Book Title: Vyavahar Sutram Part 02
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

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Page 556
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्यवहार सूत्रम् तृतीय उद्देशकः ७८० (A) शिष्यः प्रतीच्छको वा आचार्यो वा एते सर्वेऽपि इहलोके, परलोके पुनः सत्यकरणयोगाः। तथा चाऽऽह- ये सत्यकरणयोगास्ते संसाराद्विमोचयन्ति ॥ १६६६॥ सीसो पडिच्छओ वा, कुलगणसंघो न सुग्गइं नेति। जे सच्चकरणजोगा, ते संसारा विमोएंति ॥ १६६७ ॥ शिष्यः प्रतीच्छको वा कुलं वा गणो वा सङ्घो वा न सुगतिं नयति, किन्तु ये सत्यकरणयोगास्ते संसाराद्विमोचयन्ति ॥ १६६७ ॥ सीसो पडिच्छतो वा कुलगणसंघो व एते इहलोए। जे सच्चकरणजोगा , ते संसारा विमोएंति ॥ १६६८ ॥ सुगमा ॥१६६८ ॥ शीतगृहसमः सङ्घ इत्युक्तं तत्र शीतगृहसमतां व्याख्यानयतिसीसे कुलिच्चए वा, गणिच्चय संघिच्चए य समदरिसी। ववहारसंथवेसु य, सो सीयघरोवमो संघो ॥ १६६९ ॥ गाथा |१६६७-१६७४ दुर्व्यवहारस्य दोषाः ७८० (A) For Private and Personal Use Only

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