Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 528
________________ 34 शतके उद्देशक: श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय वृत्तियुतम् भाग-३ // 1606 // 2-11 सूत्रम् 852-854 एकेन्द्रियशतानि 12 पुढविकाइयाणं भणिया तहेव भा० जाव वणस्सइकाइयत्ति / 3 अणंतरोववन्नगासुहमपुढविकाइयाणं भंते! कइ कम्मप्पगडीओ प०?, गोयमा! अट्ठ कम्मप्प० पन्नत्ताओ एवं जहा एगिदियसएसु अणंतरोववन्नगउद्देसए तहेव पन्नताओ तहेव बंधति तहेव वेदेति जाव अणंतरोववन्नगा बायरवणस्सइकाइया। 4 अणंतरोववन्नगएगिंदियाणं भंते! कओउववजंति? जहेव ओहिए उद्देसओ भणिओ तहेव। 5 अणंतरोववन्नगएगिदियाणं भंते! कति समुग्घाया प०?, गोयमा! दोन्नि समुग्धाया प०, तं० वेदणासमुग्घाए य कसायसमुग्घाए य / 5 अणंतरोववन्नगएगिदियाणं भंते! किं तुल्लट्ठितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मं पकरेंति? पुच्छा तहेव, गोयमा! अत्थेगइया तुल्लट्ठि० तुल्लविसे० कम्मं प०! अत्थे० तुल्लट्ठि० वेमायविसे० कम्मंप०, से केणटेणं जाव वेमायविसेसाहियं कम्मंप०?, गोयमा! अणंतरोववन्नगा एगिदिया दुविहा पं० तं० अत्थेगइया समाउया समोवन्नगा अत्थे० समा० विसमोव० तत्थ णं जे ते समा० समोव० तेणं तुल्लवितीया तुल्लविसेसाहियं कम्मंप० तत्थ णंजे ते समा० विसमोव० ते णं तुल्लट्ठि० वेमायविसे० कम्मं प०, से तेणटेणं जाव वेमायविसेसाहियं०प०।सेवं भंते! रत्ति // सूत्रम् 852 // 34-2 // १कइविहाणं भंते! परंपरोववन्नगा एगिदिया पन्नत्ता?, गोयमा! पंचविहा परंपरोववन्नगा एगिंदिया प०, तं० पुढविक्काइया भेदो चउक्तओ जाव वणस्सइकाइयत्ति / 2 परंपरोववन्नगअपज्जत्तसुहमपुढविकाइए णं भंते! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुरच्छिमिल्ले चरिमंते समोहए 2 जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव पच्चच्छिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्तसुहुमपुढविकाइयत्ताए उवव० एवं एएणं अभिलावेणं जहेव पढमो उद्देसओ जाव लोगचरिमंतोत्ति / 3 कहिन्नं भंते! परंपरोववन्नगबायरपुढविकाइयाणं ठाणा प०?, गोयमा! सट्ठाणेणं अट्ठसु पुढवीसु एवं एएणं अभिलावेणं जहा पढमे उद्देसए जाव तुल्लट्ठितीयत्ति / सेवं भंते! रत्ति // 34-3 // एवं सेसावि अट्ठ उदेसगा जाव अचरमोत्ति , नवरं अणंतरा अणंतरसरिसा परंपरा परंपरसरिसा चरमा य अचरमा य एवं चेव, एवं एते // 1606

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