (कोक + इज्ज+दु) = कोकिज्जद = बुलाया जाए। (वि.अ.पु. एक.) (कोक+इय+उ) = कोकिय बुलाया जाए। (वि.अ.पु. एक.) (कोक + इय+दु) = कोकियदु = बुलाया जाए। (वि.अ.पु.एक.) नोट: इस प्रकार उत्तम पुरुष व मध्यम पुरुष का प्रयोग एकवचन व बहुवचन में तथा अन्य पुरुष का प्रयोग बहुवचन में किया जा सकता है। भविष्यत्काल में क्रिया का भविष्यत्काल कर्तृवाच्य रूप ही बना रहता है उसमें 'इज्ज' और 'इअ' प्रत्यय नहीं लगाये जाते हैं। जैसे(कोक+स+इ) = कोकिसइ / कोकेसइ = बुलाया जायेगा। (भ.अ.पु.एक.) (कोक+स+ए) = कोकिसए/ कोकेसए = बुलाया जायेगा। (भ.अ.पु. एक.) (कोक+स+दि) = कोकिसदि/कोकेसदि= बुलाया जायेगा । (भ.अ.पु. एक.) (कोक+स+दे) = कोकिसदे/कोकेसदे = बुलाया जायेगा। (भ.अ.पु.एक.) (ख) (कोक+हि+इ) = कोकिहिइ / कोकेहिइ = बुलाया जायेगा। (भ.अ.पु. एक.) (कोक+हि+ए) = कोकिहिए / कोकेहिए = बुलाया जायेगा। (भ.अ.पु. एक.) (कोक+हि+दि) = कोकिहिदि /कोकेहिदे = बुलाया जायेगा। (भ.अ.पु. एक.) (कोक+हि+दे) = कोकिहिदे/कोकेहिदे= बुलाया जायेगा। (भ.अ.पु. एक.) नोट: इस प्रकार उत्तम पुरुष व मध्यम पुरुष का प्रयोग एकवचन व बहुवचन में तथा अन्य पुरुष का प्रयोग बहुवचन में किया जा सकता है। 1 अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण = = For Personal & Private Use Only (65) Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कृदन्तों का कर्मवाच्य में प्रयोग - नियम भूतकालिक कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग - नियम जब क्रिया सकर्मक होती है तो भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कर्म में प्रथमा विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित ) कर्म के लिंग और वचन के अनुसार चलेंगे। जैसे (क) कोकिअ/कोकिआ / कोकिउ / कोकिओ = बुलाया गया। (पुल्लिंग एकवचन) कोकिअ / कोकिआ = बुलाये गये। (पुल्लिंग बहुवचन) (ख) इच्छिअ / इच्छिआ / इच्छिउ (66) = चाहा गया। (नपुंसकलिंग एकवचन) पेच्छिअ/पेच्छिआ/पेच्छिअइं/पेच्छिआई = देखे गये। (ग) सुणिआ / सुणिअ = सुनी गयी । (स्त्रीलिंग एकवचन) सुणिआ/सुणिअ/सुणिआउ / सुणिअउ / सुणिआओ / सुणिअउ : = सुनी गयी। (स्त्रीलिंग बहुवचन) (नपुंसकलिंग बहुवचन) विधि कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग - नियम (क) जब क्रिया सकर्मक होती है तो अपभ्रंश भाषा में प्राकृत भाषा के अनुसार विधि कृदन्त का प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी । कर्म में प्रथमा विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी । कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित ) कर्म के लिंग और वचन के अनुसार चलेंगे। जैसे अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (क) 1 (i) कीणिअव्व/कीणियव्व/कीणितव्व/कीणिदव्व/आदि = खरीदा जाना चाहिए। (पुल्लिंग एकवचन) (ii) कीणिअव्व/कीणिअव्वा आदि = खरीदे जाने चाहिए। (पुल्लिंग बहुवचन) (क) 2 (i) पेच्छिअव्व/पेच्छिअव्वा/पेच्छिअव्वु/आदि = देखी जानी चाहिए। (नपुंसकलिंग एकवचन) (i) पेच्छिअव्व/पेच्छिअव्वा/पेच्छिअव्वइं/पेच्छिअव्वाइं/आदि = देखी जानी चाहिए। (नपुंसकलिंग बहुवचन) (क) 3 (i) पेसिअव्वा/पेसिअव्व/आदि = भेजा जाना चाहिए। (स्त्रीलिंग एकवचन) (i) पेसिअव्वा/पेसिअव्व/पेसिअव्वाउ/पेसिअव्वउ/पेसिअव्वाओ/ पेसिअव्वओ/आदि = भेजे जाने चाहिए। (स्त्रीलिंग बहुवचन) (ख) अपभ्रंश में विधि कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग करने के लिए भी कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कर्म में प्रथमा विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कृदन्त में कोई परिवर्तन नहीं होगा। जैसे(ख) 1 (i) कीणिएव्वउं/कीणेव्वउं/कीणेवा = खरीदा जाना चाहिए। ___ (पुल्लिंग एकवचन) (i) कीणिएव्वउं/कीणेव्वउं/कीणेवा = खरीदा जाना चाहिए। (पुल्लिंग बहुवचन) (ख) 2 (i) पेच्छिएव्वउं/पेच्छव्वउं/पेच्छेवा = देखी जानी चाहिए। ___ (नपुंसकलिंग एकवचन) (i) पेच्छिएव्वउं/पेच्छव्वउं/पेच्छेवा= देखी जानी चाहिए। ___ (नपुंसकलिंग बहुवचन) (ख) 3 (i) पेसिएव्वउं/पेसेव्वउं/पेसेवा = भेजा जाना चाहिए।(स्त्रीलिंग एकवचन) (ii) पेसिएव्वउं/पेसेव्वउं/पेसेवा = भेजे जाने चाहिए। (स्त्रीलिंग बहुवचन) .. ------ अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वार्थिक प्रत्यय 1. अपभ्रंश भाषा में 'अ', 'अड' और 'उल्ल' स्वार्थिक प्रत्यय होते हैं। इनमें से कोई भी एक, दो अथवा कभी-कभी तीनों एक साथ संज्ञाओ में जोड़ दिए जाते हैं। इस प्रकार कुल स्वार्थिक प्रत्यय सात हो जाते हैं। (1) अ (2) अड (3) उल्ल (4) अडअ (5) उल्लअ (6) उल्लअड/उल्लड (7) उल्लअडअ/उल्लड। उपर्युक्त स्वार्थिक प्रत्यय जोड़ने पर मूल अर्थ में कोई परिवर्तन नहीं होता है। संज्ञा शब्दों में स्वार्थिक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् विभक्ति बोधक प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे(जीविय+अ) = जीवियअ (जीवित ) जीवियअ/जीवियआ/जीवियउ/जीवियओ (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (जीव+अड) = जीवड (जीव) जीवड/जीवडा/जीवडु/जीवडो (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (गोर+अड) = गोरड →गोरडी (पत्नी) (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (कुडी+उल्ल) = कुडुल्ल-कुडुल्ली (झोंपड़ी) (प्रथमा विभक्ति, एकवचन) (अपभ्रंश भाषा में स्त्रीलिंग में ई प्रत्यय जोड़ा जाता है)। (ii) (हिअ+अड+अ) = हिअडअ (हृदय) . (चुड+उल्ल+अ) = चुडुल्लअ (कंकण) (कन्न +उल्ल+अड) = कन्नुल्लड (कान) (iii) (बाहुबल+उल्ल+अड+अ) = बाहुबलुल्लडअ (भुजा का बल) (i) 2. अपभ्रंश भाषा में स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों के अन्त में स्थित 'अकार'को 'आ' प्रत्यय की प्राप्ति होने के पहले 'इकार' वर्ण की प्राप्ति हो जाती है। जैसे(धूलि+अड) = धूलड (धूलड+आ) = धूलडिआ (धूलि-रजकण) (68) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. प्रेरणार्थक प्रत्यय अपभ्रंश भाषा में प्रेरणा अर्थ में प्राकृत भाषा के अनुसार 'अ' और 'आव' प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते हैं। प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् अकर्मक क्रिया सकर्मक हो जाती है। इसलिए इस क्रिया में कर्तृवाच्य और कर्मवाच्य का ही प्रयोग होता है। जैसे(हस+अ) = हास (हँसाना). (उपान्त्य' 'अ' का 'आ' हो जाता है) (हस+आव) = हसाव (हँसाना) (कर+अ) = कार (कराना) (उपान्त्य' 'अ' का 'आ' हो जाता है) (कर+आव) = कराव (कराना) क्रियाओं में प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् कालों के प्रत्यय जोड़ने से विभिन्न कालों के सकर्मक प्रेरणार्थक रूप बन जाते हैं। जैसे. हस = हँसना (अकर्मक क्रिया) वर्तमानकाल अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) हासइ आदि (ii) हसावइ आदि = हँसाता है/हँसाती है। - भूतकाल अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) हासीअ आदि (ii) हसावीअ आदि = हँसाया। भविष्यत्काल अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) हासेसइ आदि (ii) हसावेसइ आदि = हँसायेगा/हँसायेगी। विधि एवं आज्ञा अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) हासउ, हासदु (ii) हसावउ, हसावदु = हँसावे। कर = करना (सकर्मक क्रिया) वर्तमानकाल, अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) कारइ आदि (ii) करावइ आदि = करवाता है/करवाती है। उपान्त्य अर्थात् क्रिया के अन्त का पूर्ववर्ती स्वर। 1. अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (69) For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. (क) (ख) 1. (70) भूतकाल, अन्य पुरुष एकवचन 3 / 1 (i) कारीअ (ii) करावीअ आदि भविष्यत्काल, अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (i) कारेसइ आदि (ii) करावेसइ आदि = करवायेगा / करवायेगी । विधि एवं आज्ञा, अन्य पुरुष एकवचन 3 / 1 (i) कारउ आदि (ii) करावउ आदि = करवावे। इसी प्रकार उत्तम पुरुष, मध्यम पुरुष के रूप बनेंगे। कर्मवाच्य के प्रेरणार्थक प्रत्ययः आवि, 0 अपभ्रंश भाषा में प्रेरणा अर्थ में प्राकृत भाषा के अनुसार भाववाच्य और कर्मवाच्य के 'आवि' और 'शून्य' ( 0 ) प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते हैं। इससे अकर्मक क्रिया सकर्मक बन जाती है । जैसे(हस + आवि) = हसावि (हँसाना) (हस +0) = हास (हँसाना ) ( उपान्त्य' 'अ' का 'आ' हो जाता है) ( कर+आवि) करावि (कराना) = = करवाया। ( कर+0) = कार (कराना) (उपान्त्य' 'अ' का 'आ' हो जाता है) क्रियाओं में प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात कर्मवाच्य के इज्ज और इय प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे हसाविज्ज (हँसाया जाना) हसावि+इज्ज हसावि+इय हसाविय (हँसाया जाना) हास+इज्ज = हासिज्ज (हँसाया जाना) हास+इय = हासिय (हँसाया जाना) करावि+इज्ज = कराविज्ज (करवाया जाना) करावि+इय कराविय ( करवाया जाना) उपान्त्य अर्थात् क्रिया के अन्त का पूर्ववर्ती स्वर । = = = अपभ्रंश - हिन्दी- व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार+इज्ज = कारिज्ज (करवाया जाना) कार+इय = कारिय (करवाया जाना) क्रियाओं में प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् कालों के प्रत्यय जोड़ने से विभिन्न कालों के प्रेरणार्थक कर्मवाच्य के रूप बन जाते हैं। जैसे वर्तमानकाल अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (क) हसावि+इज्ज+इ आदि = हसाविज्जइ आदि (हँसाया जाता है) हसावि+इय+इ आदि = हसावियइ आदि (हँसाया जाता है) , हास+इज्ज+इ आदि = हासिज्जइ आदि (हँसाया जाता है) हास+इय+इ आदि = हासियइ आदि (हँसाया जाता है) (ख) करावि+इज्ज+इ आदि = कराविज्जइ आदि (करवाया जाता है) करावि+इय+इ आदि = करावियइ आदि (करवाया जाता है) कार+इज्ज+इ आदि = कारिज्जइ आदि (करवाया जाता है) कार+इय+इ आदि = कारियइ आदि (करवाया जाता है) भूतकाल अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (क) हसावि+इज्ज+ईअ = हसाविज्जईअ (हँसाया गया) हसावि+इय+ईअ = हसावियईअ (हँसाया गया) हास+इज्ज+ईअ = हासिज्जईअ (हँसाया गया) हास+इय+ईअ = हासियईअ (हँसाया गया) करावि+इज्ज+ईअ = कराविज्जईअ (करवाया गया) करावि+इय+ईअ = करावियईअ (करवाया गया) कार+इज्ज+ईअ = कारिज्जईअ (करवाया गया) कार+इय+ईअ = कारियईअ (करवाया गया) । (ख) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (11) For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधि एवं आज्ञा अन्य पुरुष एकवचन 3/1 (क) हसावि+इज्ज+उ आदि = हसाविज्जउ आदि (हँसाया जावे) हसावि+इय+उ आदि = हसावियउ आदि (हँसाया जावे) हास+इज्ज+उ आदि = हासिज्जउ आदि (हँसाया जावे) हास+इय+उ आदि = हासियउ आदि (हँसाया जावे) करावि+इज्ज+उ आदि = कराविज्जउ आदि (करवाया जावे) . करावि+इय+उ = करावियउ आदि (करवाया जावे) .... कार+इज्ज+उ = कारिज्जउ आदि (करवाया जावे). कार+इय+3= कारियउ आदि (करवाया जावे) इसी प्रकार उत्तम पुरुष एवं मध्यम पुरुष के रूप बना लेने चाहिए। नोट- भविष्यत्काल में प्रेरणार्थक कर्मवाच्य में 'इज्ज, इय/इअ' प्रत्यय नहीं लगते हैं। भविष्यत्काल में प्रेरणार्थक कर्मवाच्य में भविष्यत्काल की क्रिया का रूप कर्तृवाच्य के अनुसार ही रहेगा किन्तु अर्थ कर्मवाच्य के अनुसार होगा। ---- __ कृदन्तों के प्रेरणार्थक प्रत्ययः आवि, 0 3. अपभ्रंश भाषा में प्रेरणा अर्थ में प्राकृत भाषा के अनुसार आवि' और 'शून्य' (0) प्रत्यय जोड़े जाते हैं। क्रियाओं में प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात कृदन्तों के प्रत्यय जोड़े जाते हैं। जैसे(हस+आवि) = हसावि (हँसाना) (हस+0) = हास (हँसाना) (उपान्त्य 'अ' का 'आ' हो जाता है)। (कर+आवि) = करावि (कराना) (कर+0) = कार (कराना) (उपान्त्य 'अ' का 'आ' हो जाता है) क्रियाओं में प्रेरणार्थक प्रत्यय जोड़ने के पश्चात् कृदन्तों के प्रत्यय जोड़ने से विभिन्न कृदन्तों के सकर्मक प्रेरणार्थक रूप बन जाते हैं। जैसे --------- (72) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रेरणार्थक भूतकालिक कृदन्त (क) हसावि + अ / य = हसाविअ / हसाविय ( हँसाया गया) हास+अ/य = हासिअ / हासिय (हँसाया गया) करावि+अ/य कराविअ / कराविय (कराया गया) कार+अ/य = कारिअ / कारिय (कराया गया) (ख) (क) (ख) = = हसावमाण (हँसाता हुआ) नोट- यहाँ हसावि के बाद 'अ' विकरण लगाया गया है क्योंकि अपभ्रंश में क्रियाओं को अकारान्त करने की प्रवृत्ति होती है। हास + न्त प्रेरणार्थक वर्तमान कृदन्त = हसावन्त (हँसाता हुआ) हसावि + अ + न्त हसावि + अ + माण 1. हासु + माण = हासमाण (हँसाता हुआ) करावि + अ + न्त = करावन्त (करवाता हुआ) करावि + अ + माण = करावमाण (करवाता हुआ) नोट- यहाँ करावि के बाद 'अ' विकरण लगाया गया है क्योंकि अपभ्रंश में क्रियाओं को अकारान्त करने की प्रवृत्ति होती है। कार+न्त = कारन्त ( करवाता हुआ ) कार+माण = कारमाण (करवाता हुआ) = हासन्त (हँसाता हुआ) प्रेरणार्थक विधि कृदन्त हसावि+अव्व आदि = हसाविअव्व आदि (हँसाया जाना चाहिए) हसावि+इएव्व ं = हसाविएव्वउं (हँसाया जाना चाहिए) हसावि + एव्व ं = हसावेव्वउं (हँसाया जाना चाहिए) सावि + एव हसावेवा (हँसाया जाना चाहिए) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण = For Personal & Private Use Only (73) Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 2. हास+अव्व आदि-हासिअव्व/हासेअव्व आदि (हँसाया जाना चाहिए) हास+इएव्वउं = हासिएव्वउं (हँसाया जाना चाहिए) हास+एव्वउं = हासेव्वउं (हँसाया जाना चाहिए) हास+एवा = हासेवा (हँसाया जाना चाहिए) प्रेरणार्थक सम्बन्धक कृदन्त 1. (i) हसावि+इ = हसाविइ (हँसाकर) हसावि+इउ = हसाविउ (हँसाकर) हसावि+इवि = हसाविवि (हँसाकर) हसावि+अवि = हसाववि (हँसाकर) हसावि+एप्पि = हसावेप्पि (हँसाकर) हसावि+एप्पिणु = हसावेप्पिणु (हँसाकर) हसावि+एवि = हसावेवि (हँसाकर) हसावि+एविणु = हसावेविणु (हँसाकर) (ii) हसावि+इय = हसाविय (हँसाकर) हसावि+दूण = हसाविदूण (हँसाकर) हसावि+त्ता = हसावित्ता (हँसाकर) 2. (i) हास+इ = हासि (हँसाकर) हास+उ = हासिउ (हँसाकर) हास+इवि = हासिवि (हँसाकर) हास+अवि = हासवि (हँसाकर) हास+एप्पि = हासेप्पि (हँसाकर) हास+एप्पिणु = हासेप्पिणु (हँसाकर) (74) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हास+एवि = हासेवि (हँसाकर) हास+एविणु = हासेविणु (हँसाकर) (ii) हास+इय = हासिय (हँसाकर) हासि+दूण = हासिदूण (हँसाकर) हासि+त्ता = हासित्ता (हँसाकर) - - - - - - 1. प्रेरणार्थक हेत्वर्थक कृदन्त हसावि+एवं = हसावेवं (हँसाने के लिए) हसावि+अण = हसावण (हँसाने के लिए) हसावि+अणहं = हसावणहं (हँसाने के लिए) हसावि+अणहिं = हसावणहिं (हँसाने के लिए) हसावि एप्पि = हसावेप्पि (हँसाने के लिए) हसावि+एप्पिणु = हसावेप्पिणु (हँसाने के लिए) हसावि+एवि = हसावेवि (हँसाने के लिए) हसावि+एविणु = हसावेविणु (हँसाने के लिए) हास+एवं = हासेवं (हँसाने के लिए) हास+अण = हासण (हँसाने के लिए) हास+अणहं = हासणहं (हँसाने के लिए) हास+अणहिं = हासणहिं (हँसाने के लिए) हास+एप्पि = हासेप्पि (हँसाने के लिए) हास+एप्पिणु = हासेप्पिणु (हँसाने के लिए) हास+एवि = हासेवि (हँसाने के लिए) हास+एविणु = हासेविणु (हँसाने के लिए) 2. 'सान कालए) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (75) For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. संख्यावाची शब्द अपभ्रंश भाषा में प्राकृत भाषा के अनुसार दो के लिए 'दो' और 'वे' का प्रयोग किया जाता है। प्रथमा विभक्ति बहुवचन - दुवे, दोण्णि, वेण्णि, दुण्णि, विण्णि द्वितीया विभक्ति बहुवचन - दुवे, दोण्णि, वेण्णि, दुण्णि, विण्णि . तृतीया विभक्ति बहुवचन - दोहि, वेहि पंचमी विभक्ति बहुवचन - दोहिन्तो, वेहिन्तो चतुर्थी व षष्ठी विभक्ति बहुवचन - दोण्ह, दोण्हं, वेण्ह, वेण्हं सप्तमी विभक्ति बहुवचन - दोसु, वेसु का प्रयोग किया जाता है। अपभ्रंश भाषा में प्राकृत भाषा के अनुसार तीन के लिए 'ति' का प्रयोग किया जाता है। प्रथमा विभक्ति बहुवचन - तिण्णि द्वितीया विभक्ति बहुवचन - तिण्णि तृतीया विभक्ति बहुवचन - तीहिं पंचमी विभक्ति बहुवचन - तीहिन्तो चतुर्थी व षष्ठी विभक्ति बहुवचन - तिण्ह, तिण्हं सप्तमी विभक्ति बहुवचन - तीसु ----------- अपभ्रंश भाषा में प्राकृत भाषा के अनुसार चार के लिए 'चउ' का प्रयोग किया जाता है। प्रथमा विभक्ति बहुवचन - चत्तारो, चउरो, चत्तारि :---- 3. (76) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीया विभक्ति बहुवचन - चत्तारो, चउरो, चत्तारि चतुर्थी व षष्ठी विभक्ति बहुवचन - चउण्ह, चउण्हं अपभ्रंश भाषा में प्राकृत भाषा के अनुसार पाँच के लिए पंच' का प्रयोग किया जाता है। चतुर्थी व षष्ठी विभक्ति बहुवचन - पंचण्ह, पंचण्हं नोट(i) संख्यावाची शब्दों के रूपावली विधान आदि को 'प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ भाग-1' के पाठ 6, 7, 8 में समझाया गया है। (ii) अपभ्रंश भाषा में शब्द-रचना-प्रवृत्ति कहीं-कहीं प्राकृत भाषा के अनुसार होती है और कहीं-कहीं पर शौरसेनी भाषा के समान भी होती 1. हेमचन्द्र वृत्ति 4/329 अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (77) For Personal & Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. अव्यय अपभ्रंश भाषा में 'किस प्रकार के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग . किया जाता है। केम/किम/किह/किध/केवँ/किव = किस प्रकार 2. अपभ्रंश भाषा में 'जिस प्रकार के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। जेम/जिम/जिह/जिध/जेवँ/जिव = जिस प्रकार 3. अपभ्रंश भाषा में 'उस प्रकार' के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। तेम/तिम/तिह/तिध/तेवँ/तिवँ = उस प्रकार 4. अपभ्रंश भाषा में इस प्रकार के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। एम/इम/इह/इध = इस प्रकार 5. अपभ्रंश भाषा में 'जिसके समान', उसके समान','किसके समान' और 'इसके समान' के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता हैं। जेह, जइस = जिसके समान तेह, तइस = उसके समान केह, कइस = किसके समान एह, अइस = इसके समान अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (78) For Personal & Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 6. 7. 8. 9. 10. अपभ्रंश भाषा में 'जहाँ पर', 'वहाँ पर' के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। जेत्थु / जत्तु = जहाँ पर तेत्थु / तत्तु = वहाँ पर अपभ्रंश भाषा में 'कहाँ पर', 'यहाँ पर' के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। त्थु = कहाँ एत्थु = यहाँ पर अपभ्रंश भाषा में 'जब तक', 'तब तक', के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। जाम/जाउं/जामहिं/जावँ = जब तक ताम/ताउं/ तामहिं / तावँ / दाव = तब तक अपभ्रंश भाषा में 'जितना', 'उतना', के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। जेवड / जेत्तुल = जितना तेवड / तेत्तुल = उतना अपभ्रंश भाषा में 'इतना', 'कितना', के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। एवड / एत्तुल = इतना has / केतुल = कितना अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only (79) Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11. अपभ्रंश भाषा में 'अन्य प्रकार से दूसरी तरह से' के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। अनु/अन्नह= अन्य प्रकार से दूसरी तरह से 12. अपभ्रंश भाषा में कहाँ से' के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। कउ/कहन्तिहु = कहाँ से 13. अपभ्रंश भाषा में 'वैसा है तो, उस कारण से है तो' के लिए निम्न अव्यय का प्रयोग किया जाता है। तो = वैसा है तो/उस कारण से है तो 14. अपभ्रंश भाषा में निम्न विविध अव्ययों का भी प्रयोग किया जाता है। 1. एम्व = इस प्रकार से इस तरह से 2. पर = किन्तु/परन्तु 3. समाणु = साथ 4. ध्रुवु = निश्चय ही 5. मं = मत/नहीं 6. मणाउ = थोड़ा सा भी/अल्प भी (80) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 15. अपभ्रंश भाषा में निम्न विविध अव्ययों का भी प्रयोग किया जाता है। 1. किर = निश्चय ही 2. अहवइ = अथवा 3. दिवे = दिन/दिवस 4. सहुं = साथ में 5. नाहिं = नहीं 16. अपभ्रंश भाषा में निम्न विविध अव्ययों का भी प्रयोग किया जाता है। 1. पच्छइ = पीछे/बादे में 2. एम्वइ = ऐसा ही/ इस प्रकार का ही 3. जि = ही, निश्चय ही 4. एम्वहिं = इसी समय में/अभी 5. पच्चलिउ = वैपरीत्य/उल्टापना 6. एत्तहे = इस तरफ/इधर/एक ओर 17. अपभ्रंश भाषा में घई और खाइ आदि ऐसे अनेक अव्यय प्रयुक्त होते हैं जिनका कोई अर्थ नहीं होता है अर्थात् वाक्यालंकार के रूप में इन अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। 18. , अपभ्रंश भाषा में के लिये' इस अर्थ के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। केहिं/तेहिं/रेसि/रेसिं/तणेण = के लिए अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (81) For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 19. 20. 21. 22. (82) अपभ्रंश भाषा में 'फिर से' के लिए 'पुणु' तथा 'बिना' के लिए 'विनु' अव्यय का प्रयोग किया जाता है। पुणु = फिर से विनु = बिना अपभ्रंश भाषा में 'अवश्य' के लिए 'अवस' तथा 'अवसें' अव्यय का प्रयोग किया जाता है। अवस/अवसें = अवश्य अपभ्रंश भाषा में 'एक बार' के लिए 'एक्कसि' तथा 'इक्कसि ' अव्यय का प्रयोग किया जाता है। एक्कसि / इक्क = एक बार अपभ्रंश भाषा में 'के समान' अथवा 'के जैसा' के लिए निम्न अव्ययों का प्रयोग किया जाता है। नं / नउ / नाइ / नावइ / जणि / जणु = के समान / के जैसा अपभ्रंश - हिन्दी For Personal & Private Use Only -व्याकरण Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. 2. 3. 4. 5. अपभ्रंश भाषा में 'करता हूँ' (उत्तम पुरुष एकवचन ) अर्थ में विकल्प से 'कीसु' क्रिया का प्रयोग होता है। जैसे - कीसु = मैं करता हूँ। विविध अपभ्रंश भाषा में 'छोलना' अर्थ में 'छोल्ल' क्रिया - रूप का प्रयोग होता है। जैसे छोल्ल (सकर्मक) = छोलना अपभ्रंश भाषा में 'परस्पर' के लिए 'अवरोप्पर' पद का प्रयोग किया जाता है। जैसे अवरोप्पर = परस्पर अपभ्रंश भाषा में 'अन्य के समान', तथा 'दूसरे के समान' के लिए निम्न पदों का प्रयोग किया जाता है। जैसे अन्नाइस (विशेषण) / अवराइस (विशेषण) = अन्य के समान / दूसरे के समान अपभ्रंश भाषा में भाववाचक अर्थ में 'प्पण' और 'तण' प्रत्यय प्रयुक्त होता है। जैसे (भल्ल+प्पण) = भल्लप्पण (भद्रता / सज्जनता ) (भल्ल+त्तण) = भल्लत्तण (भद्रता / सज्जनता ) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only (83) Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपभ्रंश-भाषा में 'क-ख-ग' आदि सभी व्यंजनो में स्थित 'ए' तथा 'ओ' स्वर ह्रस्व हो जाते हैं । जैसेदुल्लहहो का दुल्लहहों हो जाता है। यहाँ 'हो' को ह्रस्व किया गया है। कलिजुगे का कलिजुगि हो जाता है। यहाँ 'ए' को ह्रस्व किया गया 7. अपभ्रंश-भाषा में 'के स्वभाव वाला' अथवा 'वाला' अर्थ में 'अणअ' प्रत्यय क्रिया में जोड़ा जाता है। (मार+अणअं) = मारणअ (मारने के स्वभाव वाला/मारने वाला) 8. अपभ्रंश भाषा में पदान्त उं, हुं, हिं, हं' का उच्चारण ह्रस्व रूप से होता है। जैसेतुच्छउं के लिए तुच्छउँ । यहाँ 'उँ' को ह्रस्व किया गया है। तरुहुं के लिए तरुहुँ । यहाँ हुँ' को ह्रस्व किया गया है। जहिं के लिए जहिँ । यहाँ 'हिँ' को ह्रस्व किया गया है। तणहं के लिए तणहँ । यहाँ 'ह' को ह्रस्व किया गया है। 9. लिंग परिवर्तन अपभ्रंश भाषा में शब्दों के लिंग के सम्बन्ध में यह नियम है कि पुल्लिंग शब्द को कभी-कभी नपुंसकलिंग के रूप में व्यक्त कर दिया जाता है और कभी-कभी नपुंसकलिंग वाले शब्द को पुल्लिंग के रूप में व्यक्त कर दिया जाता है। इसी प्रकार से स्त्रीलिंग वाले शब्द को अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (84) For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग के रूप में और नपुंसकलिंग वाले शब्द को स्त्रीलिंग के रूप में प्रयुक्त कर दिया जाता है। जैसेगयकुम्भई दारन्तु = हाथियों के गण्डस्थलों को चीरते हुए यहाँ कुम्भ' शब्द पुल्लिंग है उसे नपुंसकलिंग के रूप में व्यक्त किया गया है। अब्भा लग्गा डुङ्गरिहिं = पर्वतों के शिखरों पर लगे हुए यहाँ 'अब्भ' शब्द नपुंसकलिंग है उसे पुल्लिंग के रूप में व्यक्त किया गया है। पुणु डालई मोडन्ति = फिर डालियों को तोड़ते हैं-मरोड़ते हैं यहाँ ‘डाली' शब्द स्त्रीलिंग है उसे नपुंसकलिंग के रूप में व्यक्त किया गया है। पाइ विलग्गी अन्त्रडी = आन्तड़ियाँ पैरों तक लटकी हुई है यहाँ ‘अन्त्र' शब्द नपुंसकलिंग है उसे स्त्रीलिंग के रूप में व्यक्त किया गया है। 10. अपभ्रंश भाषा में शौरसेनी प्राकृत का भी प्रयोग होता है। जैसे निव्वुदि = निवृत्ति विणिम्मविदु = स्थापित किया हुआ किदु = किया हुआ रदिए = रति के विहिदु = किया गया अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (85) For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ काल परिवर्तन 11. अपभ्रंश भाषा में काल बोधक प्रत्ययों में भी परस्पर में व्यत्यय अर्थात् उलट-पुलटपना भी पाया जाता है। वर्तमानकाल के प्रत्ययों का प्रयोग भूतकाल के अर्थ में तथा भूतकाल के प्रत्ययों का वर्तमानकाल के अर्थ में प्रयोग कर लिया जाता है। जैसेवर्तमानकाल के प्रत्यय का प्रयोग भूतकाल के अर्थ में अह पेच्छइ रहु तणओ = इसके बाद रघु के लड़के ने देखा। . . उपर्युक्त उदाहरण में वर्तमानकाल के 'ई' प्रत्यय का प्रयोग किया गया है लेकिन अर्थ भूतकाल का लिया गया है। भूतकाल के प्रत्यय का प्रयोग वर्तमानकाल के अर्थ में सुणीअ एस वण्ठो = यह बौना (वामन) सुनता है। उपर्युक्त उदाहरण में भूतकाल के 'ईअ' प्रत्यय का प्रयोग किया गया है लेकिन अर्थ वर्तमानकाल का लिया गया है। (86) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा परिशिष्ट-1 संज्ञा शब्दों की रूपावली अकारान्त पुल्लिंग - देव (देव) एकवचन बहुवचन देव, 'देवा, देवु, देवो देव, देवा द्वितीया देव, देवा, देवु, देव, देवा देवेण, देवेणं', देवें देवहिं, देवाहि, देवेहिं चतुर्थी देव, देवा. देव, 'देवा व देवसु, देवासु, देवहं, 'देवाह देवहो, देवाहो, देवस्सु पंचमी देवहे, 'देवाहे, देवहु, “देवाहु देवहुं, देवाहुं सप्तमी देवि, देवे देवहिं, 'देवाहिं सम्बोधन हे देव, हे 'देवा, हे देवु, हे देवो हे देव, हे देवा, हे देवहो, हे 'देवाहो तृतीया षष्ठी नोट- अकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त पुल्लिंग, अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग और आकारान्त, इ-ईकारान्त उ-ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों में प्रथमा विभक्ति से संबोधन तक के प्रत्यय परे होने पर/रहने पर अंतिम स्वर दीर्घ होने पर हस्व तथा ह्रस्व होने पर दीर्घ हो जाता है। (जो प्रत्यय संज्ञा शब्दों में मिलकर रूप निर्माण करते हैं अर्थात् जो परे नहीं बने रहते वहाँ यह नियम लागू नहीं होता है) जैसे- देवु, देवि, देवें, देवेण, देवो। ____ कमलु, कमलि, कमलें, कमलेण। तृतीया विभक्ति के एकवचन में 'ण' और 'ण' दोनों प्रत्ययों का प्रयोग होता है। इसी प्रकार अन्य रूपों में भी समझ लेना चाहिए। इस चिह्न का प्रयोग संज्ञा-सर्वनाम की रूपावली में दर्शाया गया है। * अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (87) For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व. षष्ठी पंचमी हरि, हरी सप्तमी हरिहि, हरीह सम्बोधन हे हरि, हे "हरी चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी सम्बोधन (88) इकारान्त पुल्लिंग - हरि (हरि) बहुवचन हरि, हरी हरि, हरी हरिहिं, "हरीहिं एकवचन हरि, "हरी हरि, हरी हरिएं, "हरीएं, हरिं, "हरीं हरिण, "हरीण, हरिणं, "हरीणं हरि, "हरी गामणीण, गामणिण, गामणीणं, "गामणिणं गामणी, गामणि ईकारान्त पुल्लिंग - गामणी ( गाँव का मुखिया) एकवचन बहुवचन गामणी, "गामणि गामणी, गामणि गामणी, गाण गामणी, गामणि गामणीएं, गामणिएं, गामणीहिं, "गामणिहिं गामण, गामणिं, गाणी, गामणि गामणीहि, "गामणिहि हे गामणी, हे "गामणि हर ह हरहुं हुं हरिहं, हरह हरिहूं, "हरीहुं हरिहिं, "हरीहिं, हरिहुं, "हरीहुं हे हरि, हे "हरी, हे हरिहो, हे "हरीहो गामणी, "गामणि गामणी हुं, "गामणिहुं गामणीहं, "गामणिहं गामणीहं, गामणिहं गामणीहिं, गामणिहिं, गामणीहु, "गामणिहुं गामणी, हे "गामणि हे गामणीहो, हे ग्रामणिहो अपभ्रंश - हिन्दी- व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उकारान्त पुल्लिंग - साहु (साधू) एकवचन बहुवचन प्रथमा साहु, 'साहू साहु, 'साहू द्वितीया साहु, साहू साहु, साहू तृतीया साहुएं, साहूएं, साहुं, 'साहूं साहुहिं, 'साहूहिं साहुण, साहूण, साहुणं, 'साहूणं चतुर्थी साहु, 'साहू साहु, *साहू साहुहूं, 'साहूहूं षष्ठी साहुहं, *साहू पंचमी साहुहे, साहूहे साहुहूं, *साहूहूं सप्तमी साहुहि, साहूहि साहुहिं, 'साहूहिं, साहुहूं, 'साहूहूं सम्बोधन हे साहु, हे साहू हे साहु, हे *साहू,हे साहुहो, हे 'साहूहो EEEEEEEEEEEEEEE बहुवचन • ऊकारान्त पुल्लिंग - सयंभू (सर्वज्ञ) एकवचन प्रथमा सयंभू, सयंभु सयंभू, सयंभु द्वितीया सयंभू, सयंभु सयंभू, सयंभु तृतीया सयंभूएं, सयंभुएं, सयंभू, *सयंभु सयंभूहि, सयंभुहिं सयंभूण, 'सयंभुण, सयंभूणं, 'सयंभुणं चतुर्थी सयंभू, सयंभु सयंभू, सयंभु सयंभूहं, 'सयंभुहुँ षष्ठी सयंभूहं, 'सयंभुहं पंचमी सयंभूहे, सयंभुहे' सयंभूहुं, सयंभुहुं सप्तमी सयंभूहि, 'सयंभुहि सयंभूहि, 'सयंभुहिं,सयंभूहं, 'सयंभुहुं सम्बोधन हे सयंभू, हे सयंभु हे सयंभू, हे 'सयंभु, हे सयंभूहो, हे सयंभुहो अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (89) For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारान्त नपुंसकलिंग - कमल (कमल का फूल ) एकवचन बहुवचन प्रथमा कमल, कमला, कमलु कमल, "कमला, कमलई, "कमलाई द्वितीया कमल, कमला, कमलु कमल, "कमला, कमलई, कमलाई कमलहिं, "कमलाहिं, कमलेहिं तृतीया कमलेण, कमलेणं, कमलें चतुर्थी कमल, कमला व षष्ठी पंचमी सप्तमी सम्बोधन प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी सम्बोधन (90) कमलसु, कमलासु, कमलहो, 'कमलाहो, कमलहे, "कमलाहे, हु, कमल, कम हे कमल, कमलस्सु हे "कमला, हे कमलु, एकवचन वारि, "वारी वारि, "वारी वारिएं, "वारीएं, वारिं, "वारीं वारिण, "वारीण, वारिणं, "वारीणं वारि, वारी वारिहे, "वारीहे वारिहि, वाह हे वारि, हे "वारी कमल, कमला कमलहं, "कमलाहं कमलहु, "काहुँ कमलहिं, "कमलाहिं हे कमल, हे 'कमला, इकारान्त नपुंसकलिंग - वारि (जल) बहुवचन वारि, "वारी, वारिइं, "वारीइं वारि, "वारी, वारिइं, "वारीइं वारिहिं, वारीहिं कमलहो, हे 'कमलाहो वारि, वा वारिहूं, "वारीहुं वारिहं, "वारीहं वारिहूं, "वारीहं वारिहिं, "वारीहिं, वारिहुं, "वारीहूं हे वारि, हे "वारी, हे वारिहो, हे "वारीहो अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उकारान्त नपुंसकलिंग - महु ( मधु ) बहुवचन महु, "महू, महुई, *महूई एकवचन महुहू महु, महू महुएं, "महूएं, महुं, "महू महु, "महू, महुईं, "महूई महिं, "महूहिं FL महुण, “महूण, महुणं, "महूणं चतुर्थी महु, "महू महुहू व महुहु, "महूहुं महुहं, महूहं * महुहु, "महूहुं महुहे, "महूहे षष्ठी पंचमी सप्तमी सम्बोधन हे महु, हे. "महू महुहि, महूहि महुहिं, "महूहिं, महुहुं, "महं महु, हे "महू, हे महुहो, हे "महूहो प्रथमा द्वितीया तृतीया प्रथमा आकारान्त स्त्रीलिंग - कहा ( कथा ) बहुवचन कहा, "कह, कहाउ, "कहउ, कहाओ, कहओ एकवचन कहा, "कह द्वितीया कहा, "कह कहाए, कह तृतीया चतुर्थी कहा, "कह व कहा, "कह षष्ठी पंचमी कहा, "कह सप्तमी कहाहिं, "कहहिं सम्बोधन हे कहा, हे "कह अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण कहा, "कहं, कहाउ, कहउ, कहाओ, ओ कहाहिं, "कहहिं कहा, "कह कहा, "कह कहाहु, क कहाहिं, "कहहिं हे कहा, हे "कह, हे कहाउ, हे "कहउ, कहाओ, हे ओ हे कहो, हे "कहो For Personal & Private Use Only (91) Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FREEEEEE प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी इकारान्त स्त्रीलिंग - मइ (मति) . . एकवचन बहुवचन मइ, "मई मइ, मई, मइड, मईउ, मइओ, मईओ मइ, 'मई मइ, 'मई, मइउ, मईउ, मइओ, 'मईओ मइए, 'मईए मइहिं, 'मईहिं मइ, 'मई मइ, 'मई मइहे, 'मईहे मइहु, मईहु षष्ठी पंचमी मइहे, 'मईहे सप्तमी मइहिं, 'मईहिं सम्बोधन हे मइ, हे 'मई मइहु, 'मईहु मइहिं, मईहिं, हे मइ, हे 'मई, हे मइड, हे “मईउ हे मइओ, हे मईओ, हे मइहो, हे “मईहो E EEEEE ईकारान्त स्त्रीलिंग - लच्छी (लक्ष्मी) एकवचन बहुवचन प्रथमा लच्छी, 'लच्छि लच्छी, लच्छि, लच्छीउ, 'लच्छिउ, लच्छीओ, 'लच्छिओ द्वितीया लच्छी, 'लच्छि लच्छी, लच्छि, लच्छीउ, 'लच्छिउ, लच्छीओ, 'लच्छिओ तृतीया लच्छीए, 'लच्छिए लच्छीहिं, लच्छिहिं चतुर्थी लच्छी, लच्छि लच्छी, 'लच्छि व षष्ठी लच्छीहे, 'लच्छिहे लच्छीहु, लच्छिहु पंचमी लच्छीहे, 'लच्छिहे लच्छीहु, लच्छिहु सप्तमी लच्छीहिं, लच्छिहिं लच्छीहि, लच्छिहिं सम्बोधन हे लच्छी, हे लच्छि हे लच्छी, हे लच्छि, हे लच्छीउ, हे लच्छिउ, हे लच्छीओ, हे लच्छिओ हे लच्छीहो, हे 'लच्छिहो (92) - अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उकारान्त स्त्रीलिंग - घेणु (गाय) प्रथमा धेणु, 'धेणू घेणु, धेणू, धेणुउ, घेणूड, घेणुओ, 'घेणूओ द्वितीया धेणु, 'धेणू घेणु, 'धेणू, घेणुउ, 'धेणूउ, घेणुओ, 'धेणूओ तृतीया धेणुए, 'धेणूए धेणुहिं, 'धेहि चतुर्थी घेणु, 'घेणू घेणु, धेणू, धेणुहु, धेणूहु व षष्ठी घेणुहे, हे पंचमी घेणुहे, घेणूहे घेणुहु, घेणूह सप्तमी धेणुहिं, 'घेणूहिं धेणुहि, धेहि सम्बोधन हे घेणु, हे घेणू हे घेणु, हे घेणू, हे घेणुउ, हे घेणूउ, हे घेणुओ, हे 'धेणूओ, हे घेणुहो, हे 'घेणूहो प्रथमा • ऊकारान्त स्त्रीलिंग - बहू (बहू) एकवचन बहुवचन बहू, 'बहु बहू, 'बहु, बहूउ, “बहुउ, बहूओ, 'बहुओ बहू, बहु बहू, बहु, बहूउ, 'बहुउ, बहूओ, 'बहुओ बहूए, 'बहुए बहूहि, बहुहिं बहू, 'बहु, बहूहे, बहुहे, बहू, बहु, बहूहु, 'बहुहु द्वितीया तृतीया • 'चतुर्थी व षष्ठी पंचमी . बहूहे, 'बहुहे सप्तमी बहूहिं, बहुहिं सम्बोधन हे बहू, हे बहु बहूहु, बहुहु बहूहि, बहुहिं हे बहू, हे बहु, हे बहूउ, हे बहुउ, हे बहूओ, हे बहुओ, हे बहूहो, हे 'बहुहो अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (93) For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी षष्ठी पंचमी सप्तमी परिशिष्ट-2 सर्वनाम शब्दों की रूपावली पुल्लिंग - सव्व (सब) एकवचन बहुवचन सव्व, 'सव्वा, सव्वु, सव्वो सव्व, “सव्वा (सब, सबने) (सबने) सव्व, 'सव्वा, सव्वु सव्व, सव्वा (सबको) (सबको) सव्वें, सव्वेण, सव्वेणं सव्वहिं, सव्वाहिं, सव्वेहि (सबसे, सबके द्वारा) (सबसे, सबके द्वारा) .. सव्व, 'सव्वा सव्व, सव्वा सव्वसु, 'सव्वासु, सव्वहं, सव्वाहं सव्वहो, 'सव्वाहो, सव्वस्सु (सबके लिए) (सबके लिए) (सबका, सबकी, सबके). (सबका, सबकी, सबके) सव्वहां, सव्वाहां सव्वहुं, 'सव्वाई (सबसे) (सबसे) सव्वहिं, सव्वाहिं सव्वहिं, सव्वाहिं (सबमें, सब पर) (सबमें, सब पर) नपुंसकलिंग - सव्व (सब) एकवचन बहुवचन सव्व, “सव्वा, सव्वु सव्व, सव्वा, सव्वई, (सबने) 'सव्वाइं (सब, सबने) सव्व, सव्वा, सव्वु सव्व, “सव्वा, सव्वई, (सबको) 'सव्वाइं (सबको) सव्वें, सव्वेण, सव्वेणं सव्वहिं, सव्वाहिं, सव्वेहि (सबसे, सबके द्वारा) (सबसे, सबके द्वारा) सव्व, सव्वा सव्व, 'सव्वा सव्वसु, सव्वासु, सव्वहं, “सव्वाह सव्वहो, सव्वाहो, सव्वस्सु (सबके लिए) (सबके लिए) (सबका, सबकी, सबके) (सबका, सबकी, सबके) सव्वहां, सव्वाहां सव्वहुं, 'सव्वाहुं (सबसे) (सबसे) सव्वहिं, 'सव्वाहिं सव्वहिं, सव्वाहिं (सबमें, सब पर) (सबमें, सब पर) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी (94) For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया आकारान्त स्त्रीलिंग - सव्वा (सब) एकवचन बहुवचन सव्वा, “सव्व सव्वा, सव्व, सव्वाउ, (सब, सबने) "सव्वउ, सव्वाओ, सव्वओ (सबने) सव्वा, "सव्व सव्वा, “सव्व, सव्वाउ, (सबको) "सव्वउ, सव्वाओ, “सव्वओ (सबको) सव्वाए, सव्वए सव्वाहि, सव्वहिं (सबसे, सबके द्वारा) (सबसे, सबके द्वारा) सव्वा, 'सव्व सव्वा, 'सव्व सव्वाहे, *सव्वहे, सव्वाहु, “सव्वहु (सबके लिए) (सबके लिए) (सबका, सबकी, सबके) (सबका, सबकी, सबके) सव्वाहे, 'सव्वहे सव्वाहु, 'सव्वहु (सबसे) (सबसे) सव्वाहिं, 'सव्वहिं सव्वाहिं, सव्वहिं (सबमें, सब पर) (सबमें, सब पर) चतुर्थी षष्ठी पंचमी सप्तमी बहुवचन त, ता पुल्लिंग - त (वह) एकवचन प्रथमा स, 'सा, सु, सो, त्रं, तं (वह, उसने) द्वितीया त्रं, तं . (उसे, उसको) .. तृतीया तें, तेण, तेणं (उससे, उसके द्वारा) चतुर्थी त, “ता, तासु, व षष्ठी . तहो, ताहो, तस्सु (उसके लिए) (उसका, उसकी, उसके) . पंचमी तहां, ताहां (उस से) . सप्तमी तहिं, ताहिं (उसमें, उस पर) (वे, उन्होंने) त, “ता (उन्हें, उनको) तहिं, ताहिं, तेहिं (उनसे, उनके द्वारा) त, "ता, तह, 'ताहं (उनके लिए) (उनका, उनकी, उनके) तहुं, ताहुं (उन से) तहिं, ताहिं (उनमें, उन पर) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (95) For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग - त (वह) एकवचन प्रथमा त्रं, तं द्वितीया तृतीया बहुवचन त, ता, तई, ताई (वे, उन्होंने) त, ता, तई, 'ताई (उन्हें, उनको) तहिं, 'ताहिं, तेहिं (उनसे, उनके द्वारा) त, "ता, तह, “ताह (उनके लिए) (उनका, उनकी, उनके) (वह, उसने) त्रं, त (उसे, उसको) तें, तेंण, तेणं (उससे, उसके द्वारा) त, ता, तासु, तहो, "ताहो, तस्सु (उसके लिए) (उसका, उसकी, उसके) तहां, ताहां (उस से) तहिं, ताहिं (उसमें, उस पर) चतुर्थी व षष्ठी पंचमी तहुं, ताहुँ (उन से) सप्तमी तहिं, ताहिं (उनमें, उन पर) स्त्रीलिंग - ता (वह) प्रथमा एकवचन त्रं, तं, सा, "स (वह, उसने) द्वितीया त्रं, तं (उसे, उसको) तृतीया बहुवचन ता, त, ताउ, 'तउ, ताओ, *तओ (बे, उन्होंने) ता, त, ताउ, तउ, ताओ, "तओ (उन्हें, उनको) ताहि, तहिं (उनसे, उनके द्वारा) ता, त, ताहु, तहु (उनके लिए) (उनका, उनकी, उनके) ताहु, 'तहु (उन से) ताहिं, 'तहिं (उनमें, उन पर) ताए, 'तए (उससे, उसके द्वारा) ता, "त, ताहे, तहे (उसके लिए) (उसका, उसकी, उसके) ताहे, तहे (उस से) ताहिं, तहिं (उसमें, उस पर) चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी (96) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी एकवचन धुं, ज, "जा, जु, जो (जो, जिसने ) धुं, ज, "जा, जु, (जिसे, जिसको) जें, जेण, जेणं ( जिससे, जिसके द्वारा ) ज, "जा, जासु, जहो, "जाहो, जस्सु (जिसके लिए) (जिसका, जिसकी, जिसके ) जहां, जहां (जिस से). जहिं, "जाहिं (जिसमें, जिस पर ) एकवचन धुं, जु (जो, जिसने ) पुल्लिंग - ज ( जो ) ...ज, "जा, जासु, धुं, जु (जिसे, जिसको) जें, जेण, जेणं (जिससे, जिसके द्वारा ) नपुंसकलिंग - ज (जो) जो, "जाहो, जस्सु (जिसके लिए) (जिसका, जिसकी, जिसके ) जहां, जहां (जिस से) जहिं, जाहिं (जिसमें, जिस पर ) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण बहुवचन ज, जा (जो, जिन्होंने) ज, "जा (जिन्हें, जिनको) हिं, "जाहिं, जेहिं (जिनसे, जिनके द्वारा ) ज, "जा, जहं, "जाहं (जिनके लिए) (जिनका, जिनकी, जिनके ) जहु, "जाहुं (जिन से) जहिं, "जाहिं (जिनमें, जिन पर ) बहुवचन ज, "जा, जई, "जाई (जो, जिन्होंने) ज, "जा, जई, "जाई (जिन्हें, जिनको) हिं, "जाहिं, जेहिं ( जिनसे, जिनके द्वारा ) ज, "जा, जहं, "जाहं (जिनके लिए) (जिनका, जिनकी, जिनके ) जहुँ, "जाहुं (जिन से) हिं, "जाहिं (जिनमें, जिन पर ) For Personal & Private Use Only (97) Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग - जा (जो) एकवचन प्रथमा (जो, जिसने) द्वितीया धं, जु (जिसे, जिसको) तृतीया बहवचन जा, 'ज, जाउ, 'जउ, जाओ, 'जओ (जो, जिन्होंने) जा, 'ज, जाउ, “जउ, जाओ, 'जओ (जिन्हें, जिनको) जाहिं, "जहिं (जिनसे, जिनके द्वारा) जा, 'ज, जाहु, 'जहु (जिनके लिए) (जिनका, जिनकी, जिनके) जाहु, 'जहु (जिन से) जाहिं, 'जहिं (जिनमें, जिन पर) जाए, 'जए (जिससे, जिसके द्वारा) जा, 'ज, जाहे, जहे (जिसके लिए) (जिसका, जिसकी,जिसके) जाहे, 'जहे (जिस से) जाहिं, 'जहिं (जिसमें, जिस पर) व षष्ठी पंचमी सप्तमी प्रथमा द्वितीया पुल्लिंग- क (कौन) एकवचन क, का, कु, को (कौन, किसने) क, 'का, कु (किसे, किसको) कें, केण, केणं (किससे, किसके द्वारा) क, का, कासु, कहो, "काहो, कस्सु (किसके लिए) (किसका, किसकी,किसके) कहां, 'काहां, किहे (किस से) कहिं, काहि (किसमें, किस पर) बहुवचन क, "का (कौन, किन्होंने) क, का (किन्हें, किनको) कहिं, काहिं, केहिं (किनसे, किनके द्वारा) क, "का, कहं, 'काहं (किनके लिए) (किनका, किनकी, किनके) तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी कहुं, 'काहं (किन से) कहिं, 'काहिं (किनमें, किन पर) सप्तमी (98) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा सप्तमी नपुंसकलिंग - क (कौन) एकवचन बहुवचन क, 'का, कु क, 'का, कइं, "काई (कौन, किसने) (कौन, किन्होंने) द्वितीया क, "का, कु क, 'का, कई, 'काई (किसे, किसको) (किन्हें, किनको) तृतीया कें, केण, केणं कहिं, 'काहिं, केहि (किससे, किसके द्वारा) (किनसे, किनके द्वारा) चतुर्थी क, 'का, कासु, क, का, कहं, 'काहं व षष्ठी कहो, 'काहो, कस्सु (किनके लिए) (किसके लिए) (किनका, किनकी,किनके) (किसका, किसकी,किसके) पंचमी कहां, 'काहां, किहे कहुं, काहुं (किस से) (किन से) कहिं, 'काहिं कहिं, 'काहिं (किसमें, किस पर) (किनमें, किन पर) स्त्रीलिंग - का (कौन) एकवचन बहुवचन प्रथमा का, 'क का, "क, काउ, 'कउ, (कौन, किसने) काओ, कओ (कौन, किन्होंने) द्वितीया का, "क का, “क, काउ, “कउ, (किसे, किसको) काओ, 'कओ (किन्हें, किनको) तृतीया 'काए, 'कए काहिं, 'कहिं (किससे, किसके द्वारा) (किनसे, किनके द्वारा) चतुर्थी का, 'क, काहे, कहे का, 'क, काहु, 'कहु व षष्ठी (किसके लिए) (किनके लिए) (किसका, किसकी,किसके) (किनका,किनकी, किनके) पंचमी काहे, कहे काहु, 'कहु (किस से) (किन से) सप्तमी काहिं, 'कहिं काहिं, 'कहिं (किसमें, किस पर) (किनमें, किन पर) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (99) For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी. व षष्ठी पंचमी सप्तमी प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी (100) एकवचन हो ( यह, इसने ) हो (इसे, इसको) एतेण एतेणं, एतें ( इससे, इसके द्वारा ) एत, एता, एतसु, "एतासु, एतहो, "एताहो, एतस्सु (इसके लिए) (इसका, इसकी, एतहां, ‘एताहां, (इसं से) एतहिं, "एताहिं (इसमें, इस पर) एकवचन हु ( यह, इसने ) पुल्लिंग - एत (यह ) इसके) नपुंसकलिंग - एत (यह ) एहु (इसे, इसको) एतेण, एतेणं, तें ( इससे, इसके द्वारा ) (इस से) एतहिं, "एताहिं (इसमें, इस पर ) एत, "एता, एतसु, “एतासु, एतस्सु एतहो, एताहो, (इसके लिए) (इसका, इसकी, इसके) एतहां, "एताहां, बहुवचन एइ ( ये, इन्होंने) एइ (इन्हें, इनको) एतहिं, "एताहिं, एतेहिं (इनसे, इनके द्वारा ) एत, "एता, एतहं, "एताहं (इनके लिए) (इनका, इनकी, इनके) तहुँ, ताहुँ (इन से) हिं, हिं (इनमें, इन पर ) बहुवचन एइ (ये इन्होंने) एइ ( इन्हें, इनको) एतहिं, "एताहिं, एतेहिं (इनसे, इनके द्वारा) एत, "एता, एतहं, "एताहं (इनके लिए) (इनका, इनकी, इनके) For Personal & Private Use Only तहु, ताहु (इन से) एतहिं, एताहिं (इनमें, इन पर ) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्त्रीलिंग - एता (यह) बहुवचन प्रथमा एकवचन एह (यह, इसने) (ये, इन्होंने) द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी (इसे, इसको) एताए, “एतए (इससे, इसके द्वारा) एता, एत, एताहे, एतहे (इसके लिए) (इसका, इसकी, इसके) एताहे, एतहे (इस से) एताहिं, एतहिं (इसमें, इस पर) (इन्हें, इनको) एताहिं, “एतहिं (इनसे, इनके द्वारा) एता, “एत, एताहु, “एतहु (इनके लिए) (इनका, इनकी, इनके) एताहु, "एतहु (इन से) एताहिं, "एतहिं (इनमें, इन पर) पंचमी सप्तमी प्रथमा पुल्लिंग - इम (यह) एकवचन इम, इमा, इमु, इमो (यह, इसने) द्वितीया इम, 'इमा, इमु (इसे, इसको) तृतीया इमेण, इमेणं, इमें (इससे, इसके द्वारा) चतुर्थी इम, "इमा, इमसु, “इमासु, व षष्ठी . - इमहो, 'इमाहो, इमस्सु (इसके लिए) (इसका, इसकी, इसके) पंचमी इमहां, 'इमाहां, (इस से) सप्तमी इमहि, इमाहिं (इसमें, इस पर) बहुवचन इम, 'इमा (ये, इन्होंने) इम, इमा (इन्हें, इनको) इमहिं, इमाहि, इमेहिं (इनसे, इनके द्वारा) इम, इमा, इमहं, 'इमाहं (इनके लिए) (इनका, इनकी, इनके) इमहुं, 'इमाई (इन से) इमहिं, 'इमाहिं (इनमें, इन पर) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (101) For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी (102) एकवचन इमु ( यह, इसने ) इमु (इसे, इसको) इमे इमेणं, इ (इससे, इसके द्वारा) इम, *इमा, इमसु, “इमासु, इमहो, "इमाहो, इमस्सु (इसके लिए) (इसका, इसकी, इमहां, "इमाहां, (इस. से) इमहिं, इमाहिं (इसमें, इस पर ) एकवचन इमा, इम ( यह, इसने ) नपुंसकलिंग - इम (यह ) इमा, *इम (इसे, इसको ) इसके) स्त्रीलिंग इमाए, "इमए (इससे, इसके द्वारा) इमा, "इम, इमाहे,इमहे (इसके लिए) (इसका, इसकी, इसके) इमा, (इस से) इमाहिं, "इमहिं (इसमें, इस पर ) - इमा (यह ) बहुवचन इम, "इमा, इमई, "इमाई ( ये, इन्होंने) For Personal & Private Use Only इम, "इमा, इमई, "इमाइं (इन्हें, इनको) इमहिं, "इमाहिं, इमेहिं (इनसे, इनके द्वारा ) इम, "इमा, इमहं, "इमाहं. (इनके लिए) (इनका, इनकी, इनके) इमहुं, “इमाहुं (इन से) इमहिं, "इमाहिं (इनमें, इन पर ) बहुवचन इमा, "इम, इमाउ, "इमउ, इमाओ, "इओ ( ये, इन्होंने) इमा, "इम, इमाउ, "इमउ, माओ, इओ (इन्हें, इनको) इमाहिं, "इहिं (इनसे, इनके द्वारा) इमा, "इम, इमाहु, "इमहु (इनके लिए) (इनका, इनकी, इनके) इमाहु, "हु (इन से) इमाहिं, "इमहिं (इनमें, इन पर ) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी एकवचन आय, "आया, आयु, आयो (यह, इसने ) आय, "आया, आयु (इसे, इसको ) आयेण, आयेणं, आयें ( इससे, इसके द्वारा ) पुल्लिंग - आय (यह ) आय, आया, आयसु, *आयासु, आयहो, "आयाहो, (इसके लिए) आयस्सु (इसका, इसकी, इसके ) आयहां, "आयाहां, (इस से) आयहिं, “आयाहिं (इसमें, इस पर ) नपुंसकलिंग - आय (यह ) एकवचन आय, "आया, आयु ( यह, इसने ) आय, आया, आयु ( इंसे, इसको) आयेण, आयेणं, आयें (इससे, इसके द्वारा ) आय, "आया, आयसु, “आयासु, आयहो, “आयाहो, (इसके लिए) आयस्सु (इसका, इसकी, इसके) आयहां, "आयाहां, (इस से) आयहिं, “आयाहिं (इसमें, इस पर) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण बहुवचन आय, "आया (ये, इन्होंने) आय, आया (इन्हें, इनको) आयहिं, "आयाहिं, आयेहिं (इनसे, इनके द्वारा ) आय, "आया, आयहं, "आयाहं (इनके लिए) (इनका, इनकी, इनके) आयहुं, "आयाहुं (इन से) आयहिं, “आयाहिं (इनमें, इन पर ) बहुवचन आय, "आया, आयई, आयाई (ये, इन्होंने) आय, "आया, For Personal & Private Use Only आयई, "आयाई ( इन्हें, इनको) आयहिं, “आयाहिं, आयेहिं (इनसे, इनके द्वारा ) आय, "आया, आयहं, “आयाहं (इनके लिए) (इनका, इनकी, इनके) आयहुं, "आयाहुं (इन से) आयहिं, *आयाहिं (इनमें, इन पर ) (103) Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी सप्तमी स्त्रीलिंग - आया (यह) एकवचन बहुवचन आया, आय आया, 'आय, आयाउ, (यह, इसने) 'आयउ, आयाओ, 'आयओ (ये, इन्होंने) आया, 'आय आया, 'आय, आयाउ, . (इसे, इसको) 'आयउ, आयाओ, 'आयओ (इन्हें, इनको) आयाए, 'आयए आयाहिं, 'आयहिं (इससे, इसके द्वारा) (इनसे, इनके द्वारा) , . आया, आय, आयाहे, आयहे आया, आय, (इसके लिए) आयाहु, 'आयह (इसका, इसकी, इसके) (इनके लिए) (इनका, इनकी, इनके) आयाहे, आयहे आयाहु, 'आयहु (इस से) (इन से) आयाहिं, 'आयहिं आयाहिं, आयहिं (इसमें, इस पर) (इनमें, इन पर) पुल्लिंग - अमु (वह) एकवचन अमु, 'अमू (वह, उसने) (वे, उन्होंने) अमु, अमू ओइ (उसे, उसको) (उन्हें, उनको) अमुएं, 'अमूएं, अमुं, 'अमूं, अमुहिं, 'अमूहिं अमुण, 'अमूण, अमुणं, 'अमूणं (उनसे, उनके द्वारा) (उससे, उसके द्वारा) अमु, 'अमू अमु, 'अमू, अमुहं, 'अमूहं (उसके लिए) अमुह, अमूह (उनके लिए) . (उसका, उसकी, उसके) (उनका, उनकी, उनके) अमुहे, 'अमूहे अमुहूं, 'अमूहुं (उस से) (उन से) अमुहि, अमूहिं अमुहि, अमूहि, अमुहूं, (उसमें, उस पर) 'अमूहूं (उनमें, उन पर) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण बहुवचन प्रथमा . ओई द्वितीया तृतीया चतुर्थी पंचमी सप्तमी (104) For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा बहुवचन ओई (वे, उन्होंने) द्वितीया तृतीया नपुंसकलिंग - अमु (वह) एकवचन अमु, 'अमू (वह, उसने) अमु, 'अमू (उसे, उसको) अमुएं, 'अमूएं, अमुं, अमूं, अमुण, अमूण, अमुणं, अमूणं (उससे, उसके द्वारा) अमु, अमू (उसके लिए) (उसका, उसकी, उसके) अमुहे, 'अमूहे (उस से) अमुहिं, 'अमूहिं (उसमें, उस पर) (उन्हें, उनको) अमुहिं, 'अमूहिं (उनसे, उनके द्वारा) चतुर्थी व षष्ठी अमु, 'अमू, अमुहूं, 'अमूहुं अमुहं, अमूहं (उनके लिए) (उनका, उनकी, उनके) अमुहूं, 'अमूह (उन से) अमुहि, अमूहि, अमुहूं, 'अमूहुं (उनमें, उन पर) सप्तमी प्रथमा बहुवचन ओइ . (वे, उन्होंने) ओइ स्त्रीलिंग - अमु (वह) एकवचन अमु, 'अमू (वह, उसने) अमु, 'अमू . (उसे, उसको) अमुए, "अमूए (उससे; उसके द्वारा) अमु, अमू, अमुहे, अमूहे (उसके लिए) (उसका, उसकी, उसके) अमुहे, अमूहे (उस से) अमुहि, अमूहि (उसमें, उस पर) चतुर्थी । व षष्ठी (उन्हें, उनको) अमुहि, 'अमूहिं (उनसे, उनके द्वारा) अमु, 'अमू, अमुहु, अमूहु (उनके लिए) (उनका, उनकी, उनके) अमुहु, अमूहु (उन से) अमुहिं, अमूहिं (उनमें, उन पर) पंचमी सप्तमी अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (105) For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया पुल्लिंग - कवण (कौन, क्या, कौनसा) एकवचन बहुवचन कवण, “कवणा, कवणु, कवणो कवण, कवणा (कौन, किसने) (कौन, किन्होंने) कवण, 'कवणा, कवण कवण, 'कवणा (किसे, किसको) (किन्हें, किनको) कवणेण, कवणेणं, कवणे कवणहिं, 'कवणाहिं, (किससे, किसके द्वारा) कवणेहिं (किनसे, किनके द्वारा) तृतीया चतुर्थी कवण, "कवणा कवण, 'कवणा कवणसु, "कवणासु, कवणहं, 'कवणाहं षष्ठी (किनके लिए) (किनका, किनकी, किनके) कवणहो, 'कवणाहो, कवणस्सु (किसके लिए) (किसका, किसकी, किसके) कवणहां, 'कवणाहां (किस से) कवणहिं, 'कवणाहिं (किसमें, किस पर) कवणहुं, 'कवणाहुं (किन से) कवणहिं, 'कवणाहिं (किनमें, किन पर) सममी (106) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नपुंसकलिंग - कवण (कौन, क्या, कौनसा) एकवचन बहुवचन प्रथमा कवण, 'कवणा, कवणु कवण, "कवणा, (कौन, किसने) कवणई, 'कवणाई (कौन, किन्होंने) द्वितीया कवण, 'कवणा, कवणु कवण, 'कवणा, (किसे, किसको) कवणई, "कवणाई (किन्हें, किनको) तृतीया कवणेण, कवणेणं, कवणे कवणहिं, 'कवणाहिं, (किससे, किसके द्वारा) कवणेहिं (किनसे, किनके द्वारा) चतुर्थी कवण, 'कवणा कवण, कवणा कवणसु, कवणासु, कवणहं, कवणाहं कवणहो; 'कवणाहो, कवणस्सु (किनके लिए) (किसके लिए) (किनका, किनकी, किनके) ' (किसका, किसकी, किसके) पंचमी . - कवणहां, 'कवणाहां (किस से) सप्तमी कवणहिं, 'कवणाहिं - (किसमें, किस पर) कवणहुं, 'कवणाहुं (किन से) कवणहिं, 'कवणाहिं (किनमें, किन पर) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (107) For Personal & Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकवचन प्रथमा कवणा, "कवण ( कौन, किसने) द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी (108) स्त्रीलिंग कवणा (कौन, क्या, - कवणा, *कवण (किसे, किसको) कवणार, "कवण (किससे, किसके द्वारा) कवणा, "कवण कवणाहे, "कवण (किसके लिए) (किसका, किसकी, किसके ) कवणाहे, "कवण (किस से) कवणाहिं, "कवणहिं (किसमें, किस पर) कौनसा ) बहुवचन कवणा, "कवण, कवणाउ, "कवणउ, कवणाओ, कवणओ (कौन, किन्होंने) कवणा, "कवण, कवणाउ, *कवणउ, कवणाओ, "कवणओ (किन्हें, किनको) कवणाहिं, "कवणहिं (किनसे, किनके द्वारा) 'कवणा, "कवण कवणाहु, "कवणहु (किनके लिए) (किनका, किनकी, किनके) कवणाहु, "कवणहु (किन से) कवणाहिं, "कवणहिं (किनमें, किन पर) अपभ्रंश - हिन्दी For Personal & Private Use Only -व्याकरण Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी सप्तमी प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी व षष्ठी पंचमी . सप्तमी एकवचन ह . Ika. (मैं, मैंने) (मुझे, मुझको) मई ( मुझसे, मेरे द्वारा ) तीनों लिंगों में अम्ह (मैं) - महु, मज्झु (मेरे लिए, मेरा, मेरी, मेरे) महु, मज्झ (मुझ से ) मई (मुझमें, मुझ पर ) तीनों लिंगों में एकवचन तुहुं (तू, तूने) पई, त (तुझे, तुझको) पई, तई ( तुझसे, तेरे द्वारा ) तुझ ( तेरे लिए, तेरा, तेरी, तेरे) तउ, तुज्झ, तु ( तुझ से ) पत (तुझमें, तुझ पर ) अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण - बहुवचन अम्हे, म्ह For Personal & Private Use Only (हम, हमने ) अम्हे, म्ह (हमें, हमको) अम्हे हिं (हमसे, हमारे द्वारा) अहं (हमारे लिए, हमारा, हमारी, हमारे) अम्हहं (हम से) तुम्ह (तुम) अम्हासु (हम में, हम पर) बहुवचन तुम्हे तुम्ह (तुम, तुमने ) तुम्हे तुम्ह (तुम्हें, तुमको ) तुम्हे हिं (तुझसे, तुम्हारे द्वारा) तुम्हहं (तुम्हारे लिए, तुम्हारा, तुम्हारी, तुम्हारे) तुम्हहं (तुम से) तुम्हासु (तुम में, तुम पर) (109) Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तम पुरुष हसउं अन्य पुरुष मध्यम पुरुष ह एकवचन अन्य पुरुष उत्तम पुरुष उत्तम पुरुष उं मध्यम पुरुष हि अन्य पुरुष हसमि, हसामि, हसेमि (110) एकवचन हसस, हससे हसइ, हसेइ, हसए हसदि, हसेदि, हसदे सि, से इ, ए दि, दे एकवचन मध्यम पुरुष ठाहि ठास a. ठामि परिशिष्ट - 3 क्रियारूप व कालबोधक प्रत्यय वर्तमानकाल अकारान्त क्रिया (हस ) ठाइ ठादि अकारान्त क्रिया (प्रत्यय) वर्तमानकाल आकारान्त क्रिया (ठा) बहुवचन हुं हसमो, हसमु, हसम हसह, हसित्था, हसध हिं हसन्ति, हसन्ते, हसिरे बहुवचन हुं मो, मु, म हु rco no ह, इत्था, ध हिं न्ति, न्ते, इरे बहुवचन ठाहु For Personal & Private Use Only मोठा ठ ठाहु ठाह, ठाइत्था, ठाध ठाहिं ठान्ति→ठन्ति, ठान्ते ठन्ते, ठाइरे अपभ्रंश - हिन्दी- व्याकरण - Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उत्तम पुरुष होउं होमि एकवचन मध्यम पुरुष होहि होसि हो होदि अन्य पुरुष एकवचन उत्तम पुरुष उं मि 4. मध्यम पुरुष हि सि अन्य पुरुष इ दि एकवचन हसीअ उत्तम पुरुष मध्यम पुरुष हसीअ अन्य पुरुष हसीअ आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय) बहुवचन अपभ्रंश- हिन्दी-व्याकरण वर्तमानकाल ओकारान्त क्रिया (हो) भूतकाल अकारान्त क्रिया (हस ) बहुवचन होहुं होमो हो, हो हो हो, होइत्था, हो होहिं होन्ति, होन्ते, होइ •nes nos no ipe (E हुं मो, मु, म ह, इत्था, ध For Personal & Private Use Only हिं न्ति, न्ते, इरे बहुवचन हसीअ हसीअ हसीअ (111) Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकारान्त क्रिया (प्रत्यय) बहुवचन एकवचन उत्तम पुरुष ई. मध्यम पुरुष ईअ अन्य पुरुष ईअ भूतकाल आकारान्त क्रिया (ठा) एकवचन उत्तम पुरुष ठासी, ठाही, ठाही. मध्यम पुरुष ठासी, ठाही, ठाही. अन्य पुरुष ठासी, ठाही, ठाही. बहुवचन ठासी, ठाही, ठाही. ठासी, ठाही, ठाही ठासी, ठाही, ठाहीअ भूतकाल ओकारान्त क्रिया (हो) एकवचन उत्तम पुरुष होसी, होही, होहीअ मध्यम पुरुष होसी, होही, होहीअ अन्य पुरुष होसी, होही, होहीअ बहुवचन होसी, होही, होहीअ होसी, होही, होहीअ होसी, होही, होहीअ आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय) एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष सी, ही, ही सी, ही, ही मध्यम पुरुष सी, ही, हीअ सी, ही, ही अन्य पुरुष सी, ही, ही सी, ही, हीअ (112) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भविष्यत्काल अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन उत्तम पुरुष हसिसउं, हसेसउं हसिहिमि, हसेहिमि मध्यम पुरुष हसिसहि, हसेसहि हसिहिसि, हसिहिसे, हसेहिसि, हसेहिसे बहुवचन हसिसहं, हसेसहुं हसिहिमो, हसिहिमु, हसिहिम हसेहिमो, हसेहिमु, हसेहिम हसिसहु, हसेसहु हसिहिह, हसेहिह, हसिहित्था, हसेहित्था, हसिहिध, हसेहिध हसिसहि, हसेसहिं हसिहिन्ति, हसेहिन्ति, हसिहिन्ते, हसेहिन्ते हसिहिइरे, हसेहिइरे अन्य पुरुष हसिसइ, हसेसइ, हसिसए, हसेसए हसिहिइ, हसेहिइ, हसिहिए, हसेहिए हसिसदि, हसेसदि, हसिसदे, हसेसदे हसिहिदि, हसेहिदि, हसिहिदे, हसेहिदे हसिस्सिदि अकारान्त क्रिया (प्रत्यय) बहुवचन एकवचन उत्तम पुरुष सउं हिमि हिमो, हिमु, हिम सहु हिह, हित्था, हिध मध्यम पुरुष सहि . . हिसि, हिसे अन्य पुरुष सइ, सए, सदि, सदे हिइ, हिए, हिदि, हिदे हिन्ति, हिन्ते, हिइरे स्सिदि अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण - (113) For Personal & Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकवचन उत्तम पुरुष ठासउं ठाहिमि मध्यम पुरुष ठासहि ठाहिसि अन्य पुरुष ठासइ, (114) ठासदि ठाहि, ठाहि ठास्सिदि एकवचन उत्तम पुरुष होसउं होहिमि मध्यम पुरुष होसहि होहिसि अन्य पुरुष होस, होसदि होहि, होहिदि होस्सिदि भविष्यत्काल आकारान्त क्रिया (ठा) भविष्यत्काल ओकारान्त क्रिया (हो) बहुवचन ठासहुं ठाहिमो, ठाहिमु, ठाहिम ठासहु ठाहिह, ठाहित्था, ठाहिध ठासहि ठाहिन्ति, ठाहिन्ते, ठाहिइरे बहुवचन होसहुं होहिमो, होहिमु, होहि हो होहिह, होहित्था, होहिध होस हिं होहिन्ति, होहिते, होहिइरे अपभ्रंश - हिन्दी For Personal & Private Use Only -व्याकरण Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय) बहुवचन एकवचन उत्तम पुरुष सउ मध्यम पुरुष सहि हिमो, हिमु, हिम सहु हिह, हित्था, हिध अन्य पुरुष सहि सइ, सदि हिइ, हिदि स्सिदि हिन्ति, हिन्ते, हिरे . विधि एवं आज्ञा अकारान्त क्रिया (हस) एकवचन उत्तम पुरुष हसमु, हसेमु मध्यम पुरुष हसि, हसु, हसे हसहि, हससु, हस अन्य पुरुष हसउ, हसेउ बहुवचन हसमो, हसेमो हसह, हसेह हसध, हसेध हसन्तु, हसेन्तु अकारान्त क्रिया (प्रत्यय) एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष मु मध्यम पुरुष इ, उ, ए हि, सु, शून्य अन्य पुरुष उ, दु अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (115) For Personal & Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विधि एवं आज्ञा आकारान्त क्रिया (ठा) एकवचन बहुवचन ठामो ठाह उत्तम पुरुष ठामु मध्यम पुरुष ठाइ, ठाए, ठाउ ठाहि, ठासु अन्य पुरुष ठाउ, ठादु ठान्तु-ठन्तु ओकारान्त क्रिया (हो) एकवचन बहुवचन उत्तम पुरुष होमु मध्यम पुरुष होइ, होए, होउ होहि, होसु अन्य पुरुष होउ आकारान्त, ओकारान्त क्रिया (प्रत्यय) एकवचन बहुवचन F उत्तम पुरुष मु मध्यम पुरुष इ, ए, उ हि, सु अन्य पुरुष उ, दु (116) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमा परिशिष्ट-4 संख्यावाची शब्द रूप संख्यावाची ‘एक्क' शब्द के रूप केवल एकवचन पुल्लिंग में पुल्लिंग ‘सव्व' के अनुसार , नपुंसकलिंग में नपुंसकलिंग ‘सव्व' के अनुसार तथा स्त्रीलिंग में सव्वा' के अनुसार होते हैं। एक्क (एक) पुल्लिंग एक. नपुंसकलिंग एक. स्त्रीलिंग एक. एक्क, "एक्का, एक्क, “एक्का, एक्कु ___ एक्का, “एक्क एक्कु, एक्को एक्क, “एक्का, एक्कु एक्क, “एक्का, एक्कु एक्का, “एक्क एक्केण, एक्केणं, एक्के एक्केण, एक्केणं, एक्कें एक्काए, एक्कए एक्क, ‘एक्का एक्क, एक्का एक्का, एक्क एक्कासु, “एक्कसु एक्कासु, “एक्कसु एक्काहे, एक्कहे एक्कहो, एक्काहो एक्कहो, एक्काहो एक्कस्सु एक्कस्सु एक्कहां, ‘एक्काहां एक्कहां, 'एक्काहां एक्काहे, एक्कहे एक्कहिं, 'एक्काहिं एक्कहिं, 'एक्काहिं एक्काहिं, एक्कहि द्वितीया तृतीया चतुर्थी षष्ठी पंचमी सप्तमी अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (117) For Personal & Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-5 आचार्य हेमचन्द्र-रचित सूत्रों के सन्दर्भ . संज्ञा शब्दों के विभक्ति प्रत्ययों के नियम नियम सूत्र 22. 4/353 संख्या संख्या 23. 4/330 24. 4/329 4/331 2. 4/332 4/333, 4/342, 1/27 4/334 4/335 सर्वनाम शब्दों के विभक्ति प्रत्ययों के नियम नियम सूत्र संख्या संख्या 4/355 4/356 4/357 4/358, 4/359 4/360 व वृत्ति 4/361 11. 12. 4/362 4/336 4/337 4/338 4/339 4/340 व वृत्ति 4/341 4/343, 1/27 4/344 4/345 4/346, 4/448 4/347 4/348 4/349 4/350 4/351 4/352 4/363 4/364 4/365 4/366 4/367 4/368 14. 20. 21. 4/369 4/370 (118) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 17. 18. 19. 20. 21. 22. 23. 24. 25. 26. 27. क्रिया - रूप एवं कालबोधक प्रत्ययों के नियम नियम सूत्र freen treen i. 4/385, 3/141 4/386, 3/144 4/383, 3/140 4. 4/384, 3/143, 4/268 2. 3. 5. 3/139, 3/158, 4/273, 4/274 4/382, 3/142, 1/84 3/163 3/162 4/388, 3/157 4/388, 3/157 6.. 4/371 4/372 4/373 4/374 4/375 4/376 4/377 4/378 4/379 4/380 4/381 7. 8. 9. 10. अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण 11. 4/388, 3/157 4/388, 3/157 4/388, 3/157, 4/275 12. 13. 14. 4/388, 3/157 3/173 16. 3/176, 3/158 15. 17. 18. 19. 20. नियम सूत्र Freen treen 1. 2. 3. 4. 5. 6. 4/387, 3/173-174 3/176, 3/158 3/173, 3/158 3/176, 3/158, 1/84 कृदन्तों के नियम 1. भाववाच्य एंव कर्मवाच्य के नियम नियम सूत्र Green Free 2. 4/438, 4/448 4/439, 4/440, 4/271, 1/27, 3/157 4/442 4/441 3/152 3/181 3/160 3/160 For Personal & Private Use Only (119) Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वार्थिक प्रत्ययों के नियम नियम सूत्र संख्या संख्या 1. 4/429, 4/430 2. 4/431, 4/432 प्रेरणार्थक प्रत्ययों के नियम नियम सूत्र संख्या संख्या 1. 3/149 2. 3/152 3. 3/153, 3/161 संख्यावाची शब्दों के नियम नियम सूत्र संख्या संख्या 1. 3/119, 3/120, 3/123 2. 3/118, 3/121, 3/123 3. 3/122, 3/123 3/123 अव्ययों के नियम नियम सूत्र संख्या संख्या 4/401 4/407 4/408 4/415 4/416 4/417 4/418 4/419 4/420 4/424 4/425 4/426 20. 4/427 4/428 22. 4/444 विविध नियम सूत्र संख्या संख्या 4/389 4/395 4/409 4/413 4/437 4/410 4/443 4/411 4/445 4/446 4/447 , 4/401 4/401 4/401 4/402, 4/403 4/404 4/405 4/406 (120) अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संदर्भ ग्रन्थ __ 1. 2. 3. अपभ्रंश भाषा का अध्ययन हेमचन्द्र प्राकृत व्याकरण, भाग 1-2 : व्याख्याता श्री प्यारचन्द जी महाराज (श्री जैन दिवाकर-दिव्य ज्योति कार्यालय, मेवाड़ी बाजार, ब्यावर) अपभ्रंश-हिन्दी कोश, भाग 1-2 : डॉ. नरेश कुमार (इण्डो विजन प्रा. लि. II A 220, नेहरू नगर, गाजियाबाद) पाइय-सद्द-महण्णवो : पं. हरगोविन्ददास त्रिविक्रमचन्द्र सेठ (प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, वाराणसी) : वीरेन्द्र श्रीवास्तव (एस. चन्द एण्ड कम्पनी प्रा. लि., रामनगर, नई दिल्ली) प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ, भाग-1 : डॉ. कमलचन्द सोगाणी (अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर) प्रौढ प्राकृत-अपभ्रंश-रचना सौरभ,भाग-2 : डॉ. कमलचन्द सोगाणी (अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर) अपभ्रंश रचना सौरभ : डॉ. कमलचन्द सोगाणी (द्वितीय संस्करण) (अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर) प्राकृत रचना सौरभ : डॉ. कमलचन्द सोगाणी (द्वितीय संस्करण) (अपभ्रंश साहित्य अकादमी, जयपुर) 5. अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (121) For Personal & Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only