Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

View full book text
Previous | Next

Page 465
________________ श्रीभगवत्यङ्गं श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1543 // त्ति संसाराशुभत्वानुचिन्तनं अवायाणुप्पेह त्ति अपायानां-प्राणातिपाताद्याश्रवद्वारजन्यानर्थानामनुप्रेक्षा-अनुचिन्तनमपायानुप्रेक्षा, इह च यत्तपोऽधिकारे प्रशस्ताप्रशस्तध्यानवर्णनं तदप्रशस्तस्य वर्जने प्रशस्तस्य च तस्यासेवने तपो भवतीतिकृत्वेति / / 148 / / / / 803 // व्युत्सर्गसूत्रे संसारविउसग्गो त्ति नारकायुष्कादिहेतूनां मिथ्यादृष्टित्वादीनां त्यागः कम्मविउसग्गो त्ति ज्ञानावरणादिकर्मबन्धहेतूनां ज्ञानप्रत्यनीकत्वादीनां त्याग इति ॥१५१॥॥८०४॥पञ्चविंशतितमशते सप्तमः // 25-7 // 25 शतके उद्देशकः 8-9-10 11-12 सूत्रम् 805-809 नारकभव्यादीनामुत्पत्तिरीतिः ॥पञ्चविंशशतके अष्टादारभ्यद्वादशान्ता उद्देशकाः॥ सप्तमोद्देशके संयता भेदत उक्तास्तद्विपक्षभूताश्चासंयता भवन्ति तेच नारकादयस्तेषांच यथोत्पादोभवति तथाऽष्टमेऽभिधीयत इत्येवंसम्बन्धस्यास्येदमादिसूत्रं १रायगिहे जाव एवं वयासी- नेरइया णं भंते! कहं उववजंति?, से जहानामए- पवए पवमाणे अज्झवसाणनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तं ठाणं विप्पजहित्ता पुरिमं ठाणं उवसंपजित्ताणं विहरइ एवामेव एएवि जीवा पवओविव पवमाणा अज्झवसाणनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं सेयकाले तंभवं विप्पजहित्ता पुरिमं भवं उवसंपजित्ताणं विहरन्ति / तेसिणंभंते! जीवाणं कहंसीहा गती कहं सीहे गतिविसए प०?, गोयमा! से जहानामए- केइ पुरिसे तरुणे बलवं एवं जहा चोद्दसमसए पढमुद्देसए जाव तिसमएण वा विगहेणं उववखंति, तेसिणंजीवाणंतहासीहा गई तहा सीहे गतिविसएप०।३ ते णं भंते! जीवा कहं परभवियाउयं पकरेंति?, गोयमा! अज्झवसाणजोगनिव्वत्तिएणं करणोवाएणं एवं खलु तेजीवा परभवियाउयं पकरेन्ति, 4 तेसिणं भंते! जीवाणं // 1543 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562