Book Title: Vyavahar Sutram Part 02
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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श्री
व्यवहार
सूत्रम्
तृतीय उद्देशक:
७७२ (B)
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कोणु हु हवेज अन्नो, ? जो नाएणं नएज्ज ववहारं ।
अह अन्नय समवाओ, घुट्ठो वा आयो य तत्थ विदू ॥ १६३७ ॥
को नु हुः निश्चितं भवेदन्यो गीतार्थो यो न्यायेन व्यवहारं नयेत् ? । अथान्यदा सचित्तादिव्यवहारच्छेदार्थं सङ्घसमवायो घुष्टो घोषितः, सङ्घसमवायघोषणं च श्रुत्वा तत्र सङ्घसमवाये विदू विद्वान् सूत्रार्थतदुभयकुशलोऽन्यः प्राघूर्णकः कोऽपि समागतः ॥ १६३७॥ इह समवायघोषणामाकर्ण्य धूलीधूसरैरपि पादैरवश्यमागन्तव्यम् अन्यथा प्रायश्चित्तमित्येतदधुना प्रतिपादयति
घुमि संघकज्जे, धूलीजंघो वि जो न एज्जाहि ।
कुल - गण - संघसमवाए, लग्गति गुरुगे चउम्मासे ॥ १६३८ ॥
जं काहिंति अकज्जं तं पावइ सइ बले अगच्छंतो।
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अण्णाई तीव ओहाणमादि जं कुज्ज तं पावे ॥ १६३९ ॥
१. ताव तोहा• सर्वेष्वपि टीकादर्शेषु ॥
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गाथा
१६३५ - १६४२ व्यवहारकरणसामाचारी
७७२ (B)

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