Book Title: Vyavahar Sutram Part 02
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 551
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्ररूपणाकारी भवति वा न वेत्यर्थः? ॥ १६५७॥ श्री व्यवहार सूत्रम् तृतीय उद्देशकः ७७७ (B) ___ एवं दुर्व्यवहारिणामाक्षेपे कृते ते ब्रूयुः 'वयमप्रमाणीकृता युष्माभिः?'। ततः स गीतार्थः प्राहतित्थयरे भगवंते, जगजीववियाणए तिलोगगुरू। जो न करेइ पमाणं, न सो पमाणं सुयधराणं ॥ १६५८ ॥ तीर्थकरान् भगवतो जगजीवविज्ञायकान् सर्वज्ञानित्यर्थः त्रिलोकगुरून् यो न करोति प्रमाणं न स प्रमाणं श्रुतधराणाम् ॥१६५८ ॥ तित्थयरे भगवंते, जगजीववियाणए तिलोयगुरू। जो उ करेइ पमाणं, सो उ पमाणं सुयहराणं ॥१६५९॥ तीर्थकरान् भगवतः जगज्जीवविज्ञायकान् सर्वज्ञानित्यर्थः, यस्तु करोति प्रमाणं स प्रमाणं श्रुतधराणाम् ॥१६५९ ॥ गाथा |१६५२-१६५९ संघकार्ये व्यवस्थादिः ७७७ (B) For Private and Personal Use Only

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