Book Title: Vyavahar Sutram Part 02
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 517
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री व्यवहार सूत्रम् तृतीय उद्देशक: ७६० (B) *** www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पड़ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दित्तिए वा धारेत्तए वा । तिहिं संवच्छरेहिं वीतिक्कंतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्टियंसि उट्ठियंसि ठियस्स उवसंतस्स उवरयस्स पडिविरयस्स निव्वियारस्स, एवं से कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥ २२ ॥ अक्षरगमनिका सूत्रपञ्चकस्यापि तथैव । अनिक्षेपणसूत्रद्विके गणावच्छेदकादयः पूर्ववदजापालक-श्रीगृहिकदृष्टान्ताभ्यां यावज्जीवमाचार्यपदानामनर्हाः । निक्षेपणसूत्रद्विके ताभ्यामेव दृष्टान्ताभ्यां प्रागुक्तप्रकारेण संवत्सरत्रयातिक्रमेऽर्हाः ॥ सम्प्रति भिक्षुसूत्रस्यानिक्षेपणसूत्रद्विकस्य च मैथुनसूत्रादापृच्छनविधौ यतनायां च यो विशेषस्तमभिधित्सुराह— एमेव बितियसुत्ते, बियभंग निसेवियम्मि वि अठते । ताहे पुणरवि जयती, निव्वीतियमादिणा विहिणा ॥ १५९९ ॥ एवमेव अनेनैव प्रकारेण, भिक्षुमैथुनसूत्रे इवेत्यर्थः द्वितीयसूत्रे भिक्ष्ववधावनसूत्रे उपलक्षणमेतत् निक्षेपणसूत्रद्विके च द्वितीयभङ्गेन प्रागुक्तस्वरूपेण निषेवितेऽपि मैथुने अतिष्ठति वेदोदये ततः पुनरपि निर्विकृतिकादिना विधिना यतते ॥ १५९९ ॥ For Private and Personal Use Only सूत्र १९-२२ गाथा | १५९९-१६०३ पदयोग्यायोग्यतादिः ७६० (B)

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