SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथमा बहुवचन ओई (वे, उन्होंने) द्वितीया तृतीया नपुंसकलिंग - अमु (वह) एकवचन अमु, 'अमू (वह, उसने) अमु, 'अमू (उसे, उसको) अमुएं, 'अमूएं, अमुं, अमूं, अमुण, अमूण, अमुणं, अमूणं (उससे, उसके द्वारा) अमु, अमू (उसके लिए) (उसका, उसकी, उसके) अमुहे, 'अमूहे (उस से) अमुहिं, 'अमूहिं (उसमें, उस पर) (उन्हें, उनको) अमुहिं, 'अमूहिं (उनसे, उनके द्वारा) चतुर्थी व षष्ठी अमु, 'अमू, अमुहूं, 'अमूहुं अमुहं, अमूहं (उनके लिए) (उनका, उनकी, उनके) अमुहूं, 'अमूह (उन से) अमुहि, अमूहि, अमुहूं, 'अमूहुं (उनमें, उन पर) सप्तमी प्रथमा बहुवचन ओइ . (वे, उन्होंने) ओइ स्त्रीलिंग - अमु (वह) एकवचन अमु, 'अमू (वह, उसने) अमु, 'अमू . (उसे, उसको) अमुए, "अमूए (उससे; उसके द्वारा) अमु, अमू, अमुहे, अमूहे (उसके लिए) (उसका, उसकी, उसके) अमुहे, अमूहे (उस से) अमुहि, अमूहि (उसमें, उस पर) चतुर्थी । व षष्ठी (उन्हें, उनको) अमुहि, 'अमूहिं (उनसे, उनके द्वारा) अमु, 'अमू, अमुहु, अमूहु (उनके लिए) (उनका, उनकी, उनके) अमुहु, अमूहु (उन से) अमुहिं, अमूहिं (उनमें, उन पर) पंचमी सप्तमी अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण (105) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004214
Book TitleApbhramsa Hindi Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy