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________________ कृदन्तों का कर्मवाच्य में प्रयोग - नियम भूतकालिक कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग - नियम जब क्रिया सकर्मक होती है तो भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कर्म में प्रथमा विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित ) कर्म के लिंग और वचन के अनुसार चलेंगे। जैसे (क) कोकिअ/कोकिआ / कोकिउ / कोकिओ = बुलाया गया। (पुल्लिंग एकवचन) कोकिअ / कोकिआ = बुलाये गये। (पुल्लिंग बहुवचन) (ख) इच्छिअ / इच्छिआ / इच्छिउ (66) = चाहा गया। (नपुंसकलिंग एकवचन) पेच्छिअ/पेच्छिआ/पेच्छिअइं/पेच्छिआई = देखे गये। (ग) सुणिआ / सुणिअ = सुनी गयी । (स्त्रीलिंग एकवचन) सुणिआ/सुणिअ/सुणिआउ / सुणिअउ / सुणिआओ / सुणिअउ : = सुनी गयी। (स्त्रीलिंग बहुवचन) (नपुंसकलिंग बहुवचन) विधि कृदन्त का कर्मवाच्य में प्रयोग - नियम (क) जब क्रिया सकर्मक होती है तो अपभ्रंश भाषा में प्राकृत भाषा के अनुसार विधि कृदन्त का प्रयोग कर्मवाच्य में किया जाता है। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी । कर्म में प्रथमा विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी । कृदन्त के रूप (प्रथमा में परिवर्तित ) कर्म के लिंग और वचन के अनुसार चलेंगे। जैसे Jain Education International अपभ्रंश - हिन्दी-व्याकरण For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004214
Book TitleApbhramsa Hindi Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2012
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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