Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1615 // 35 शतके उद्देशकः 2-11 सूत्रम् 857-858 प्रथमोसमयावेकेन्द्रियाः ॥पञ्चत्रिंशशतके द्वितीयादाराभ्यैकादशान्तोद्देशकाः॥ 1 पढमसमयकडजुम्मरएगिदिया णं भंते! कओ उववजंति?, गोयमा! तहेव एवं जहेव पढमो उद्देसओ तहेव सोलसखुत्तो बितिओवि भाणियव्वो, तेहव सव्वं, नवरं इमाणि य दस नाणत्ताणि- ओगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणवि अंगुलस्स असंखेज्जइ० आउयकम्मस्स नो बंधगा अबंधगा आउयस्स नो उदीरगा अणुदीरगा नो उस्सासगा नो निस्सासगा नो उस्सासनिस्सासगा सत्तविहबंधगा नो अट्ठविहबंधगा, 2 ते णं भंते! पढमसमयकडजुम्मरएगिदियत्ति कालओ केवच्चिरं होइ?, गोयमा! एक्कं समयं, एवं ठितीएवि, समुग्धाया आदिल्ला दोन्नि, समोहया न पुच्छिजंति उव्वट्टणा न पुच्छिज्जड़, सेसं तहेव सव्वं निरवसेसं, सोलसुविगमएसुजाव अणंतखुत्तो। सेवं भंते ! रत्ति // सूत्रम् 857 // 35-2 // 1 अपढमसमयकडजुम्मरएगिदिया णं भंते! कओ उववजंति?, एसो जहा पढमुद्देसो सोलसहिवि जुम्मेसु तहेव नेयव्वो जाव कलियोगकलियोगत्ताए जाव अणंतखुत्तो।सेवं भंते! रत्ति॥३५-३॥२ चरमसमयकडजुम्मरएगिंदियाणं भंते! कओहिंतो उव०?, एवं जहेव पढमसमयउद्देसओ नवरं देवा न उववजंति तेउलेस्सा न पुच्छिज्जति, सेसं तहेव / सेवं भंते! रत्ति / / 35-4 // 3 अचरमसमयकडजुम्मरएगिदियाणं भंते! कओ उव० जहा अपढमसमयउद्देसो तहेव निरवसेसोभा० / सेवं भंते! शत्ति // 35-5 // 4 पढमसमयकडजुम्मकडजुम्मएगिंदिया णं भंते! कओहिंतो उव०?,जहा पढमसमयउद्देसओ तहेव निरवसेसं / सेवं भंते! रत्ति जाव विहरइ // ३५-६॥५पढमअपढमसमयकडजुम्मरएगिदिया णं भंते! कओ उव०? जहा पढमसमयउद्देसो तहेव भा०। सेवं भंते! रत्ति // 35-7 // 6 पढमचरमसमयकडजुम्मरएगिदिया णं भंते! कओ उव०?, जहा चरमुद्देसओ तहेव निरवसेसं / सेवं भंते! // 1615 //
Loading... Page Navigation 1 ... 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562