Book Title: Vyakhyapragnaptisutram Part 03
Author(s): Divyakirtivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
View full book text ________________ श्रीभगवत्यङ्ग श्रीअभय. वृत्तियुतम् भाग-३ // 1626 // 40 शतके सूत्रम् 865 अभवसिद्धियमहा जुम्मसयं समयं, उ० दस सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेजइभागमब्भहियाई, एवं ठितीए, एवं तिसु उद्देसएसु, सेसंतंचेव / सेवं भंते! त्ति // तइयं सयं सम्मत्तं // 3 // एवं काउलेस्ससयंपि, नवरं संचिट्ठणा ज० एक्वं समयं, उ० तिन्नि सागरोवमाइं पलिओवमस्स असंखेज्जइभागमब्भ०, एवं ठितीएवि, एवं तिसुवि उद्देसएसु, सेसंतं चेव / सेवं भंते ! रत्ति ॥चउत्थं सयं॥४॥एवं तेउलेस्सेसुवि सयं, नवरं संचिट्ठणा ज० एक्कं समयं, उ० दो सागरोवमाइंपलिओवमस्स असंखेजइभागमब्भ० एवं ठितीएवि नवरं नोसन्नोवउत्ता वा, एवं तिसुविउद्देसएसुसेसंतंचेव। सेवं भंते! रत्ति॥पंचमंसयं ॥५॥१जहा तेउलेस्सासतंतहा पम्हलेस्सासयंपिनवरं संचिट्ठणा ज एवं समयं, उ० दस सागरोवमाइं अंतोमुत्तमब्भहियाई,एवं ठितीएवि, नवरं अंतोमुहुत्तं न भन्नति सेसंतंचेव, एवं एएसुपंचसु सएसु जहाकण्हलेस्सासएगमओ तहा नेयव्वो जाव अणंतखुत्तो / सेवं भंते! रत्ति // 40 छठे सयं सम्मत्तं ॥६॥१सुक्कलेस्ससयं जहाओहियसयं नवरं संचिट्ठणा ठिती य जहा कण्हलेस्ससए सेसंतहेव जाव अणंतनुत्तो॥सेवं भंते! रत्ति // सत्तमं सयंसम्मत्तं // ७॥१भवसि०कडजुम्मरसन्निपंचिंदियाणं भंते! कओ उववखंति?, जहा पढमं सन्निसतं तहाणेयव्वं भवसिद्धियाभिलावेणं नवरं सव्वपाणा?,णो तिणटेसमटे,सेसंतहेव, सेवं भंते! रत्ति ॥अट्ठमंसयं॥८॥१कण्हलेस्सभवसि०कडजुम्मरसन्निपंचिंदिया णं भंते! कओ उवव०?, एवं एएणं अभिलावेणं जहा ओहियकण्हलेस्ससयं / सेवं भंते! रत्ति // नवमं सयं॥९॥ एवं नीललेस्सभवसिद्धीएवि सयं। सेवं भंते! 2 // दसमं सयं // 10 // एवं जहा ओहियाणि संन्निपंचिंदियाणं सत्त सयाणि भणियाणि एवं भवसिद्धीएहिवि सत्त सयाणि कायव्वाणि, नवरं सत्तसुवि सएसु सव्वपाणा जाव णो तिणढे समढे, सेसं तं चेव / सेवं भंते! 2 // भवसि०सया सम्मत्ता // चोद्दसमं सयं सम्मत्तं ॥१४॥१अभवसि०कडजुम्मरसन्निपंचिंदिया णं भंते! कओ उवव०?, उववाओ तहेव अणुत्तरविमाणवजो परिमाणं अवहारो उच्चत्तं बंधो वेदो वेदणं उदओ उदीरणा य जहा कण्हलेस्ससए कण्हलेस्सा वा जाव // 1626 //
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