Book Title: Vyavahar Sutram Part 02
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
श्री
व्यवहार
सूत्रम्
तृतीय
उद्देशकः
७६८ (B)
***
www.kobatirth.org
बहुग्रहणं बहुत्वविशिष्टसूत्रोपादानं तत्कारणमिदं हे चोदक! शृणु । । १६२१ ॥
तदेवाह
लोगम्मि सयमवज्झं, होइ अदंडं सहस्स मा एवं ।
होहिति उत्तरियम्मि, वि सुत्ता उ कया बहुकए वि ॥ १६२२ ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
लो बहुभिरकृत्ये सेवितेऽयं न्यायः- “शतमवध्यं, सहस्रमदण्ड्यं, " तत एवमौत्तरिकेsपि लोकोत्तरकेऽपि व्यवहारे प्रसङ्गो मा भूद् इति तत्प्रतिषेधार्थं चत्वारि सूत्राणि बहुकेऽपि बहुवचने कृतानि ॥ १६२२ ॥
साम्प्रतमागाढागाढकारणादीनि पदानि व्याचिख्यासुराह -
कुल- गण - संघपत्तं, सचित्तादी उ कारणागाढं ।
छिद्दाणि निरिक्खंतो, मायी तेणेव असुती उ ॥ १६२३ ॥
१. ० गाढानागाढ० पु. प्रे. ॥
For Private and Personal Use Only
गाथा
१६२०-१६२६ आचार्यादिपादऽयोग्याः
७६८ (B)

Page Navigation
1 ... 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582