Book Title: Vyavahar Sutram Part 02
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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श्री
व्यवहार
सूत्रम्
तृतीय
उद्देशकः
७४७ (A)
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उपसंहारमाह
तम्हा न पगासिज्जा, कालगयं एयदोसरक्खठ्ठा । अण्णम्मि ववट्ठविए, ताहे पगा
कालगयं ॥ १५६९ ॥
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यस्मादेते दोषास्तस्मादेतद्दोषरक्षार्थमाचार्यं कालगतं न प्रकाशयेत् यदा पुनरन्यो गणधरो व्यवस्थापितो भवति, तदा अन्यस्मिन् व्यवस्थापिते कालगतं प्रकाशयेत् ॥ १५६९ ॥
सूत्रम् — निग्गंथीए णं नवडहरतरुणीए आयरियउवज्झाए वीसुंभेज्जा, नो से कप्पड़ अणायरिय-उवज्झाइयाएं होत्तए, कप्पड़ से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ उवज्झायं तओ पच्छा पवत्तिणिं, से किमाहु भंते ? तिसंगहिया समणी निग्गंथी, तं जहाआयरिएणं उवज्झाएणं पवत्तिणीए य ॥ १२ ॥
" निग्गंथीए णं नव- डहर - तरुणाए आयरिय उवज्झाए" इत्यादि ।
१. इतोऽग्रे आगमप्रकशने श्युब्रींगटिप्पणे (वि- श्युबींग H प्रतौ ) पवत्तिणी य इति पाठः अधिकः ॥ २. इतोऽग्रे आगमप्र. श्युब्रींग टिप्पणे च अप व (वि- श्यु. H ) त्तिणियाए - इति अधिकः पाठः ॥
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सूत्र १२ गाथा १५६६-१५७०
त्रिसंगृहीता
श्रमणी
७४७ (A)

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