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कृदन्तों का भाववाच्य में प्रयोग-नियम भूतकालिक कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग-नियम जब क्रिया अकर्मक होती है तो अपभ्रंश भाषा में प्राकृत भाषा के अनुसार भूतकालिक कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग होता है। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कृदन्त में सदैव 'नपुंसकलिंग एकवचन' ही होगा। जैसे
हसिअ/हसिआ/हसिउ = हँसा गया। नोट- जब अकर्मक क्रियाओं में भूतकालिक कृदन्त के प्रत्ययों को लगाया जाता है तो
भूतकाल का भाव प्रकट करने के लिए इनका प्रयोग कर्तृवाच्य में भी किया जा सकता है। कर्ता पुल्लिंग, नपुंसकलिंग, स्त्रीलिंग में से जो भी होगा भूतकालिक
कृदन्त के रूप भी उसी के अनुसार होंगे। जैसे(क) नरिंद/नरिंदा/नरिंदु/नरिंदो हसिअ/हसिआ/हसिउ/हसिओ =
राजा हँसा। (पुल्लिंग एकवचन) (ख) कमल/कमला/कमलु विअसिअ/विअसिआ/विअसिउ =
कमल खिला । (नपुंसकलिंग एकवचन) (ग) ससा/सस हसिआ/हसिअ = बहिन हँसी। (स्त्रीलिंग एकवचन)
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. विधि कृदन्त का भाववाच्य में प्रयोग-नियम (क). जब क्रिया अकर्मक होती है तो अपभ्रंश भाषा में प्राकृत भाषा के
अनुसार विधि कृदन्त का प्रयोग भाववाच्य में किया जाता है। कर्ता में तृतीया विभक्ति (एकवचन अथवा बहुवचन) होगी। कृदन्त में सदैव नपुंसकलिंग एकवचन' ही होगा। जैसेहसिअव्व/हसिअव्वा/हसिअव्वु आदि = हँसा जाना चाहिए।
अपभ्रंश-हिन्दी-व्याकरण
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