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(ii)
3.
(58)
1. ( हस + इ) = हसि (हँसकर)
2. (हस + इउ)
= हसिउ (हँसकर )
3. ( हस + इवि ) = हसिवि (हँसकर )
4. ( हस + अवि ) = हसवि (हँसकर )
5. ( हस + एप्पि) = हसेप्पि (हँसकर )
6. ( हस + एप्पिणु) = हसेप्पिणु (हँसकर )
7. (हस + एवि ) = हसेवि (हँसकर )
8. ( हस + एविणु) = हसेविणु (हँसकर )
अपभ्रंश भाषा में 'करके' अर्थ में संबंधक भूतकृदन्त का प्रयोग किया जाता है। शौरसेनी भाषा के अनुसार संबंधक भूतकृदन्त में 'इय',
'दूण', 'दूणं' और 'त्ता' प्रत्यय भी क्रिया में जोड़े जाते हैं और क्रिया के अन्त्य 'अ' का 'इ' हो जाता है। जैसे -,
1. (हस + इय) =
2. ( हस+ दूण) = हसिदूण / हसिदूणं (हँसकर).
3. ( हस + त्ता) = हसित्ता (हँसकर )
हसि (हँसकर )
अपभ्रंश भाषा में 'जाकर', 'गमन करके' अर्थ में 'गम' क्रिया में 'एप्पिणु' और 'एप्पि' प्रत्यय क्रिया में जोड़े जाते हैं। इन प्रत्ययों को क्रिया में जोड़ने के पश्चात् विकल्प से एप्पिणु और एप्पि प्रत्ययों के आदि स्वर एका लोप हो जाता है।
जैसे - ( गम + एप्पिणु) = गम्प्पिणु / गमेप्पिणु (जाकर / गमन करके) ( गम + एप्पि) = गम्प्पि / गमेप्पि ( जाकर / गमन करके)
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अपभ्रंश - हिन्दी- व्याकरण
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