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प्रथमा
परिशिष्ट-1 संज्ञा शब्दों की रूपावली
अकारान्त पुल्लिंग - देव (देव) एकवचन
बहुवचन देव, 'देवा, देवु, देवो देव, देवा द्वितीया देव, देवा, देवु, देव, देवा
देवेण, देवेणं', देवें देवहिं, देवाहि, देवेहिं चतुर्थी देव, देवा.
देव, 'देवा व देवसु, देवासु,
देवहं, 'देवाह देवहो, देवाहो, देवस्सु पंचमी देवहे, 'देवाहे, देवहु, “देवाहु देवहुं, देवाहुं सप्तमी देवि, देवे
देवहिं, 'देवाहिं सम्बोधन हे देव, हे 'देवा, हे देवु, हे देवो हे देव, हे देवा, हे देवहो, हे 'देवाहो
तृतीया
षष्ठी
नोट-
अकारान्त, इ-ईकारान्त और उ-ऊकारान्त पुल्लिंग, अकारान्त, इकारान्त और उकारान्त नपुंसकलिंग और आकारान्त, इ-ईकारान्त उ-ऊकारान्त स्त्रीलिंग संज्ञा शब्दों में प्रथमा विभक्ति से संबोधन तक के प्रत्यय परे होने पर/रहने पर अंतिम स्वर दीर्घ होने पर हस्व तथा ह्रस्व होने पर दीर्घ हो जाता है। (जो प्रत्यय संज्ञा शब्दों में मिलकर रूप निर्माण करते हैं अर्थात् जो परे नहीं बने रहते वहाँ यह नियम लागू नहीं होता है) जैसे- देवु, देवि, देवें, देवेण, देवो। ____ कमलु, कमलि, कमलें, कमलेण। तृतीया विभक्ति के एकवचन में 'ण' और 'ण' दोनों प्रत्ययों का प्रयोग होता है। इसी प्रकार अन्य रूपों में भी समझ लेना चाहिए। इस चिह्न का प्रयोग संज्ञा-सर्वनाम की रूपावली में दर्शाया गया है।
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अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण
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