Book Title: Vyavahar Sutram Part 02
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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श्री
व्यवहार
सूत्रम्
तृतीय
उद्देशक:
७५७ (B)
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एमेव गणायरिए - निक्खिवणा नवरि तत्थ नाणत्तं । अयपालगसिरिघरिए, जावज्जीवं अणरिहाउ ॥ १५९४।।
एवमेव अनेनैव प्रकारेण भिक्षुसूत्रमिवेत्यर्थः । गणे गणावच्छेदके आचार्ये आचार्योपाध्याये प्रत्येकं सूत्रद्विकमनिक्षेपणनिक्षेपणविषयं भावनीयम् । नवरं तत्र तेषु चतुर्षु सूत्रेषु मध्ये अनिक्षेपणायाम् अनिक्षेपणाविषये गणावच्छेदकसम्बन्धिन्याचार्योपाध्यायसम्बन्धिनि च सूत्रे नानात्वमिदम्। तदेवाह - अजापालकेन श्रीगृहकेन च दृष्टान्तेन गणावच्छेदकाचार्योपाध्याया यावज्जीवमाचार्यपदानामनर्हाः ॥ १५९४ ॥
तत्राऽजापालकदृष्टान्तमाह
अइयातो रक्खंतो, अयवालो कहि वच्चह ? तित्थाणिं, बेती अहगंपि वच्चामि ॥ १५९५ ॥
तित्थजत्तीओ।
ट्टु
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छड्डेऊण गयम्मी, सावज्जाईहि खइयहिय-नट्ठा।
पच्चागतो दविज्जइ, न लभति य भतिं न विय ताओ ॥ १५९६ ॥
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सूत्र १४-१७ गाथा १५९४ - १५९६ पदप्राप्तेर
योग्यतादिः
७५७ (B)

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