Book Title: Vyavahar Sutram Part 02
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्री
व्यवहार
सूत्रम्
तृतीय
उद्देशक:
७४८ (B)
www.kobatirth.org
स्वाधीना सती सङ्गृह्यते रक्ष्यते । तस्मात् प्रवर्तिनीसंग्रहोऽपि साध्व्याः श्रेयान् ॥ १५७१ ॥
एतदेव विभावयिषुर्लोकेपि स्त्रियास्त्रिविधं संग्रहमाह
जाया पितिवसा नारी दिन्ना नारी पतिव्वसा ।
विहवा पुत्तवसा नारी, नत्थि नारी सयंवसा ॥ १५७२ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जाता सती नारी पितृवशा पितुरायत्ता भवति, दत्ता परिणीता सती नारी पतिवशा भर्त्तुरायत्ता। विधवा मृतपतिका नारी पुत्रवशा । एवं च सति नारी नास्ति कदाचनापि स्वयंवशा ॥ १५७२ ॥
अमुमेवार्थं प्रकारान्तरेणाऽऽह
जायं पिय रक्खंती, माता-पिति- सासु- देवरा दिण्णं । पितिभातिपुत्तविहवं, गुरुगणिगणिणी य अज्जं पि ॥ १५७३ ॥
जातामपि नारीं रक्षतः मातापितरौ । दत्तां परिणीतां रक्षन्ति मातृ-पितृ श्वश्रू - देवरभर्त्रादयः। देवरग्रहणं श्वशुर-भर्त्रादेरुपलक्षणम्। विधवां पुनः पिता भ्राता पुत्रो वा । यदि
For Private and Personal Use Only
सूत्र १३
गाथा १५७१-१५७६ पदग्रहणायोग्यता
७४८ (B)

Page Navigation
1 ... 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582